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Showing posts from January, 2025

सती कनक सुंदरी (भाग - 5)

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सती कनक सुंदरी (भाग - 5) मदन ने जब यह सुना तो उसने विचार किया कि अरुण महल जाने की चाबी तो वह मुझसे ही मांगेगी। मैं आज घर ही नहीं जाऊंगा। मैं अकेले ही अरुणा देवी को देखने जाऊंगा। मदन कुमार गुलाबो के घर पहुंचा और जब देवी के आने का समय हुआ तो वह कनकसेन के महलों में पहुंच गया। कनक सुंदरी गुप्त मार्ग से पहले ही अपने महल में पहुंच गई। मदन कुमार झूले में बैठी अरुणा देवी को देखता ही रह गया। कैसा भव्य रूप था उसका! लाल वस्त्र पहने हुए अरुणा देवी लालमणि के आभूषण पहने हुए थी। चारों ओर लालिमा का सौंदर्य बिखरा हुआ था। अरुणा देवी लाल वीणा को हाथ में लिए हुए बजा रही थी और धीरे-धीरे कुछ गुनगुना रही थी। मदन को देखकर देवी ने गाना बजाना बंद कर दिया और एक टक मदन को देखने लगी। धीरे-धीरे मदन अरुणा देवी के पास आ गया और उससे पूछा कि हे देवी! तुम किस लोक से आई हो? इस अरुण महल में तुम्हारी शोभा इसी महल के समान लग रही है। अरुणा देवी ने कहा - मैं सुमतिचन्द्र विद्याधर की पुत्री हूँ। मेरी माता भाग्यवती है। मैं वैताढ्य पर्वत पर रहती हूँ और वहाँ से यहाँ घूमने आई हूँ। मेरे प्राण लाल महल में रहते हैं। मदन बोला - देवी! त...

सती कनक सुंदरी (भाग - 4)

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सती कनक सुंदरी (भाग - 4) इधर राजा की नींद खुली। वह इधर-उधर देखने लगा। कनक सुंदरी वहां नहीं थी। वह अपने साथ कर्णफूल व मोतियों का थाल भी ले गई थी। वह क्रोध से पागल हो उठा और गुप्त मार्ग से कनक सुंदरी के घर की ओर गया। द्वार बंद देखकर वह लौट आया। उसका कामवेग प्रतिशोध में बदल गया। राजा दरबार में आया और अपने सेवक को भेज कर उसने धनदत्त सेठ को बुलाया। सेठ डरता हुआ राजा के पास आया। राजा ने एक समस्या बता कर कड़े स्वर में धनदत्त को कहा कि 7 दिन तक मुझे इस समस्या का हल मिल जाना चाहिए, वरना उसे परिवार सहित सूली पर चढ़ा दूंगा। धनदत्त परेशान होकर घर आया। कनक सुंदरी समझ गई कि अब राजा बदला लेने की कोशिश करेगा। वह ससुर जी का चेहरा देखकर जान गई कि दाल में कुछ काला है। उसने ससुर जी से पूछा तो उन्होंने सब कुछ बता दिया। यह सब सुनने के बाद कनक सुंदरी ने ससुर जी से कहा - पिताजी! आप चिंता मत कीजिए। 7 दिन तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है। आप अभी राजा के पास जाएं और उनसे कहें कि आपके प्रश्न का उत्तर मेरी बहू पुत्रवधू राजसभा में देगी। सेठ खुशी-खुशी राजा के पास पहुंचा और कहा - राजन्! आपने मुझे 7 दिन का समय दिया था, ल...

सती कनक सुंदरी (भाग - 3)

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सती कनक सुंदरी (भाग - 3) यह उत्सव कनक सुंदरी को बहुत महंगा पड़ा। तैयार होने की जल्दी में जो कर्णफूल कुछ ढीला था, वह नीचे गिर पड़ा। कनक सुंदरी लौट कर आई, तो उसने सभी आभूषण उतार कर रख दिए और कर्णफूल के खोने का भेद किसी को नहीं बताया। उसने सोचा कि कर्णफूल खोने की खबर सुनकर उसके सास-ससुर को दुःख होगा। उनको कहने से भी वह कर्णफूल मिलने से तो रहा। यह सोचकर कनक सुंदरी ने कर्णफूल खोने की बात किसी को नहीं बताई। कनक सुंदरी का हीरा जड़ित कर्णफूल राजा अरिमर्दन की दासी को प्राप्त हो गया। दासी ने वह कर्णफूल राजा को दे दिया। नियम से कहीं लावारिस अवस्था में पाई हुई चीज या तो उसको खोने वाले की होती है या राजा की होती है। पाने वाले का उस पर कोई अधिकार नहीं होता। राजा अरिमर्दन कनक सुंदरी के कर्णफूल को बहुत देर तक देखता रहा। फिर दासी से पूछा कि यह मूल्यवान कर्णफूल किसका है? तू इस बात का पता लगा। दासी बोली - महाराज! यह कैसे पता चलेगा क्योंकि प्रमोदवन में सैंकड़ों नारियाँ आती हैं। केवल इतना कहा जा सकता है कि यह किसी बड़े घर की बहू-बेटी का ही होगा। राजा ने दासी को जिम्मेदारी से भागने नहीं दिया और बोला - यह कर्णफूल...

सती कनक सुंदरी (भाग - 2)

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सती कनक सुंदरी (भाग - 2) कामलता को पता चला कि मदन कुमार का विवाह एक सुंदरी से तय हुआ है। इससे कामलता बहुत चिंतित हुई। उसने सोचा कि अगर इसका विवाह हो गया तो मेरी बेटी गुलाबो को तो कोई नहीं पूछेगा और वह कन्या गुलाबो से सुंदर भी अधिक है। विवाह के बाद मेरी आमदनी बंद हो जाएगी। इसलिए इस विवाह को किसी तरह रोकना चाहिए। तभी मदन वहां आ गया और वह उठकर उसका स्वागत करने लगी। दोनों आमने-सामने बैठकर बातें करने लगे। कामलता कहने लगी - हमने सुना है कि आपका विवाह पक्का हो गया है। यह तो बहुत खुशी की बात है। मदन ने कहा - गुलाबो को तो इस बात से ईर्ष्या हुई है। वह तो मुझसे मिलने भी नहीं आई। कामलता ने कहा - तुम दोनों के बीच में मैं कुछ नहीं कहूंगी। तुम जानो या गुलाबो जाने। मुझे तो खुशी हुई है। आपने अभी तक अपनी होने वाली पत्नी की तस्वीर नहीं दिखाई। देखें तो, कैसी है चंपापुर सुंदरी? मदन बोला - आप ने तो मेरे मन की बात कह दी। मैं कनक सुंदरी का चित्र लेकर आपके पास आया हूं। मदन ने वह चित्र वेश्या के सामने रख दिया और वेश्या वह चित्र देखती ही रह गई। उसके मन में जो भाव उठे, वे उसने छुपा लिए और मदन से बोली - कुंवर सा! ...