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Showing posts from April, 2025

बालक बीरबल की बुद्धिमानी

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बालक बीरबल की बुद्धिमानी जिस समय बालक बीरबल की आयु 15 वर्ष की हुई, माता और पिता दोनों न मालूम किस अगोचर परदेश को चले गए। उस समय गरीब बीरबल के पास केवल 50 रुपए थे। पढ़े-लिखे भी वह बहुत कम थे। खूब सोच-समझकर बीरबल ने पान की दुकान खोली और वह भी किले के पास। उस समय बादशाह अकबर आगरे के किले में निवास कर रहे थे। गोस्वामी तुलसीदास जी को कैद करने के कारण वीर बजरंगी ने बादशाह को दिल्ली के किले से सदा के लिए निकल जाने की आज्ञा दे दी थी। अकबर, जहांगीर और शाहजहां ने आगरे में ही रहकर राज्य किया था। औरंगजेब जरूर दिल्ली के किले में जाकर रहा था, तो हमेशा के लिए इस्लामी राज्य भी खत्म हो गया। बालक बीरबल अपनी पान की दुकान पर बैठा सुपारी काट रहा था और सरस्वती देवी का मंत्र ‘ॐ ऐं ओं’ का जाप कर रहा था। आजकल के विद्यार्थी लोगों को सरस्वती माता का मंत्र ही नहीं मालूम। जो विद्या का बीज मंत्र नहीं जानता और विद्या प्राप्त करना चाहता है, वह सफल नहीं हो सकता। बीरबल ने देखा कि किले से निकलकर एक मियां लपकता हुआ आ रहा है। वह मियां आकर दुकान के सामने खड़ा हो गया और बोला - ‘पंडित जी! आपके पास चूना है?’ बीरबल ने पूछा - ‘कि...

अहिंसा की विजय

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अहिंसा की विजय एक बार काशी नरेश नारायण सिंह ने अयोध्या के राजा चंद्रसेन पर अकारण चढ़ाई कर दी। अपने राज्य का विस्तार करना ही चढ़ाई का कारण था। राजा चंद्रसेन अहिंसा का पुजारी था। उसने सोचा कि युद्ध करने से हजारों आदमी मारे जाएंगे, इसलिए वह राज्य और राजधानी छोड़कर रात में ही कहीं चला गया। उसने संन्यासी का रूप बनाया और काशी जाकर एक मंदिर में रहने लगा। राजा के साथ उसकी एक रानी भी थी। रानी पतिव्रता थी। संकट के समय अपने पति को अकेला छोड़कर वह अपने मायके नहीं गई। साध्वी वेश में राजा के साथ ही रहने लगी। रानी गर्भवती थी। 9 महीने बाद उसके यहां एक पुत्र पैदा हुआ। राजा ने उसका नाम रखा - सूर्यसेन। जब सूर्यसेन 10 वर्ष का हुआ, तब उसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए हरिद्वार के एक गुरुकुल में भेज दिया गया। एक दिन काशी नरेश को पता लगा कि अयोध्या नरेश चंद्रसेन अपनी रानी के साथ साधु वेश में उसी की काशी नगरी में रहता है। राजा बहुत कुपित हुआ। उसने दोनों को गिरफ्तार करवा लिया और दोनों को फांसी की सजा दे दी। यह समाचार पाकर उसका पुत्र सूर्यसेन हरिद्वार से आया और माता-पिता के अंतिम दर्शन करने जेलखाने में गया। पुत्र को प...

शांतिधारा के महत्वपूर्ण शब्दों के अर्थ

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शांतिधारा के महत्वपूर्ण शब्दों के अर्थ द्रावय - अनुसरण करो, नमोऽर्हते भगवते श्रीमते - श्रीमान अर्हन्त भगवान् को नमस्कार हो, मम पापं खण्डय -खण्डय - मेरे पापों को खण्ड-खण्ड करो, जहि दह - छोड़ो दहन करो, श्रीरस्तु वृद्धिस्तु तुष्टिरस्तु पुष्टिरस्तु शांतिरस्तु - लक्ष्मीवान होवे, विकास होवे, संतोष होवे, संवर्धन होवे, शांति होवे, कान्तिरस्तु कल्याणमस्तु - कान्ति होवे, कल्याण होवे, मंगलप्रद हो, कार्य-सिद्ध्यर्थ - कार्य सिद्धि के लिए, सर्वविध्ननिवारणार्थं - तथा सर्व विध्नों को दूर करने के लिए, श्रीमद्भगवदर्हत्सर्वज्ञ-परमेष्ठिपरमपवित्राय नमो नमः - श्री युक्त/प्रतिष्ठित/भगवान् अर्हन्त सर्वज्ञ परमेष्ठी परम/श्रेष्ठ पवित्रता की प्राप्ति के लिए नमस्कार हो, श्रीशान्तिभट्टारकपादपद्मप्रसादात् सद्धर्म श्री-बल आयुः आरोग्य ऐश्वर्य अभिवृद्धिः अस्तु - श्री शान्ति के करने वाले ऐसे श्रद्धेय के चरण कमल के प्रसाद से समीचीन धर्म, बल, आयु, निरोग, ऐश्वर्य की वृद्धि होवे, सद्धर्म-स्वशिष्य-परशिष्यवर्गाः प्रसीदन्तु नः - हम सब समीचीन धर्म वाले स्व शिष्य समूह और पर शिष्य समूह प्रसन्न होवे। ओऽम् वृषभादयः श्रीवर्...