तत्त्वार्थसूत्र - द्वितीय अध्याय (जीव के भेद) - (सूत्र 06 - 12)
‘तत्त्वार्थसूत्र’ ‘आचार्य उमास्वामी-प्रणीत’ ( परम पूज्य उपाध्याय श्री श्रुतसागर जी महाराज द्वारा ‘तत्त्वार्थसूत्र’ की प्रश्नोत्तर शैली में की गई व्याख्या के आधार पर ) द्वितीय अध्याय (जीव के भेद) सूत्र 06 - 12 सूत्र 6 . गति-कषाय-लिंग-मिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्ध-लेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्येकैकैकैक-षड्भेदाः।। 06 ।। अर्थ - औदयिक-भाव के इक्कीस भेद हैं - चार गति, चार कषाय, तीन लिंग, एक मिथ्यादर्शन, एक अज्ञान, एक असंयम, एक असिद्ध भाव और छह लेश्यायें। प्र. 59 . औदयिक-भाव के कितने भेद हैं और कौन-कौन से हैं ? उत्तर - औदयिक-भाव के इक्कीस भेद हैं - चार गति, चार कषाय, तीन लिंग, एक मिथ्यादर्शन, एक अज्ञान, एक असंयम, एक असिद्ध भाव और छह लेश्यायें। प्र. 60 . गति किसे कहते हैं ? उत्तर - आयुकर्म के उदय से जो अवस्था होती है, उसे गति कहते हैं। प्र. 61 . गति कितनी और कौन-कौन सी होती हैं ? उत्तर - गति 4 हैं - मनुष्य गति, देव गति, तिर्यंच गति और नरक गति। प्र. 62 . कषाय किसे कहते हैं ? उत्तर - जो आत्मा की शक्ति को कृश करे, उसे कषाय कहते हैं। प्र. 63 . कषाय के कितने भेद हैं और कौन-कौन से ? उत्तर - कषाय के 4...