सती कनक सुंदरी (भाग - 5)
सती कनक सुंदरी (भाग - 5) मदन ने जब यह सुना तो उसने विचार किया कि अरुण महल जाने की चाबी तो वह मुझसे ही मांगेगी। मैं आज घर ही नहीं जाऊंगा। मैं अकेले ही अरुणा देवी को देखने जाऊंगा। मदन कुमार गुलाबो के घर पहुंचा और जब देवी के आने का समय हुआ तो वह कनकसेन के महलों में पहुंच गया। कनक सुंदरी गुप्त मार्ग से पहले ही अपने महल में पहुंच गई। मदन कुमार झूले में बैठी अरुणा देवी को देखता ही रह गया। कैसा भव्य रूप था उसका! लाल वस्त्र पहने हुए अरुणा देवी लालमणि के आभूषण पहने हुए थी। चारों ओर लालिमा का सौंदर्य बिखरा हुआ था। अरुणा देवी लाल वीणा को हाथ में लिए हुए बजा रही थी और धीरे-धीरे कुछ गुनगुना रही थी। मदन को देखकर देवी ने गाना बजाना बंद कर दिया और एक टक मदन को देखने लगी। धीरे-धीरे मदन अरुणा देवी के पास आ गया और उससे पूछा कि हे देवी! तुम किस लोक से आई हो? इस अरुण महल में तुम्हारी शोभा इसी महल के समान लग रही है। अरुणा देवी ने कहा - मैं सुमतिचन्द्र विद्याधर की पुत्री हूँ। मेरी माता भाग्यवती है। मैं वैताढ्य पर्वत पर रहती हूँ और वहाँ से यहाँ घूमने आई हूँ। मेरे प्राण लाल महल में रहते हैं। मदन बोला - देवी! त...