सती कनक सुंदरी (भाग - 3)

सती कनक सुंदरी (भाग - 3)

यह उत्सव कनक सुंदरी को बहुत महंगा पड़ा। तैयार होने की जल्दी में जो कर्णफूल कुछ ढीला था, वह नीचे गिर पड़ा। कनक सुंदरी लौट कर आई, तो उसने सभी आभूषण उतार कर रख दिए और कर्णफूल के खोने का भेद किसी को नहीं बताया। उसने सोचा कि कर्णफूल खोने की खबर सुनकर उसके सास-ससुर को दुःख होगा। उनको कहने से भी वह कर्णफूल मिलने से तो रहा। यह सोचकर कनक सुंदरी ने कर्णफूल खोने की बात किसी को नहीं बताई।

कनक सुंदरी का हीरा जड़ित कर्णफूल राजा अरिमर्दन की दासी को प्राप्त हो गया। दासी ने वह कर्णफूल राजा को दे दिया। नियम से कहीं लावारिस अवस्था में पाई हुई चीज या तो उसको खोने वाले की होती है या राजा की होती है। पाने वाले का उस पर कोई अधिकार नहीं होता।

राजा अरिमर्दन कनक सुंदरी के कर्णफूल को बहुत देर तक देखता रहा। फिर दासी से पूछा कि यह मूल्यवान कर्णफूल किसका है? तू इस बात का पता लगा।

दासी बोली - महाराज! यह कैसे पता चलेगा क्योंकि प्रमोदवन में सैंकड़ों नारियाँ आती हैं। केवल इतना कहा जा सकता है कि यह किसी बड़े घर की बहू-बेटी का ही होगा।

राजा ने दासी को जिम्मेदारी से भागने नहीं दिया और बोला - यह कर्णफूल मेरे पास सुरक्षित है। तुम्हें इसे पहनने वाली स्त्री का पता लगाना होगा। जैसे भी हो, वैसे ही पता लगाओ। मैं उसे उसका कर्णफूल अपने हाथ से सौंपूंगा। दासी! प्रजा रक्षक होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है कि जिसकी कोई चीज हमारे प्रमोदवन में खोई है, उसके स्वामी तक पहुंचा दी जाए और हमारी बात मानना भी तुम्हारा कर्तव्य है।

दासी कर्णफूल के मालिक को एक वर्ष तक भी नहीं खोज पाई। वसंत उत्सव की दोबारा तैयारियां होने लगी तो राजा ने उसी दासी को बुलाकर कहा कि दासी! एक साल पूरा हो रहा है। तुम कर्णफूल की मालकिन को खोज नहीं पाई हो।

दासी ने लज्जा से सर झुका दिया।

राजा ने कहा - मैं तुम्हारी मजबूरी समझ सकता हूं, लेकिन उसका पता अवश्य लगाओ। मेरे आदेशानुसार वसंत उत्सव के दिन नगरी की प्रत्येक नारी का प्रमोदवन में जाना अनिवार्य होता है। अब तुम गुप्त विधि से उस स्त्री का पता लगाओ जो प्रमोदवन में नहीं जा रही हो। अवश्य ही यह उसी स्त्री का कर्णफूल होगा।

दासी बोली - महाराज! मुझे सूत्र मिल गया है। अब मैं आगे का कार्य कर लूंगी।

4 दिन के बाद वसंत उत्सव का दिन आया। सभी नारियां आभूषण पहनकर प्रमोदवन में जा रही थी। राजा अरिमर्दन की दासी सबको गौर से देख रही थी। देखते-देखते वह सेठ धनदत्त के घर पहुंच गई और उसे पता लग गया कि धनदत्त की पुत्रवधू कनक सुंदरी उत्सव में नहीं जा रही।

दासी ने सेठ धनदत्त से बात की - सेठ जी! राजा की आज्ञा है कि कोई भी स्त्री आज के दिन घर पर नहीं रहेगी। मैं हर घर में जाकर यही देखती फिर रही हूं। आपके घर से भी सभी स्त्रियों को जाना चाहिए।

सेठ ने कहा - तुम स्वयं कनक सुंदरी से बात कर लो। मैंने और उसकी सास ने बहुत समझाया है लेकिन वह जाना ही नहीं चाहती।

दासी कनक सुंदरी के पास पहुंची और उससे पूछा कि तुम प्रमोदवन में क्यों नहीं जा रही हो? राजघराने की सभी स्त्रियां जा रही हैं। आज के दिन ही राज्य की सब नारियां आपस में मिल पाती हैं। उठो और तैयार हो जाओ तथा मेरे साथ प्रमोदवन में चलो।

कनक सुंदरी ने अपनी मजबूरी बताई - बहिन! मैं जाकर क्या करूंगी? पिछली बार गई थी तो अपना कर्णफूल खोकर आई थी। क्या इस बार दूसरे कर्णफूल को खो आऊं और फिर एक कर्णफूल पहनकर कैसे जाऊं? मेरे जाने से सास-ससुर को भी इसके खोने का पता लग जाएगा। मुझे क्षमा करो। मैं वहाँ नहीं जा सकूंगी।

दासी मन ही मन खुश होती हुई बोली - कनक सुंदरी! तुम चिंता क्यों करती हो? तुम्हारा कर्णफूल राजा के पास है। अगर नहीं जाना चाहती तो मत जाओ। मेरे साथ चलकर राजा से अपना खोया हुआ कर्णफूल तो ले लो।

कनक सुंदरी ने कहा - मैं राजा के पास कर्णफूल लेने नहीं जाऊंगी। इससे मेरी बहुत बदनामी होगी। यदि वह मेरा कर्णफूल देना ही चाहते हैं, तो तुम्हारे हाथों मुझ तक पहुंचा दें।

दासी ने कहा - राजा के पास जाने में कोई बुराई नहीं है। वह साल भर से तुमसे मिलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उनकी इच्छा है कि वह अपने हाथ से तुम्हें कर्णफूल पहनाएं।

कनक सुंदरी समझ गई कि राजा कामान्ध हो गया है। किसी युक्ति से उसे सन्मार्ग पर लाना चाहिए, जिससे मेरे शील की भी रक्षा हो जाए और राजा के होश भी ठिकाने आ जाएं।

यह सोचकर कनक सुंदरी ने दासी के सामने शर्त रखी कि मैं राजा से मिलूँगी लेकिन इस तरह नहीं। यदि वह मेरे कक्ष तक एक गुप्त मार्ग का निर्माण कराएं, तो उस मार्ग से मैं उनके पास आ जाऊंगी।

इस प्रकार यह सुनकर दासी खुश हो गई। वह सीधे राजा के पास गई और उसने सब बातें राजा को बताई।

राजा ने दासी को अपने गले का हार पुरस्कार में दिया और कहा कि आज मुझे पता चला कि तू कितनी चतुर है। जो कुछ मैं चाहता था, वह सब तुमने अपनी चतुराई से कर दिया है। काम पूरा होने पर और भी इनाम मिलेगा।

दासी और राजा दोनों खुश थे। राजा ने शीघ्र ही एक सुरंग का निर्माण शुरू कर दिया। 6 महीने में राजा के निजी कक्ष से कनक सुंदरी के निजी कक्ष तक एक गुप्त मार्ग तैयार हो गया। गुप्त मार्ग के द्वारा ही दासी कनक सुंदरी से मिली और राजा से मिलने का दिन और समय निश्चित कर लिया।

रात के द्वितीय पहर में मिलना तय हुआ। मिलन कक्ष में बैठा राजा अरिमर्दन कनक सुंदरी से मिलने की प्रतीक्षा कर रहा था।

कनक सुंदरी राजा के पास जाने को तैयार हुई। क्योंकि रात्रि का दूसरा पहर शुरू हो गया था, सभी सो गए थे। कनक सुंदरी उठी और मोतियों से भरा थाल व सुई धागा लेकर राजा के पास गई। राजा ने उठकर उसका स्वागत किया और उसका कर्णफूल दिखाते हुए बोला - क्या यह कर्णफूल तुम्हारा है? इस कर्णफूल की वजह से ही आज तुम मेरे साथ हो। मैं सोच रहा हूं कि मैं कर्णफूल को धन्यवाद दूं या तुम्हें। तुम तो अपनी ही हो। धन्यवाद का पात्र तो यह कर्णफूल ही है, जिसने हम दोनों को मिलाया है। आओ, इस शैया पर आओ और रात्रि को सार्थक करो।

कनक सुंदरी अपने स्थान पर ही खड़ी रही। उसके रूप को देखकर राजा होशोहवास खो बैठा। उसके सब्र का बांध टूटता जा रहा था। कनक सुंदरी समझ गई कि इस पर काम का भूत सवार है, इसलिए यह अपनी सब मर्यादा भूल रहा है।

कनक सुंदरी ने राजा से कहा - राजन्! संतोष का फल मीठा होता है। मैं तो अब आपके पास आ ही गई हूं। यह रात अब अपनी ही है।

कुछ देर तक कनक सुंदरी मौन रही, फिर मुक्ता थाल राजा के सामने रखती हुई बोली - इन सब मोतियों को पिरो कर एक माला बनाइए और कर्णफूल के साथ-साथ इस मुक्तामाल को भी अपने हाथ से पहनाइए। तब तक मैं इंतजार करूंगी।

कामातुर राजा मोती पिरोने बैठ गया। वह जितनी जल्दी करता, उतनी ही देर हो जाती। जल्दी में वह सभी मोतियों को पिरो नहीं पाया। एक पिरोता, तो दूसरा नीचे गिर जाता। राजा को मोती पिरोते-पिरोते नींद आ गई। सुई धागा हाथ में लिए हुए ही राजा सो गया। कनक सुंदरी ने अवसर का लाभ उठाया और बिना आहट के अपने मोती और कर्णफूल लेकर अपने घर आ गई। आते ही उसने गुप्त मार्ग का द्वार बंद कर दिया। सुबह तक सुरंग द्वार को पक्का करवा दिया।

क्रमशः

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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