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पापी को नहीं अपितु पाप को मारना चाहिए

पापी को नहीं अपितु पाप को मारना चाहिए ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) मुनि श्री विशोक सागर जी ने बताया कि भक्तामर स्तोत्र अनोखा स्तोत्र पाठ है। यह स्तोत्र उतना ही कल्याणकारी है जैसे णमोकार मंत्र। णमोकार मंत्र एक ऐसा मंत्र है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने समस्त पापों को नष्ट कर सकता है, यहाँ तक कि यह मंत्र समस्त कर्मों का भी क्षय करने वाला है तथा मोक्ष सुख को प्राप्त कराने वाला है। धर्मात्मा पुरुष अन्य धर्मात्मा पुरुष को दुःखी नहीं देख सकता। भक्ति के माध्यम से क्रूर से क्रूर व्यक्ति तो क्या, जानवर भी भगवान की स्तुति करने से शांत हो जाते हैं। भगवान कहते हैं कि पापी को कभी नहीं मारना चाहिए अपितु उसकी पाप-प्रवृत्ति को मारना चाहिए। राम ने कभी रावण को नहीं मारा था अपितु रावण के अंदर बैठी राक्षस प्रवृत्ति को मारा था। ऐसी ही एक सूक्ति में कहा है - ‘पापी को नहीं पाप को मारना चाहिए।’ पापी की हिंसा नहीं, पाप की हिंसा करनी चाहिए। पापी ख़राब नहीं होता, उसके द्वारा किया गया पापकार्य ख़राब होता है। उस पापकार्य को छोड़ना चाहिए। ऐसा करने से पापों से मुक्ति हो जाएगी। मुनि श्री ने कह...