राजर्षि अमोघवर्ष द्वारा रचित - प्रश्नोत्तर रत्नमालिका (श्लोक 26 - 29)

राजर्षि अमोघवर्ष द्वारा रचित

प्रश्नोत्तर रत्नमालिका

श्लोक 26.

चिन्तामणिरिव दुर्लभ-मिह ननुकथयामि चतुर्भद्रम्।

किं तद्वदन्ति भूयो विधूत तमसो विशेषेण।।

चिन्तामणिः - चिन्तामणि रत्न

इव - के समान

दुर्लभम् - दुर्लभ

इह - इस संसार में

ननु - निश्चय से

कथयामि - कहे गए हैं

चतुर्भद्रम् - चार भद्र

किम् - क्या

तत् वदन्ति - वह कहते हैं

भूयो - बार-बार

विधूत तमसो - अज्ञान से रहित

विशेषेण - विशेष रूप से

प्रश्न 66. - चिन्तामणि रत्न के समान दुर्लभ इस संसार में क्या है?

उत्तर - निश्चय से चार भद्र कहे गए हैं। विशेष रूप से अज्ञान से रहित (ज्ञानीजन) बार-बार कहते हैं।

भावार्थ -

ज्ञानीजन बार-बार हमें समझाते हैं कि यदि तुम अपना कल्याण करना चाहते हो तो इन चार कल्याणकारी रत्नों के आभूषण बना कर अपने जीवन में धारण करो क्योंकि ये चिन्तामणि रत्न के समान सब चिन्ताओं को हरने वाले हैं।

श्लोक 27.

दानं प्रियवाक्यसहितं ज्ञानमगर्वं क्षमान्वितं शौर्यम्।

त्यागसहितं च वित्तं दुर्लभमेतच्चतुर्भद्रम्।।

दानम् - दान

प्रियवाक्यसहितं - मीठे वचनों सहित दिया गया

ज्ञानम् अगर्वम् - गर्व रहित ज्ञान

क्षमान्वितं - क्षमा सहित

शौर्यम् - शौर्य

त्यागसहितं - त्याग सहित

च - और

वित्तम् - धन

दुर्लभम् - दुर्लभ

एतत् - ये

चतुर्भद्रम् - चार कल्याण

प्रश्न 67. - चार भद्र कौन हैं?

उत्तर - मीठे वचनों सहित दिया गया दान, गर्व रहित ज्ञान, क्षमा सहित शौर्य और त्याग सहित धन।

ये चार कल्याण दुर्लभ हैं।

भावार्थ -

सुपात्र को मीठे वचन सहित दान देकर मन में विशेष हर्ष का अनुभव करो। वही दान फलित होता है जिसे देने के बाद मन में ख़ुशी का समुद्र हिलोरें मारने लगता है। दुःखी मन से दिया गया दान पुण्य के स्थान पर पाप-बंध का कारण बन जाता है। 

ज्ञान वही सार्थक है जो हमें विनम्रता सिखाता है। सच्ची विद्या वही है जो हमें विनय का पाठ सिखाती है। 

क्षमा करना वीरता की पहचान है, कायरता की नहीं। कहा गया है - क्षमा वीरस्य भूषणम्।

धन के अर्जन के साथ-साथ विसर्जन भी बहुत आवश्यक है।

‘ज्यों जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम।

दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम।।’

श्लोक 28.

इति कण्ठगता विमला प्रश्नोत्तर रत्नमालिका येषाम्।

ते मुक्ताभरणा अपि विभान्ति विद्वत्समाजेषु।।

इति - अंत में

कण्ठगता - कण्ठस्थ करना

विमला - निर्मल

प्रश्नोत्तर - प्रश्न-उत्तर के रूप में

रत्नमालिका - रत्नों की माला

येषाम् - जो

ते - वे

मुक्ताभरणा - मोतियों के आभरणों से रहित

अपि - भी

विभान्ति - सुशोभित होते हैं

विद्वत् समाजेषु - विद्वानों की सभा में

अर्थ - जो इस निर्मल प्रश्नोत्तर रत्नमालिका को कण्ठगत अर्थात् याद कर लेते हैं, वे मोतियों के आभरणों से रहित होते हुए भी विद्वानों की सभा में सुशोभित होते हैं।

श्लोक 29.

विवेकात्यक्ताराज्येन राज्ञेयं रत्नमालिका।

रचितोऽमोघवर्षेण सुधियां सदलंकृति।।

विवेकात् - विवेकपूर्वक

त्यक्ता - छोड़ दिया है

राज्येन - राज्य को

राज्ञेयं - राजा के द्वारा

रत्नमालिका - रत्नों की माला

रचितः - रची गई है

अमोघवर्षेण - अमोघवर्ष द्वारा

सुधियां - बुद्धिमान भक्तों के लिए

सद् अलंकृति - आभूषणस्वरूप

अर्थ - जिन्होंने विवेकपूर्वक राज्य छोड़ दिया है, उन राजर्षि अमोघवर्ष द्वारा बुद्धिमान भक्तों के लिए आभूषणस्वरूप यह रत्नमालिका रची गई है।

‘इति राजर्षि अमोघवर्ष द्वारा रचित प्रश्नोत्तर रत्नमालिका’

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