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सनत्कुमार चक्रवर्ती की कथा

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   आराधना-कथा-कोश के आधार पर सनत्कुमार चक्रवर्ती की कथा सनत्कुमार चक्रवर्ती के पिता ‘अनन्तवीर्य’ भारतवर्ष के ‘वीतशोक’ नामक नगर के राजा थे। उनकी माता का नाम ‘सीता’ था। सनत्कुमार चक्रवर्ती पृथ्वी के 6 खण्डों के स्वामी थे। वे नवनिधि, चौदह रत्न, 84 लाख हाथी, 84 लाख रथ, 18 करोड़ घोड़े, 84 करोड़ यौद्धा, 96 करोड़ धान्य से भरे हुए ग्राम, 96 हज़ार रानियाँ, सदा सेवा में तत्पर 32 हज़ार मुकुटबद्ध राजा इत्यादि की श्रेष्ठ सम्पत्ति के स्वामी थे। वे कामदेव के समान सुन्दर थे और देव व विद्याधर उनकी सेवा किया करते थे। वे अपने विशाल राज्य का कुशलनीति से संचालन करते थे। जिनधर्म के प्रति उनकी गहरी आस्था थी। इस प्रकार वे सुख से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनका वैभव तो बेजोड़ था ही, उनका सौन्दर्य भी इंद्रों को लज्जित करने वाला था। एक दिन सौधर्म स्वर्ग का इंद्र अपनी सभा में पुरुषों के रूप-सौन्दर्य की प्रशंसा कर रहा था पर किसी देव को इस पर विश्वास नहीं हो रहा था कि किसी हाड़ मांस के बने मनुष्य का सौन्दर्य भी देवराज इंद्र से बढ़ कर हो सकता है। इंद्र ने कहा - इस समय भारतवर्ष में एक ऐसा पुरुष है ज...

राजर्षि अमोघवर्ष द्वारा रचित - प्रश्नोत्तर रत्नमालिका (श्लोक 26 - 29)

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राजर्षि अमोघवर्ष द्वारा रचित प्रश्नोत्तर रत्नमालिका श्लोक 26 . चिन्तामणिरिव दुर्लभ-मिह ननुकथयामि चतुर्भद्रम्। किं तद्वदन्ति भूयो विधूत तमसो विशेषेण।। चिन्तामणिः - चिन्तामणि रत्न इव - के समान दुर्लभम् - दुर्लभ इह - इस संसार में ननु - निश्चय से कथयामि - कहे गए हैं चतुर्भद्रम् - चार भद्र किम् - क्या तत् वदन्ति - वह कहते हैं भूयो - बार-बार विधूत तमसो - अज्ञान से रहित विशेषेण - विशेष रूप से प्रश्न 66 . - चिन्तामणि रत्न के समान दुर्लभ इस संसार में क्या है ? उत्तर - निश्चय से चार भद्र कहे गए हैं। विशेष रूप से अज्ञान से रहित (ज्ञानीजन) बार-बार कहते हैं। भावार्थ - ज्ञानीजन बार-बार हमें समझाते हैं कि यदि तुम अपना कल्याण करना चाहते हो तो इन चार कल्याणकारी रत्नों के आभूषण बना कर अपने जीवन में धारण करो क्योंकि ये चिन्तामणि रत्न के समान सब चिन्ताओं को हरने वाले हैं। श्लोक 27 . दानं प्रियवाक्यसहितं ज्ञानमगर्वं क्षमान्वितं शौर्यम्। त्यागसहितं च वित्तं दुर्लभमेतच्चतुर्भद्रम्।। दानम् - दान प्रियवाक्यसहितं - मीठे वचनों सहित दिया गया ज्ञानम् अगर्वम् - गर्व रहित ज्ञान क्षमान्वितं - क्षमा सहित ...

राजर्षि अमोघवर्ष द्वारा रचित - प्रश्नोत्तर रत्नमालिका (श्लोक 24 - 25)

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राजर्षि अमोघवर्ष द्वारा रचित प्रश्नोत्तर रत्नमालिका श्लोक 24 . विद्युत्विलसितचपलं किं दुर्जनं संगतं युवतयश्च। कुलशैलनिष्प्रकम्पा के कलिकालेऽपि सत्पुरुषाः।। विद्युत् विलसित - बिजली के समान चपलं - चंचल किम् - क्या है दुर्जनम् संगतम् - दुर्जन का साथ युवतयः - स्त्रियाँ च - और कुलशैल - कुलाचल पर्वत निष्प्रकम्पाः - निश्चल के - कौन कलिकाले अपि - कलिकाल में भी सत्पुरुषाः - सद् पुरुष प्रश्न 60 . - बिजली के समान चंचल क्या है ? उत्तर - दुर्जन के साथ मैत्री और स्त्रियाँ हैं। प्रश्न 61 . - कलिकाल में भी कुलाचल पर्वत के समान निश्चल कौन है ? उत्तर - सद् पुरुष हैं। भावार्थ - दुष्ट की संगति और स्त्रियों का हास-विलास बिजली की चमक के समान चंचल हैं, जो एक बार दिखने में तो आकर्षक लगती हैं पर उनका परिणाम लाभप्रद नहीं होता। ये स्वयं भी दुर्गति के पात्र बनते हैं और इनकी संगत करने वाला भी कभी सद्गति में नहीं जा पाता। सज्जन कभी दुष्टों की दुष्टता से प्रभावित नहीं होता क्योंकि वह तो कुलाचल पर्वत के समान अपने विचारों पर व अपने आचरण पर अडिग रहता है। तभी तो सज्जन कहलाता है। श्लोक 25 . किं शौच्यं कार्पण्य...