तत्त्वार्थसूत्र - द्वितीय अध्याय (जीव के भेद) - (सूत्र 03 - 05)
‘तत्त्वार्थसूत्र’
‘आचार्य उमास्वामी-प्रणीत’
(परम पूज्य उपाध्याय श्री श्रुतसागर जी महाराज द्वारा ‘तत्त्वार्थसूत्र’ की प्रश्नोत्तर शैली में की गई व्याख्या के आधार पर)
द्वितीय अध्याय (जीव के भेद)
सूत्र 03 - 05
सूत्र 3. सम्यक्त्व-चारित्रे ।।03।।
अर्थ - औपशमिक-भाव के दो भेद हैं - औपशमिक-सम्यक्त्व और औपशमिक-चारित्र।
प्र. 32. औपशमिक-भाव के दो भेद कौन-से हैं?
उत्तर - औपशमिक-भाव के दो भेद हैं - औपशमिक-सम्यक्त्व और औपशमिक-चारित्र।
प्र. 33. औपशमिक-सम्यक्त्व किसे कहते हैं?
उत्तर - जो सम्यक्त्व उपशम से प्राप्त होता है, उसे औपशमिक-सम्यक्त्व कहते हैं।
प्र. 34. औपशमिक-चारित्र किसे कहते हैं?
उत्तर - जो चारित्र उपशम से प्राप्त होता है, उसे औपशमिक-चारित्र कहते हैं।
प्र. 35. काललब्धि किसे कहते हैं?
उत्तर - जिस समय का निमित्त पाकर कार्य सम्पन्न होता है, उसे काललब्धि कहते हैं।
प्र. 36. परावर्तन कितने होते हैं?
उत्तर - परावर्तन पाँच होते हैं - द्रव्य-परावर्तन, क्षेत्र-परावर्तन, काल-परावर्तन, भव-परावर्तन, भाव-परावर्तन।
प्र. 37. द्रव्य-परावर्तन के कितने भेद हैं?
उत्तर - द्रव्य-परावर्तन के दो भेद हैं - कर्म और नोकर्म।
प्र. 38. अर्द्धपुद्गल-परावर्तन कितना है?
उत्तर - नोकर्म-परावर्तन का जितना काल है, उतना काल अर्द्धपुद्गल-परावर्तन का है।
सूत्र 4. ज्ञान-दर्शन-दान-लाभ-भोगोपभोग-वीर्याणि च।।04।।
अर्थ - क्षायिक भाव के 9 भेद हैं - क्षायिक-ज्ञान, क्षायिक-दर्शन, क्षायिक-दान, क्षायिक-लाभ, क्षायिक-भोग, क्षायिक-उपभोग, क्षायिक-वीर्य, क्षायिक-सम्यक्त्व और क्षायिक-चारित्र।
प्र. 39. क्षायिक भाव के कितने भेद हैं और कौन-कौन से?
उत्तर - क्षायिक भाव के 9 भेद हैं - क्षायिक-ज्ञान, क्षायिक-दर्शन, क्षायिक-दान, क्षायिक-लाभ, क्षायिक-भोग, क्षायिक-उपभोग, क्षायिक-वीर्य, क्षायिक-सम्यक्त्व और क्षायिक-चारित्र।
प्र. 40. क्षायिक-ज्ञान किसे कहते हैं?
उत्तर - सम्पूर्ण ज्ञानावरणी कर्म के क्षय से जो ज्ञान होता है, उसे क्षायिक-ज्ञान कहते हैं।
प्र. 41. क्षायिक-दर्शन किसे कहते हैं?
उत्तर - सम्पूर्ण दर्शनावरणी कर्म के क्षय से जो दर्शन होता है, उसे क्षायिक-दर्शन कहते हैं।
प्र. 42. क्षायिक-दान किसे कहते हैं?
उत्तर - सम्पूर्ण दानांतराय कर्म के क्षय से अनन्त प्राणियों के समूह का उपकार करने को क्षायिक-दान कहते हैं।
प्र. 43. क्षायिक-लाभ किसे कहते हैं?
उत्तर - सम्पूर्ण लाभांतराय कर्म के क्षय से जो लाभ होता है, उसे क्षायिक-लाभ कहते हैं।
प्र. 44. क्षायिक-लाभ किसको होता हैं?
उत्तर - क्षायिक-लाभ कवलाहार क्रिया से रहित केवलियों को होता है। कवलाहार का अर्थ है - कौर या ग्रास बना कर आहार लेना।
प्र. 45. क्षायिक-भोग किसे कहते हैं?
उत्तर - सम्पूर्ण भोगांतराय कर्म के क्षय से जो भोग होता है, उसे क्षायिक-भोग कहते हैं। जैसे - पुष्पवृष्टि आदि।
प्र. 46. क्षायिक-उपभोग किसे कहते हैं?
उत्तर - सम्पूर्ण उपभोगांतराय कर्म के क्षय से जो उपभोग होता है, उसे क्षायिक-उपभोग कहते हैं। जैसे - सिंहासन, तीन छत्र आदि।
प्र. 47. भोग और उपभोग किसे कहते हैं?
उत्तर - जो सामग्री एक बार भोग में आती है, उसे भोग कहते हैं, जैसे भोजन आदि और जो सामग्री बार-बार प्रयोग में आती है, उसे उपभोग कहते हैं, जैसे मेज, कुर्सी, वस्त्र आदि।
प्र. 48. क्षायिक-वीर्य किसे कहते हैं?
उत्तर - सम्पूर्ण वीर्यांतराय कर्म के क्षय से जो अनन्त शक्ति प्राप्त होती है, उसे क्षायिक-वीर्य कहते हैं।
प्र. 49. क्षायिक-सम्यक्त्व किसे कहते हैं?
उत्तर - अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व, सम्यक्त्व; इन सात प्रकृतियों के क्षय से जो सम्यक्त्व प्राप्त होता है, उसे क्षायिक-सम्यक्त्व कहते हैं।
प्र. 50. क्षायिक-चारित्र किसे कहते हैं?
उत्तर - सम्पूर्ण चारित्र-मोहनीय कर्म के क्षय से जो चारित्र होता है, उसे क्षायिक-चारित्र कहते हैं।
सूत्र 5. ज्ञानाज्ञान-दर्शन-लब्धयश्चतुस्त्रि-त्रि-पंचभेदाः सम्यक्त्व-चारित्र-संयमासंयमाश्च।।05।।
अर्थ - क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद हैं- चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन, पाँच दानादि लब्धियाँ, क्षायोपशमिक-सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक-चारित्र ओर संयमासंयम।
प्र. 51. क्षायोपशमिक भाव के कितने और कौन-कौन से भेद हैं?
उत्तर - क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद हैं - चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन, पाँच दानादि लब्धियाँ, क्षायोपशमिक-सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक-चारित्र और संयमासंयम।
प्र. 52. चार क्षायोपशमिक-ज्ञान कौन-कौन से हैं?
उत्तर - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान - ये चार क्षायोपशमिक ज्ञान हैं।
प्र. 53. तीन क्षायोपशमिक-अज्ञान कौन-कौन से हैं?
उत्तर - कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान और कुअवधिज्ञान - ये तीन क्षायोपशमिक अज्ञान हैं।
प्र. 54. तीन क्षायोपशमिक-दर्शन कौन-कौन से हैं?
उत्तर -चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन - ये तीन क्षायोपशमिक-दर्शन हैं।
प्र. 55. पाँच क्षायोपशमिक-लब्धियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर - दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य - ये पाँच क्षायोपशमिक-लब्धियाँ हैं।
प्र. 56. क्षायोपशमिक-सम्यक्त्व किसे कहते हैं?
उत्तर - अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ और मिथ्यात्व व सम्यक् मिथ्यात्व के उदयाभाविक क्षय और उपशम से और सम्यक् प्रकृति के उदय से जो श्रद्धान होता है, उसे क्षायोपशमिक-सम्यक्त्व कहते हैं।
प्र. 57. क्षायोपशमिक-चारित्र किसे कहते हैं?
उत्तर - अनंतानुबंधी के चार, अप्रत्याख्यान के चार, प्रत्याख्यान के चार - इन 12 कषायों के क्षय और उपशम से जो त्यागरूप परिणाम होता है, उसे क्षायोपशमिक-चारित्र कहते हैं।
प्र. 58. संयमासंयम किसे कहते हैं?
उत्तर - अनंतानुबंधी के चार, अप्रत्याख्यान के चार - इन 8 कषायों के क्षय और उपशम से जो विरत-अविरत परिणाम होते हैं, उन्हें संयमासंयम कहते हैं।
क्रमशः
।।ओऽम् श्री महावीराय नमः।।
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