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Showing posts from January, 2024

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 20 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

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मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 20 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) आज दया व करुणा की मूर्ति परम पूज्य मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज ने हिसार के ‘मोक्ष आश्रम’ के वृद्धजनों के बीच जाकर उनका हाल पूछा और उन्हें सम्बोधित करते हुए उनके खुशहाल जीवन की भावना भाई। मुनि श्री ने कहा - प्यारे बंधुओं! यह हमारा भ्रम है कि दुनिया में हमें कोई ग़रीब दिखाई देता है और कोई अनाथ। इस दुनिया में कोई ग़रीब नहीं है। आध्यात्म-दृष्टि से सभी परम शक्ति सम्पन्न हैं। किसी को बेचारा मत कहो। यह तो परमात्मा का अपमान है। ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ, रघुनाथ के देश में कोई अनाथ नहीं हो सकता। हर मनुष्य अपनी जीवंत चेतना का सम्राट है पर वह आत्म-सत्ता को भूल गया है। महानुभावों! जो दया व करुणा की अमृतधारा मन के अंदर से स्रावित होती है, वह संसार की रुक्षता को दूर कर सकती है; पर वह आज कहीं दिखाई नहीं देती। व्यक्ति, परिवार, संघ, समाज, देश और सृष्टि के बीच सारे संबंध बिखराव की दिशा में जा रहे हैं। परिवार में निरंतर तेजी से बढ़ती हुई विपरीतता एवं विषमता जीवन को ढंग से नहीं जीने...

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 19 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

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मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 19 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) आज मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज ने कोठी नंबर 74, सैक्टर - 13, हिसार में श्री हरि प्रकाश जैन जी के निवास स्थान पर जिनवाणी के रसपान का महत्त्व बताते हुए कहा कि जिनवाणी के रसपान से हृदय में शांति, सुख व आनन्द की अनुभूति होती है। चेतना शुद्ध ध्यान की ओर अग्रसर होती है जो हमें सिद्धपद तक ले जाने वाली है। आज पंचम काल में साक्षात् अरिहंतों का समागम व सान्निध्य नहीं मिल सकता लेकिन उनकी वाणी आज भी हमारा मोक्षमार्ग प्रशस्त करने वाली है, समस्त दुःखों को हरने वाली है, चतुर्गति के भ्रमण से मुक्त कराने वाली है। ऐसी जिनवाणी के रसपान के लिए हमें हर समय तत्पर रहना चाहिए। संसार में 4 प्रकार की वस्तुएं हैं। 1. कुछ वस्तुएँ हमें प्रारंभ में सुख देती हैं और बाद में कष्टकारी हो जाती हैं। सारे इन्द्रिय सुख इसी श्रेणी में आते हैं। 2. कुछ वस्तुएँ हमें प्रारंभ में दुःख देती हैं और बाद में सुखकारी हो जाती हैं। 3. कुछ वस्तुएँ हमें प्रारंभ में भी दुःख देती हैं और बाद में भी दुःखकारी ...

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 26 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

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मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 26 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) मुनि श्री ने 26 अक्तूबर को नागोरी गेट के बड़े मंदिर जी से डॉ. भीमसेन जैन के निवास स्थान 523, अग्रवाल कॉलोनी, हिसार की ओर विहार किया। वहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने महाराज श्री के मंगल प्रवचनों का लाभ उठाया। उन्होंने अपने प्रवचन में बताया कि एक गृहस्थ को कैसे अपने जीवन में धन और धर्म का सामंजस्य  बिठाना चाहिए। धर्म से धन मिलता है और धन को पुण्य कार्य में लगाने से धर्म बढ़ता है। आज व्यक्ति अपने पास होने वाली धन की कमी के कारण नहीं, दूसरे के पास होने वाली अधिकता के कारण दुःखी होता रहता है। जब हमारे अन्दर से लोभ समाप्त होगा, तभी हमारे अन्दर पवित्रता आएगी। लोभ को ही कहते हैं - निन्यानवे का फेर। 99 से 100 और 100 से हज़ार और हज़ार से लाख बनाने के चक्कर में हम अपने सारे सुखों से वंचित रह जाते हैं। समुद्र, श्मशान, पेट और तृष्णा कभी तृप्त नहीं हो सकते। और अधिक की लालसा बनी ही रहती है। कहा गया है - ‘तृष्णा की खाई खूब भरी, पर रिक्त रही, वह रिक्त रही।’ खाने का लाल...

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 21 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

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मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 21 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) आज मुनि श्री के हिसार नगर-भ्रमण के कार्यक्रम का समापन हुआ और वे श्री जिनेन्द्र कुमार जैन, देवेन्द्र कुमार जैन के निवास स्थान ‘गार्डन विला’ से विहार करके श्री बड़े मंदिर जी, नागोरी गेट में पधारे। नगरवासियों ने बड़े मंदिर जी में उनका हार्दिक स्वागत किया। आज अपने प्रवचन में मुनि श्री ने बताया कि हम जीवन के अंत में इस संसार से अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकते, लेकिन विडम्बना यह है कि हमारा सारा जीवन वही नश्वर धन बटोरने में व्यर्थ चला जाता है। इसके विपरीत जो पुण्य की सम्पत्ति हमारे साथ अगले जन्म तक जाने वाली है, उस ओर हम किंचित भी पुरुषार्थ नहीं करते। संत हमें समझाते हैं कि यदि तुम्हारे साथ कुछ जाने वाला है तो केवल धर्म रूपी धन ही है। वरना जीवन का अंत हो जाएगा, पर धन की तृष्णा का कभी अंत नहीं होगा। वह तो ज्यों की त्यों बनी रहेगी। यदि हम मोक्ष पाना चाहते हैं और संसार के दुःखों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो अपनी शक्ति व अपना पुरुषार्थ धर्म कमाने में लगाओ, धन कमाने में नह...