राजर्षि अमोघवर्ष द्वारा रचित - प्रश्नोत्तर रत्नमालिका (श्लोक 24 - 25)

राजर्षि अमोघवर्ष द्वारा रचित

प्रश्नोत्तर रत्नमालिका

श्लोक 24.

विद्युत्विलसितचपलं किं दुर्जनं संगतं युवतयश्च।

कुलशैलनिष्प्रकम्पा के कलिकालेऽपि सत्पुरुषाः।।

विद्युत् विलसित - बिजली के समान

चपलं - चंचल

किम् - क्या है

दुर्जनम् संगतम् - दुर्जन का साथ

युवतयः - स्त्रियाँ

च - और

कुलशैल - कुलाचल पर्वत

निष्प्रकम्पाः - निश्चल

के - कौन

कलिकाले अपि - कलिकाल में भी

सत्पुरुषाः - सद् पुरुष

प्रश्न 60. - बिजली के समान चंचल क्या है?

उत्तर - दुर्जन के साथ मैत्री और स्त्रियाँ हैं।

प्रश्न 61. - कलिकाल में भी कुलाचल पर्वत के समान निश्चल कौन है?

उत्तर - सद् पुरुष हैं।

भावार्थ -

दुष्ट की संगति और स्त्रियों का हास-विलास बिजली की चमक के समान चंचल हैं, जो एक बार दिखने में तो आकर्षक लगती हैं पर उनका परिणाम लाभप्रद नहीं होता। ये स्वयं भी दुर्गति के पात्र बनते हैं और इनकी संगत करने वाला भी कभी सद्गति में नहीं जा पाता।

सज्जन कभी दुष्टों की दुष्टता से प्रभावित नहीं होता क्योंकि वह तो कुलाचल पर्वत के समान अपने विचारों पर व अपने आचरण पर अडिग रहता है। तभी तो सज्जन कहलाता है।

श्लोक 25.

किं शौच्यं कार्पण्यं सति विभवे किं प्रशस्यमौदार्यम्।

तनुतरवित्तस्य तथा प्रभविष्णोर्यत्सहिष्णुत्वम्।।

किं - क्या है

शौच्यम् - शोचनीय

कार्पण्यम् - कृपणता

सति विभवे - वैभव होने पर भी

किं - क्या

प्रशस्यम् - प्रशंसनीय है

औदार्यम् - उदारता

तनुतर - प्रशंसनीय

अवित्तस्य - निर्धन को भी

तथा - वही

प्रभविष्णोः - समर्थ पुरुष

यत् - जो

सहिष्णुत्वम् - सहनशीलता

प्रश्न 62. - शोचनीय क्या है?

उत्तर - कृपणता।

प्रश्न 63. - वैभव होने पर भी क्या प्रशंसनीय है?

उत्तर - उदारता।

प्रश्न 64. - निर्धन को भी क्या प्रशंसनीय है?

उत्तर - वही अर्थात् उदारता।

प्रश्न 65. - समर्थ पुरुष को क्या प्रशंसनीय है?

उत्तर - जो सहनशीलता है।

भावार्थ -

धन-वैभव होते हुए भी लोभ की प्रवृत्ति होना सबसे अधिक शोचनीय है और धनी हो या निर्धन दोनों के मन में उदारता प्रशंसनीय है। समर्थ व्यक्ति तभी प्रशंसा का पात्र बनता है जब उसमें सहनशीलता का भाव होता है।

Comments

Popular posts from this blog

बालक और राजा का धैर्य

सती नर्मदा सुंदरी की कहानी (भाग - 2)

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 18 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

सती कुसुम श्री (भाग - 11)

सती मृगांक लेखा (भाग - 1)

चौबोली रानी (भाग - 24)

सती मृगा सुंदरी (भाग - 1)

सती मदन मंजरी (भाग - 2)

सती गुणसुंदरी (भाग - 3)

सती मदन मंजरी (भाग - 1)