तत्त्वार्थसूत्र - पंचम अध्याय (अजीव के भेद) - (सूत्र 38 - 42)
‘तत्त्वार्थसूत्र’ ‘आचार्य उमास्वामी-प्रणीत’ ( परम पूज्य उपाध्याय श्री श्रुतसागर जी महाराज द्वारा ‘तत्त्वार्थसूत्र’ की प्रश्नोत्तर शैली में की गई व्याख्या के आधार पर ) पंचम अध्याय (अजीव के भेद) सूत्र 38 - 42 सूत्र 38 . गुण-पर्ययवद् द्रव्यम्।। 38 ।। अर्थ - गुण और पर्याय वाला द्रव्य है। प्र. 214 . ‘द्रव्य’ का लक्षण क्या है ? उत्तर - ‘गुण’ और ‘पर्याय’ वाला द्रव्य होता है। प्र. 215 . ‘गुण’ किसे कहते हैं ? उत्तर - द्रव्य में भेद करने वाले धर्म को गुण’ कहते हैं। प्र. 216 . द्रव्य के कितने गुण होते हैं और कितनी पर्यायें होती हैं ? उत्तर - द्रव्य के अनन्त गुण होते हैं और अनन्त पर्यायें होती हैं। प्र. 217 . गुण द्रव्यों को कैसे अलग-अलग करता है ? उत्तर - एक द्रव्य का जो मुख्य गुण होता है, वह दूसरे द्रव्य के मुख्य गुण से अलग होता है; जैसे जीव-द्रव्य का मुख्य गुण चेतना-गुण है और अजीव द्रव्य का मुख्य गुण अचेतन गुण है - इस प्रकार सभी द्रव्यों के मुख्य गुण अलग-अलग हैं। प्र. 218 . ‘पर्याय किसे कहते हैं ? उत्तर - द्रव्य और गुणों के विकार या कार्य-विशेष को ‘पर्याय’ कहते हैं। प्र. 219 . पर्याय का दू...