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Showing posts from June, 2024

मनुष्य के प्रकार

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मनुष्य के प्रकार महावीर भगवान ने कहा है कि मनुष्य सिर्फ वही है जो दूसरों की पीड़ा को पहचानता है और यथाशक्ति दूर भी करता है। जो दूसरों की पीड़ा को न पहचाने, वह मनुष्य नहीं राक्षस है, पशु है। तीन तरह के मनुष्य होते हैं - जो प्रकृति में जीते हैं; जो संस्कृति में जीते हैं; जो विकृति में जीते हैं। प्रकृति में जीने वाले मनुष्य आत्मा में लीन रहते हैं, संस्कृति में जीने वाले अच्छे संस्कारों को पालते हैं और विकृति में जीने वालों के विचार भी विकृत होते हैं। वे किसी की भी सहायता नहीं करते। एक व्यक्ति भूखा है। वह प्रकृति में जीने वाले मनुष्य के पास जाता है तो वह व्यक्ति अपना सारा भोजन उसे दे देता है और स्वयं शांति से भूखा ही सो जाता है। दूसरे आदमी जो संस्कृति में जीते हैं, उनके पास भूखा व्यक्ति जाता है, तो वह आधा भोजन उसे दे देता है। तीसरे आदमी जो विकारी व आधुनिक प्रवृत्ति के होते हैं, उनके पास भूखा व्यक्ति जाता है, तो वह भोजन देने को मना कर देता है। उदाहरण स्वरूप एक आदमी रिक्शा में सवार है। चढ़ाव वाली घाटी आती है और रिक्शावाला उतरकर रिक्शा खींचने लगता है, तो यह देखकर यात्री स्वयं उतर जाता है। वह मनु...

कुपथ से बचने के उपाय

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कुपथ से बचने के उपाय पाप करने से पहले हर प्राणी के अंदर से एक आवाज उठती है कि यह बुरा काम मत करो, इसलिए वह बुरा काम करने से झिझकता है। किंतु जिसके पूर्व संस्कार प्रबल होते हैं, उसके सामने वह आत्मा की आवाज मर जाती है। यदि वह आत्मा की पहली आवाज पर चले, तो कुमार्ग से बच सकता है, क्योंकि यदि कुत्ते को खाने के लिए रोटी डाली जाए, तो वह वहीं बैठकर खा लेता है और यदि वह चुरा कर रोटी ले कर आता है तो दूर जाकर कहीं एकांत में झाड़ी आदि में छिप कर खाता है। उसे भी ज्ञात है कि चोरी करना अच्छा काम नहीं है। अतः एक अबोध प्राणी भी अच्छे बुरे कर्म का निर्णय तो कर ही लेता है। सुविचार - प्रिय, मधुर वाणी बोलने से जब सभी प्राणी सन्तुष्ट हो जाते हैं, तब वही वाणी बोलनी चाहिए। मीठे वचन बोलने से कोई दरिद्रता नहीं आती। ।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।। विनम्र निवेदन यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें। धन्यवाद। -- सरिता जैन सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका हिसार 🙏🙏🙏

कुरल काव्य भाग - 33 (अहिंसा)

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तमिल भाषा का महान ग्रंथ कुरल काव्य भाग - 33 अहिंसा मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.) आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है। परिच्छेद: 33 अहिंसा अहिंसा परमो धर्मो धर्मेषु श्रेष्ठसम्मतिः। हिंसा च सर्वपापानां जननी लोकविश्रुता।।1।। अहिंसा यब धर्मों में श्रेष्ठ है। हिंसा से पीछे सब प्रकार के प...

श्रेष्ठ दान

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श्रेष्ठ दान फिरोजपुर के लाल देवी सहाय जी ठंड के प्रारंभ होते ही रात के समय शहर में जितने आदमी फुटपाथ अथवा कहीं पर भी कपड़ों के बिना सिकुड़ कर बैठे हुआ अथवा सोते हुआ मिलते, तो दूसरे दिन रूई की भरी उतनी ही रजाइयाँ बनवाकर दूसरी रात को 12:00 बजे जाकर उन गरीबों को सोते समय ओढ़़ा जाते। उन बेचारों को पता भी नहीं चलता कि कौन विशाल हृदय दानी पुरुष ये रजाइयाँ ओढ़ा गया है। इस तरह वे हमेशा गुप्त दान करते रहते थे। ।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।। विनम्र निवेदन यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें। धन्यवाद। -- सरिता जैन सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका हिसार 🙏🙏🙏

कुरल काव्य भाग - 32 (उपद्रवत्याग)

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तमिल भाषा का महान ग्रंथ कुरल काव्य भाग - 32 उपद्रवत्याग मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.) आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है। परिच्छेद: 32 उपद्रवत्याग लोभादिदोषनिर्मुक्तो विशुद्धहृदयो नरः। दत्ते त्रासं न कस्मैचिद् अपि कौवेरसम्पदे।।1।। शुद्ध अंतःकरण वाले मनुष्य को कुबेर की सम्पत्ति मिले...