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Showing posts from November, 2023

शब्द और आचरण

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शब्द और आचरण सेठ मफतलाल एक बार दिल्ली गए। वहाँ उन्होंने तोता बेचने वाले देखे। तोता बेचने वालों ने तोते को सिखा दिया - आज़ादी, फ्रीडम, स्वतंत्रता.....। तोता यही बोलता। सेठ मफतलाल को तोता पसंद आया तो 100 रुपए देकर तोता खरीद लिया और पाली आ गए। संयोग से वहाँ संत मुनिराज का आगमन हुआ। संत सेठ मफतलाल के घर पहुंचे। तोते का स्वभाव ही पड़ गया था कि ज्यों ही कोई व्यक्ति दिखता, रटे हुए शब्द बोल देता। मुनिराज ने सुना तो सेठ मफतलाल से बोले - सेठ जी! आप तो श्रावक हैं और अपनी तो यही भावना रहती है कि किसी भी आत्मा को बंधन में नहीं रखें और आपने तोते को पिंजरे में बंद कर रखा है। यह श्रावक का आचार नहीं है। अगर यह आज़ादी की अपेक्षा रखता है तो इसे आज़ाद कर दो। सेठ मफतलाल ने मुनिराज की आज्ञा का पालन किया और तोते को पिंजरे से आज़ाद कर दिया। मगर तोता आदत से लाचार था, इसलिए वह पुनः पिंजरे में जा घुसा। सेठ ने ने सोचा कि शायद इसके पूर्वजन्म के संस्कार हैं। उसे खाना दिया और शाम को ले जाकर स्टेशन के पास छोड़ आए। तोता तो बंधन को ही प्रिय मानने लगा था। भला आज़ाद कैसे रहता? पुनः पिंजरे में आ बैठा। सेठ ने तीन दिन तक प्रयास कि...

धन्य तेरस

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धन्य तेरस ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) जीवन है पानी की बूँद, कब मिट जाए रे.... होनी अनहोनी कब क्या घट जाए रे.... धर्मध्यान जो करते हैं, प्रभु को रोज़ सुमरते हैं। इस दुःखमय भवसागर से, भव्य जीव वे तिरते हैं। नर भव की नौका, होऽ...-2, मुक्ति तक जाए रे.... जीवन है पानी की बूँद.... योग निरोध किया प्रभु जी, धन्य हुई तेरस प्रभु जी। धन्य बने मेरा जीवन, यही भावना है प्रभु जी। धन तेरस मुक्ति को, होऽ...-2, निकट बताए रे.... जीवन है पानी की बूँद.... धनतेरस का दिन आया, धन-धन की चिन्ता लाया। क्या महत्व है इस दिन का, अब तक समझ नहीं पाया। धनतेरस सब को, होऽ...-2, शुभ ध्यान सिखाए रे.... जीवन है पानी की बूँद.... रागद्वेष को हरना है, वीतराग को वरना है। ज्ञान ध्यान में रहना है-2 भेदज्ञान प्रकटाना है, ध्यान ज्ञान से पाना है। ध्यान बिना ये जीवन, होऽ...-2, व्यर्थ ही जाए रे.... जीवन है पानी की बूँद.... भरहे दुस्समकाले धम्मज्झाणं हवेइ साहुस्स। तं अप्प सहावठिदे ण हु मण्णदू सो वि अण्णाणी।। भरत क्षेत्र में दुषमा नामक पंचम काल में मुनियों के धर्मध्यान होता है तथा वह धर्मध्यान आत्मस्वभाव में...

जम्बू कुमार

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जम्बू कुमार मगध देश में सुग्राम नाम का रम्य नगर था। वहां राष्ट्रकूट नाम का कशाक रहता था। उसकी स्त्री का नाम रेवती था। उसके भवदत्त और भावदेव नाम के दो पुत्र थे। सुस्थित आचार्य का उपदेश सुनकर भवदत्त ने दीक्षा ग्रहण की और कृतार्थ बना। एक बार भवदत्त मुनि विहार करते-करते सुग्राम आए। वहाँ अपने कुटुम्बी जनों को प्रतिबोध को देने के लिए गुरु की आज्ञा लेकर अपने घर गए। उस समय भावदेव का नया-नया विवाह हुआ था। भावदेव की पत्नी नागिला, अनुपम सौंदर्य से युक्त अंधकार में प्रज्ज्वलित दीपशिखा के समान थी। उसका कोमल और कमनीय शरीर स्पर्श से मैला हो जाने जैसा था। भावदेव अपनी पत्नी पर बहुत आसक्त था। वह दिन रात उसके रमणीय आंचल की छाया में पड़ा हुआ उसको निहारा करता था। भाई ने उसे धर्म का उपदेश दिया। यद्यपि उसके मन पर मुनि भाई के उपदेश का किंचित मात्र भी असर नहीं हुआ, किंतु भाई के स्नेहवश वह नवविवाहिता को छोड़कर साधु बन गया और भाई के साथ उसने अन्यत्र विहार कर दिया। उसका शरीर भाई के साथ था लेकिन मन नागिला में खोया था। हर कदम पर उसे प्राणप्रिया की याद आती। कानों में उसकी चूड़ियों की खनक और पायल की रुनझुन गूंजने लगती। ...