Posts

Showing posts from September, 2021

शुभ राजा की कथा

Image
आराधना-कथा-कोश के आधार पर शुभ राजा की कथा संसार का हित करने वाले जिनेन्द्र भगवान् को प्रसन्नता पूर्वक नमस्कार कर शुभ नाम के राजा की कथा लिखी जाती है। मिथिला नगर के राजा शुभ की रानी मनोरमा के देवरति नाम का एक पुत्र था। देवरति गुणवान और बुद्धिमान था। किसी प्रकार का दोष या व्यसन उसे छू तक न गया था। एक दिन देवगुरु नाम के अवधिज्ञानी मुनिराज अपने संघ को साथ लिये मिथिला में आये। शुभ राजा तब बहुत से भव्यजनों के साथ मुनि-पूजा के लिए गया। मुनिसंघ की सेवा-पूजा कर उसने धर्मोपदेश सुना। अन्त में उसने अपने भविष्य के सम्बन्ध का मुनिराज से प्रश्न किया - योगिराज, कृपा कर बतलाइए कि आगे मेरा जन्म कहाँ होगा ? उत्तर में मुनि ने कहा - राजन्! सुनिए, पाप कर्म के उदय से तुम्हें आगे के जन्म में तुम्हारे ही पाखाने में एक बड़े कीड़े की देह प्राप्त होगी, शहर में घुसते समय तुम्हारे मुँह में विष्ठा प्रवेश करेगा, तुम्हारा छत्रभंग होगा और आज के सातवें दिन बिजली गिरने से तुम्हारी मौत होगी। सच है, जीवों के पाप के उदय से सभी परिणाम होते हैं। मुनिराज ने ये सब बातें राजा से बड़े निडर होकर कही और यह ठीक भी है कि योगियों के ...

सुदृष्टि सुनार की कथा

Image
आराधना-कथा-कोश के आधार पर सुदृष्टि सुनार की कथा देवों, विद्याधरों, चक्रवर्तियों, राजाओं और महाराजाओं द्वारा पूजा किये जाने वाले जिन भगवान् को नमस्कार कर सुदृष्टि नामक सुनार की, जो रत्नों के काम में बड़ा होशियार था, की कथा लिखी जाती है। उज्जैन के राजा प्रजापाल बड़े प्रजा हितैषी, धर्मात्मा और भगवान् के सच्चे भक्त थे। इनकी रानी का नाम सुप्रभा था। सुप्रभा बड़ी सुन्दरी और सती थी। सच है संसार में वही रूप और वही सौन्दर्य प्रशंसा के लायक होता है जो शील से भूषित हो। यहाँ एक सुदृष्टि नाम का सुनार रहता था। जवाहरात के काम में यह बड़ा चतुर था तथा सदाचारी और सरल-स्वभावी था। इसकी स्त्री का नाम विमला था। विमला दुराचारिणी थी। अपने घर में रहने वाले एक वक्र नाम के विद्यार्थी से, जिसे कि सुदृष्टि अपने खर्च से लिखाता-पढ़ाता था, विमला का अनुचित सम्बन्ध था। विमला अपने स्वामी से बहुत नाखुश थी। इसलिए उसने अपने प्रेमी वक्र को उकसा कर, उसे कुछ भली-बुरी सुझाकर सुदृष्टि का खून करवा दिया। खून उस समय किया गया जब कि सुदृष्टि विषय-सेवन में मस्त था। सो यह मरकर विमला के ही गर्भ में आया। विमला ने कुछ दिनों बाद पुत्र प्रस...

जयसेन राजा की कथा

Image
आराधना-कथा-कोश के आधार पर जयसेन राजा की कथा स्वर्गादि सुखों के देने वाले और मोक्षरूपी रमणी के स्वामी श्री जिन भगवान् को नमस्कार कर जयसेन राजा की सुन्दर कथा लिखी जाती है। सावस्ती के राजा जयसेन की रानी वीरसेना के एक पुत्र था। इसका नाम वीरसेन था। वीरसेन बुद्धिमान और सच्चे हृदय का था। मायाचार-कपट उसे छू तक न गया था। यहाँ एक शिवगुप्त नाम का बौद्ध भिक्षुक रहता था। यह माँसभक्षी और निर्दयी था। ईर्ष्या और द्वेष इसके रोम-रोम में भरा था मानो वह इनका पुतला ही हो। यह शिवगुप्त राजगुरु भी था। ऐसे मिथ्यात्व को धिक्कार है जिसके वश हो ऐसे मायावी और द्वेषी भी राजगुरु हो जाते हैं। एक दिन यतिवृषभ मुनिराज अपने सारे संघ को साथ लिये सावस्ती में आये। राजा यद्यपि बौद्धधर्म का मानने वाला था, तथापि वह अन्य लोगों को मुनि दर्शन के लिये जाते देख स्वयं भी गया। उसने मुनिराज द्वारा धर्म का पवित्र उपदेश चित्त लगाकर सुना। उपदेश उसे बहुत पसन्द आया। उसने मुनिराज से प्रार्थना कर श्रावकों के व्रत लिये। जैन धर्म पर अब उसकी दिनों-दिन श्रद्धा बढ़ती ही गई। उसने अपने सारे राज्यभर में कोई ऐसा स्थान न रहने दिया जहाँ जिन मन्दिर न हो...

सेठ पुत्र वृषभसेन की कथा

Image
आराधना-कथा-कोश के आधार पर सेठ पुत्र वृषभसेन की कथा स्वर्ग और मोक्ष का सुख देने वाले तथा सारे संसार के द्वारा पूजे माने जाने वाले श्री जिन भगवान् को नमस्कार कर वृषभसेन की कथा लिखी जाती है। पाटिलपुत्र (पटना) में वृषभदत्त नाम का एक सेठ रहता था। पूर्व पुण्य के प्रभाव से इसके पास धन सम्पत्ति खूब थी। इसकी स्त्री का नाम वृषभदत्ता था। इसके वृषभसेन नामक सर्वगुण-सम्पन्न एक पुत्र था। वृषभसेन बड़ा धर्मात्मा और सदा दान-पूजादिक पुण्यकर्मों को करने वाला था। वृषभसेन के मामा धनपति की स्त्री श्रीकान्ता की एक लड़की थी। इसका नाम धनश्री था। धनश्री सुन्दर थी, चतुर थी और लिखी-पढ़ी थी। धनश्री का विवाह वृषभसेन के साथ हुआ था। दोनों दम्पत्ति सुख से रहते थे। नाना प्रकार के विषय-भोगों की वस्तुएँ उनके लिये सदा हाज़िर रहती थी। एक दिन वृषभसेन दमधर मुनिराज के दर्शनों के लिये गया। भक्ति सहित उसकी पूजा-वंदना कर उसने उनसे धर्म का पवित्र उपदेश सुना। उपदेश उसे बहुत रुचा और उसका प्रभाव भी उस पर बहुत पड़ा। वह उसी समय संसार और भ्रम से सुख जान पड़ने वाले विषय-भोगों से उदासीन हो मुनिराज के पास आत्महित की साधक जिन दीक्षा ले गया।...