सती कनक सुंदरी (भाग - 2)

सती कनक सुंदरी (भाग - 2)

कामलता को पता चला कि मदन कुमार का विवाह एक सुंदरी से तय हुआ है। इससे कामलता बहुत चिंतित हुई। उसने सोचा कि अगर इसका विवाह हो गया तो मेरी बेटी गुलाबो को तो कोई नहीं पूछेगा और वह कन्या गुलाबो से सुंदर भी अधिक है। विवाह के बाद मेरी आमदनी बंद हो जाएगी। इसलिए इस विवाह को किसी तरह रोकना चाहिए।

तभी मदन वहां आ गया और वह उठकर उसका स्वागत करने लगी। दोनों आमने-सामने बैठकर बातें करने लगे।

कामलता कहने लगी - हमने सुना है कि आपका विवाह पक्का हो गया है। यह तो बहुत खुशी की बात है।

मदन ने कहा - गुलाबो को तो इस बात से ईर्ष्या हुई है। वह तो मुझसे मिलने भी नहीं आई।

कामलता ने कहा - तुम दोनों के बीच में मैं कुछ नहीं कहूंगी। तुम जानो या गुलाबो जाने। मुझे तो खुशी हुई है। आपने अभी तक अपनी होने वाली पत्नी की तस्वीर नहीं दिखाई। देखें तो, कैसी है चंपापुर सुंदरी?

मदन बोला - आप ने तो मेरे मन की बात कह दी। मैं कनक सुंदरी का चित्र लेकर आपके पास आया हूं।

मदन ने वह चित्र वेश्या के सामने रख दिया और वेश्या वह चित्र देखती ही रह गई। उसके मन में जो भाव उठे, वे उसने छुपा लिए और मदन से बोली - कुंवर सा! जरा ठहरिए। मैं यह तस्वीर गुलाबो को दिखा कर आती हूं।

मदन बोला - ठीक है, और वह भीतर चली गई। अपनी दुष्टता से उसने तस्वीर की आँख में दाग लगा दिया और चित्र को वापस देने के लिए कमरे में हंसती हुई आयी और हंसती ही रही।

मदन ने आश्चर्य से पूछा - तुम ऐसे क्यों हंस रही हो? क्या कारण है?

कामलता गंभीर होकर बोली - जो बात मैं और तुम नहीं देख पाए, वह गुलाबो ने अपनी पहली नज़र में पकड़ ली। यह विवाह तुम्हारे लिए अभिशाप होगा।

मदन परेशान होकर बोला - क्या तुम ज्योतिषी हो? ऐसा कैसे कह रही हो कि यह विवाह मेरे लिए अभिशाप होगा?

कामलता बोली - वह लड़की कनक सुंदरी कानी है।

मदन ने कहा - यह तुम क्या कह रही हो?

चित्र वेश्या के हाथ में था। गुलाबो भी वहां आ गई। कामलता बोली - इस चित्र की बाई आँख में काला तिल नहीं है। बाई आँख फूटी हुई है। मैं तो चित्रकार की तारीफ़ करूंगी, जिसने असलियत को नहीं छिपाया। वह चाहता तो यह दोष छुपा सकता था।

मदन! विवाह तो तुम अवश्य कर लो, पर एक बार इस लड़की को देख भी लो।

मदन ने कहा - कामलता! तुमने मुझे बचा लिया। मैं इस कानी से विवाह नहीं करूंगा। इसका नाम कनक सुंदरी की बजाय कानी सुंदरी होना चाहिए। गुलाबो को छोड़कर मैं कहीं नहीं जाऊंगा।

वह चित्र लेकर मदन घर आ गया। कामलता की खुशी का ठिकाना न रहा। यही तो वह चाहती थी। खुशी की वजह से मां-बेटी एक दूसरे से लिपट गई।

गुलाबो बोली - अम्मा! अब मदन विवाह नहीं करेगा। अम्मा! आपने यह कैसे किया? बताया भी नहीं मुझे।

कामलता बोली - मेरे पास इतना समय कहां था कि मैं तुझे बताती। अब सुन! मैंने सूई की नोक को काजल में भर कर चित्र की बाई आंख में लगा दिया, जिससे लड़की की आँख कानी लगने लगी और मदन का दिल शक से भर दिया। अब उसे कोई नहीं निकाल सकता।

मदन कुमार का निश्चय सुनकर धनदत्त कांप गया। उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि मदन कुमार विवाह से मना करेगा। सेठ ने अपने लाडले को समझाया कि तू विवाह नहीं करेगा, तो हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। यह मेरी इज्जत का सवाल है। जबान देने से ही बेटा और बेटी पराए हो जाते हैं। सेठ जिनदत्त ने विवाह की तिथि भेज दी है। चंपापुर में विवाह की तैयारी हो रही होंगी और वे बारात का इंतजार कर रहे होंगे। यदि तुम मेरी जिंदगी चाहते हो तो तुम्हें यह विवाह करना होगा।

सेठ धनदत्त का जवाब बहुत स्नेहपूर्ण था। मदन ने सोचा कि यदि मैं विवाह नहीं करूंगा, तो पिताजी अपने जीवन का बलिदान कर देंगे। इसलिए मुझे यह विवाह करना चाहिए लेकिन कनक सुंदरी से मैं कोई संबंध नहीं रखूंगा। पिताजी की बात भी रह जाएगी और मैं गुलाबो से भी संबंध रख सकूंगा। कनक सुंदरी मेरी पत्नी तो रहेगी लेकिन उस कानी से मैं कोई संबंध नहीं बनाऊंगा।

इन सब बातों पर विचार करके मदन ने विवाह की ‘हां’ भर दी। मदन की बारात ने चंपापुर के लिए प्रस्थान किया। बहुत धूमधाम से सेठ जिनदत्त ने अपनी पुत्री कनक सुंदरी का विवाह मदन के साथ कर दिया। वर-वधू अयोध्या नगरी में आ गए। वही हुआ जो होना था। मदन, कनक सुंदरी से खिंचा-खिंचा रहने लगा। विवाहित होकर भी वह अविवाहित जैसा जीवन बिताने लगा। कनक सुंदरी समता भाव से सब कुछ सहन करने लगी।

सती शिरोमणि अंजना का आदर्श उसके सामने था। पवन ने अंजना को एक शक के कारण त्याग दिया था। कनक सुंदरी भी इस वियोग को अपने कर्मों का फल मानती थी। वह समझती थी कि जब पुण्य उदय होगा तो सब ठीक हो जाएगा। इसी तरह दिन बीत रहे थे।

मदन गुलाबो के घर आता-जाता था। उसे कनक सुंदरी की कोई चिंता नहीं थी। मदन कुमार ने कनक सुंदरी का घूंघट पट भी नहीं उठाया था। वह एक बार घूंघट उठा कर देखता, तो उसका शक मिट जाता। वह बार-बार यही सोचता था कि जो चित्र में है, वही सही है।

पूर्व कर्म की दृष्टि से कनक सुंदरी ने अपने मन को समझा लिया। व्यवहार में वह अपने पति को जानने की कोशिश कर रही थी, पर कुछ जान नहीं पा रही थी। उसका जीवन एकदम सादा हो गया था। उसने आभूषणों का त्याग कर दिया था। शास्त्र, ग्रन्थों को पढ़ना और मंत्र जाप करना, यही उसके जीवन में विशेष रूप से उतर गया।

अयोध्या में प्रतिवर्ष वसंत उत्सव मनाया जाता था। इस दिन राजा-प्रजा का भेद समाप्त हो जाता था। राजघराने की और मंत्रियों की पत्नियां भी राजोद्यान में जाती थी। साथ में प्रजाजनों की स्त्रियां भी वसंत उत्सव में शामिल होती थी। मिल-जुल कर सभी नारियां नृत्य करती और आपस में हास-परिहास करती थी। पर्दे में रहने वाली कुलवधुओं के लिए खुले आकाश के नीचे मुक्ति का सांस लेने का यह एक दिन होता था।

वसंत उत्सव का दिन आया। सब नारियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर अयोध्या के बाहर प्रमोदवन में जाने लगी। बड़े घरों की बहू-बेटियां रथों में बैठकर जा रही थी और निम्न वर्ग की स्त्रियां पैदल चल रही थी। यह अंतर होते हुए भी उत्साह में कोई कमी नहीं थी। सब एक समान थी। प्रमोद वन के एक भाग में पुरुष थे और राजा अरिमर्दन की ओर से इस बात का कड़ा प्रबन्ध था कि पुरुषों के उत्सव में स्त्रियाँ नहीं जा सकती थी और स्त्रियों के उत्सव में पुरुष नहीं जा सकते थे। कनक सुंदरी की पड़ोसिनें सज-धज कर उसके पास आई।

कनक सुंदरी को तैयार न देख कर पड़ोसिन ने कहा - अरे! तुम तैयार नहीं हुई। सब पहुंच गए होंगे। जल्दी से तैयार हो जाओ।

कनक सुंदरी जाना नहीं चाहती थी और न जाने का कारण भी बताना नहीं चाहती थी। मन की बात बताने से क्या लाभ? इससे तो अपनी बदनामी ही होती। सुनने वाले दुःख तो बांट नहीं सकते, उल्टा हंसी ही उड़ाते हैं। यह सोचकर कनक सुंदरी ने प्रमोदवन जाना ठीक समझा और फीकी हंसी हंसते हुए बोली - जाने का विचार तो नहीं था, पर जब आप आ गई हैं, तो मैं चलूंगी।

कनक सुंदरी ने विवाह वाली साड़ी पहनी और आभूषण भी धारण किए। हीरे से जड़े कर्ण फूल उस के मुख पर बहुत अच्छे लग रहे थे। रथ पर बैठकर कनक सुंदरी और उसकी पड़ोसिन प्रमोदवन में पहुंची। इच्छा न होते हुए भी सब कार्यक्रमों में उनका साथ देना पड़ा।

क्रमशः

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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