मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 26 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश
मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 26 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश
(परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से)
मुनि श्री ने 26 अक्तूबर को नागोरी गेट के बड़े मंदिर जी से डॉ. भीमसेन जैन के निवास स्थान 523, अग्रवाल कॉलोनी, हिसार की ओर विहार किया। वहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने महाराज श्री के मंगल प्रवचनों का लाभ उठाया। उन्होंने अपने प्रवचन में बताया कि एक गृहस्थ को कैसे अपने जीवन में धन और धर्म का सामंजस्य बिठाना चाहिए। धर्म से धन मिलता है और धन को पुण्य कार्य में लगाने से धर्म बढ़ता है।
आज व्यक्ति अपने पास होने वाली धन की कमी के कारण नहीं, दूसरे के पास होने वाली अधिकता के कारण दुःखी होता रहता है। जब हमारे अन्दर से लोभ समाप्त होगा, तभी हमारे अन्दर पवित्रता आएगी। लोभ को ही कहते हैं - निन्यानवे का फेर। 99 से 100 और 100 से हज़ार और हज़ार से लाख बनाने के चक्कर में हम अपने सारे सुखों से वंचित रह जाते हैं।
समुद्र, श्मशान, पेट और तृष्णा कभी तृप्त नहीं हो सकते। और अधिक की लालसा बनी ही रहती है। कहा गया है - ‘तृष्णा की खाई खूब भरी, पर रिक्त रही, वह रिक्त रही।’ खाने का लालच तो इतना अधिक है कि व्यक्ति सुबह उठते ही खाना आरम्भ करता है और जब तक सो नहीं जाता, तब तक वह खाता ही रहता है। और तो और उसे स्वप्न में भी रसगुल्ले ही दिखाई देते हैं। उसका सारा जीवन खाने के लिए कमाने में ही निकल जाता है।
अपना चित्र तभी दिखाई देता है, जब चित्त पवित्र होता है। जैसे स्थिर पानी में ही हम अपनी परछाई देख सकते हैं, हिलते हुए पानी में तो हम भी हिलते हुए ही दिखाई देते हैं। अतः अपने मन को शांत और स्थिर बनाओ तथा अपने अन्दर अच्छे गुणों को धारण करो और बुराइयों का त्याग करो। पाँच पापों का सर्वथा त्याग न कर सको तो अणुव्रत के रूप में इनका पालन करो और अपने जीवन को मोक्ष मार्ग पर अनवरत आगे बढ़ाने का प्रयास करो।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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