बारह भावना (1 - अथिर भावना)
मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाली मंगतराय जी कृत बारह भावना (पंडित सौरभ जी शास्त्री, इन्दौर द्वारा की गई व्याख्या के आधार पर) 1 . अथिर भावना सूरज चाँद छिपे निकलै, ऋतु फिर फिर कर आवै। प्यारी आयू ऐसी बीतै, पता नहीं पावै। पंडित मंगत राय जी ने दिन-प्रतिदिन हमारे सम्पर्क में आने वाली वस्तुओं के उदाहरण देकर हमें समझाने का प्रयास किया है कि हमारा जीवन कितना क्षण-भंगुर है! हम देखते हैं कि प्रातःकाल सूरज निकलता है तो चाँद आँखों से ओझल हो जाता है और रात्रि में जब सूरज छिप जाता है तो चन्द्रमा का उदय हो जाता है। सूरज और चाँद छिपते रहते हैं और निकलते रहते हैं। यही क्रम सदा चलता रहता है। गर्मी की ऋतु समाप्त होती है तो वर्षा ऋतु आती है, वर्षा-ऋतु के बाद शीत-ऋतु आ जाती है। इसी प्रकार पल दिनों में, दिन महीनों में और महीने वर्षों में बदलते रहते हैं तथा हमारी प्यारी आयु कैसे समाप्त हो जाती है, इसका हमें पता ही नहीं चलता। हाँ..... यह अलग बात है कि संकट की घड़ियाँ बहुत धीरे-धीरे बीतती हैं और सुख का समय पंख लगा कर उड़ने लगता है। सांसों की पूंजी तो गिनकर ही मिलती हैं न! इसलिए हमें यह तो पता होना चाहिए कि हमें...