शब्द और आचरण
शब्द और आचरण सेठ मफतलाल एक बार दिल्ली गए। वहाँ उन्होंने तोता बेचने वाले देखे। तोता बेचने वालों ने तोते को सिखा दिया - आज़ादी, फ्रीडम, स्वतंत्रता.....। तोता यही बोलता। सेठ मफतलाल को तोता पसंद आया तो 100 रुपए देकर तोता खरीद लिया और पाली आ गए। संयोग से वहाँ संत मुनिराज का आगमन हुआ। संत सेठ मफतलाल के घर पहुंचे। तोते का स्वभाव ही पड़ गया था कि ज्यों ही कोई व्यक्ति दिखता, रटे हुए शब्द बोल देता। मुनिराज ने सुना तो सेठ मफतलाल से बोले - सेठ जी! आप तो श्रावक हैं और अपनी तो यही भावना रहती है कि किसी भी आत्मा को बंधन में नहीं रखें और आपने तोते को पिंजरे में बंद कर रखा है। यह श्रावक का आचार नहीं है। अगर यह आज़ादी की अपेक्षा रखता है तो इसे आज़ाद कर दो। सेठ मफतलाल ने मुनिराज की आज्ञा का पालन किया और तोते को पिंजरे से आज़ाद कर दिया। मगर तोता आदत से लाचार था, इसलिए वह पुनः पिंजरे में जा घुसा। सेठ ने ने सोचा कि शायद इसके पूर्वजन्म के संस्कार हैं। उसे खाना दिया और शाम को ले जाकर स्टेशन के पास छोड़ आए। तोता तो बंधन को ही प्रिय मानने लगा था। भला आज़ाद कैसे रहता? पुनः पिंजरे में आ बैठा। सेठ ने तीन दिन तक प्रयास कि...