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तत्त्वार्थसूत्र - नवम् अध्याय (निर्जरा) - (सूत्र 01 - 05)

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‘तत्त्वार्थसूत्र’ ‘आचार्य उमास्वामी-प्रणीत’ ( परम पूज्य उपाध्याय श्री श्रुतसागर जी महाराज द्वारा ‘तत्त्वार्थसूत्र’ की प्रश्नोत्तर शैली में की गई व्याख्या के आधार पर ) नवम् अध्याय (निर्जरा) सूत्र 01 - 05 सूत्र 01 . आस्रवनिरोधः संवरः।। 01 ।। अर्थ - आस्रव का निरोध ‘संवर’ है। प्र. 1 . ‘संवर’ किसे कहते हैं ? उत्तर - आस्रव को रोकने को ‘संवर’ कहते हैं। प्र. 2 . ‘आस्रव’ किसे कहते हैं ? उत्तर - नवीन कर्मों का आना ‘आस्रव’ कहलाता है। प्र. 3 . ‘संवर’ के कितने भेद हैं और कौन-कौन से ? उत्तर - ‘संवर’ के दो भेद हैं - ‘भाव-संवर’ और ‘द्रव्य-संवर’। प्र. 4 . ‘भाव-संवर’ किसे कहते हैं ? उत्तर - जो शुद्धोपयोग शुभाशुभ-भाव को रोकने में समर्थ है, उसे ‘भाव-संवर’ कहते हैं। प्र. 5 . ‘द्रव्य-संवर’ किसे कहते हैं ? उत्तर - भाव-कर्म के आधार से नवीन पुद्गल-कर्म का निरोध होना ‘द्रव्य-संवर’ है। प्र. 6 . ‘भाव-संवर’ पहले होता है या ‘द्रव्य-संवर’ ? उत्तर - ‘भाव-संवरपूर्वक’ ही ‘द्रव्य-संवर’ होता है। पहले नवीन कर्म को रोकने का भाव आएगा, फिर उस कर्म का संवर होगा। प्र. 7 . ‘संवर’ से क्या लाभ है ? उत्तर - ‘संवर’ के बाद ह...

तत्त्वार्थसूत्र - अष्टम अध्याय (कर्म-बन्ध) - (सूत्र 11) - भाग - 3

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‘तत्त्वार्थसूत्र’ ‘आचार्य उमास्वामी-प्रणीत’ ( परम पूज्य उपाध्याय श्री श्रुतसागर जी महाराज द्वारा ‘तत्त्वार्थसूत्र’ की प्रश्नोत्तर शैली में की गई व्याख्या के आधार पर ) अष्टम अध्याय (कर्म-बन्ध) सूत्र 11 (भाग - 3) सूत्र 11 . गति-जाति-शरीरांगोपांग-निर्माण-बंधन-संघात-संस्थान- संहनन-स्पर्श-रस-गंध-वर्णानुपूर्व्यागुरुलघूपघात-परघातातपोद्योतोच्छ्वास-विहायोगतयः प्रत्येकशरीर-त्रस-सुभग-सुस्वर-शुभ-सूक्ष्म-पर्याप्ति-स्थिरादेय-यशःकीर्तिः सेतराणि तीर्थंकरत्व च।। 11 ।। अर्थ - गति, जाति, शरीर, अंगोपांग, निर्माण, बंधन, संघात, संस्थान, संहनन, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, आनुपूर्व्य, अगुरुलघु, उपघात, परघात, आातप, उद्योत, उच्छ्वास और विहायोगति तथा इन सब की प्रतिपक्षभूत-प्रकृतियों के साथ अर्थात् साधारण शरीर और प्रत्येकशरीर, स्थावर और त्रस, दुर्भग और सुभग, दुःस्वर और सुस्वर, अशुभ और शुभ, बादर और सूक्ष्म, अपर्याप्त और पर्याप्त, अस्थिर और स्थिर, अनादेय और आदेय, अयशःकीर्ति और यशःकीर्ति एवं तीर्थंकरत्व - ये तिरानवे ( 93 ) नामकर्म के भेद हैं। प्र. 208 . ‘आनुपूर्व्य-नामकर्म’ किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस कर्म के उदय से वि...