देवरति राजा की कथा
आराधना-कथा-कोश के आधार पर देवरति राजा की कथा देवरति नामक एक राजा अयोध्या में राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम रक्ता था। वह बहुत सुन्दर थी। राजा सदा उसी के नाद में लगे रहते थे। वे बहुत विषयासक्त थे। शत्रु बाहर से आकर राज्य पर आक्रमण करते, उसकी भी उन्हें कुछ परवाह नहीं थी। राज्य की क्या दशा है, इसकी उन्होंने कभी चिंता नहीं की, जो धर्म और अर्थ पुरुषार्थ को छोड़कर अनीति से केवल काम का सेवन करते हैं, सदा विषयवासना के ही पास बने रहते हैं, वे नियम से कष्टों को उठाते हैं। देवरति की भी यही दशा हुई। राज्य की ओर से उनकी ये उदासीनता मंत्रियों को बहुत बुरी लगी। उन्होंने राजा से राजकाज सम्हालने की प्रार्थना की, पर उसका फल कुछ नहीं हुआ। यह देखकर मंत्रियों ने विचारकर, देवरति के पुत्र जयसेन को अपना राजा नियुक्त किया और देवरति को उनकी रानी के साथ देश बाहर कर दिया। ऐसे काम को धिक्कार है, जिससे मान-मर्यादा धूल में मिल जाये और अपने को कष्ट सहना पड़े। देवरति अयोध्या से निकलकर एक भयानक वन में पहुँचे। रानी को भूख ने सताया, पास खाने को एक अन्न का कण तक नहीं। अब वे क्या करें ? इधर जैसे-जैसे समय बीतने लगा, रानी भू...