सज्जनता

सज्जनता

किसी दोस्त ने एक भले आदमी को गाली दी। उसे सुनकर भले आदमी ने कहा - तुम कितने अच्छे हो! अपने स्वभाव के कारण तुमने मेरे दुर्गुणों को इतना कम करके बताया है। तुमने मुझे जितना बुरा कहा है, मैं उससे कहीं ज्यादा बुरा हूँ।

गाली देने वाला यह सुनकर स्तब्ध रह गया। उस दिन से सचमुच उसका व्यवहार बदल गया। कोई बुद्धिमान व्यक्ति कभी किसी मूर्ख से विवाद नहीं करता और अपनी आलोचना सुनकर भी वह अपनी सज्जनता से उसके हृदय को अपने वश में कर लेता है।

संत अनाम डूबते हुए सूर्य की ओर देखते हुए वैभव की क्षणभंगुरता के बारे में सोच रहे थे। तभी एक आदमी उनके पास पहुंचा और विनीत भाव से बोला - भगवन्! मैं पुरूदेश का धनी सेठ हूँ। जब मैं तीर्थ यात्रा के लिए चलने लगा, तो मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा कि आप कई स्थानों की यात्रा करेंगे। कहीं से मेरे लिए शांति, सुख और प्रसन्नता मोल ले आना। मैंने अनेक स्थानों पर ढूंढा, पर यह तीनों वस्तुएं कहीं नहीं मिली। आपको शांत, सुखी और प्रसन्न देखकर ही आपके पास आया हूँ। संभव है, आपके पास ये उपलब्ध हो जाएँ।

संत मुस्कुराते हुए अपनी कुटिया के भीतर गए और लौटकर एक कागज की पुड़िया उसे देते हुए बोले - यह अपने मित्र को दे देना और हाँ! रास्ते में इसे कहीं खोलना मत।

सेठ ने पुड़िया ले जाकर अपने मित्र को दे दी। मित्र ने एकांत में ले जाकर उसे खोला और उसमें रखी औषधि का सेवन करके कुछ ही दिनों में सुखी, शांत और प्रसन्न हो गया। एक दिन सेठ अपने मित्र के पास जाकर बोला - मित्र! मुझे भी अपनी औषधि में से थोड़ा दे दो, तो मेरा भी कल्याण हो जाए।

मित्र ने पुड़िया खोलकर दिखाई। उसमें लिखा था - ‘अंतःकरण में विवेक और संतोष की प्रतिष्ठापना से ही स्थाई सुख, शांति और प्रसन्नता मिलती है।’

कोई भी कार्य करो तो विवेक से करो। उसके अच्छे-बुरे और हानि-लाभ की जाँच पहले ही कर लो। चाहे दुःख हो या सुख, हर परिस्थिति में संतोषवृत्ति धारण करो। उसी से हमारे जीवन में सुख, शांति और प्रसन्नता का अनुभव हो सकता है, अन्यथा हम सदैव दुःखी, अशांत और अप्रसन्न रह कर ही अपना बहुमूल्य जीवन गँवा देंगे।

सुविचार - पवित्रता, दृढ़ संकल्प और धैर्य की पूँजी पुरूषार्थ करने के लिए व सुख, शांति और प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

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