नम्रता का पाठ
नम्रता का पाठ जॉर्ज वॉशिंगटन मार्ग की खोज में थे। दूर, वृक्ष की छाया में एक सैनिक खड़ा हुआ उन्हें दिखाई दिया। जॉर्ज ने उससे पूछा - भाई! यह रास्ता किस ओर जाता है ? सैनिक अभिमान के विंध्याचल पर आरूढ़ होकर बोला - मेरा काम क्या रास्ता बताने का है ? पृच्छक जॉर्ज ने कहा - भाई मेरे! आप का कार्य कुछ और हो सकता है, लेकिन रास्ता बताने में कोई हर्ज़ तो नहीं है। छोड़िए, मैं और किसी से पूछ लूँगा, पर इतना बता दो कि आप किस पद पर हैं ? सैनिक काषायिक बदली से पूर्णरूपेण घिर चुका था। वह बोला - क्यों भाई ? तुम अंधे हो क्या ? मेरी वेशभूषा से क्या तुम नहीं पहचान सकते कि मैं कौन हूँ ? वार्ता वेग पकड़ चुकी थी। जार्ज ने स्थिर वाणी में ही कहा - जनाब! आप सिपाही हैं। सैनिक का स्वर आरोह को प्राप्त हुआ - नहीं! नहीं!! मेरा पद बहुत ऊँचा है। क्या आप हवलदार हैं ? - जार्ज ने पूछा। सैनिक के स्वर में उत्तरोत्तर भास्वरता की चाशनी घुलती जा रही थी। वह बोला - अरे भाई! उस से भी ऊँचा! तो भाई! आप दरोगा होंगे। नहीं! उस से भी ऊँचा। तो आप सूबेदार हैं ? सैनिक सोचने लगा कि किस झक्की से पाला पड़ गया। पूछे ही जा रहा है। वह पिण्ड छुड़ाने क...