मनुष्य के प्रकार
मनुष्य के प्रकार महावीर भगवान ने कहा है कि मनुष्य सिर्फ वही है जो दूसरों की पीड़ा को पहचानता है और यथाशक्ति दूर भी करता है। जो दूसरों की पीड़ा को न पहचाने, वह मनुष्य नहीं राक्षस है, पशु है। तीन तरह के मनुष्य होते हैं - जो प्रकृति में जीते हैं; जो संस्कृति में जीते हैं; जो विकृति में जीते हैं। प्रकृति में जीने वाले मनुष्य आत्मा में लीन रहते हैं, संस्कृति में जीने वाले अच्छे संस्कारों को पालते हैं और विकृति में जीने वालों के विचार भी विकृत होते हैं। वे किसी की भी सहायता नहीं करते। एक व्यक्ति भूखा है। वह प्रकृति में जीने वाले मनुष्य के पास जाता है तो वह व्यक्ति अपना सारा भोजन उसे दे देता है और स्वयं शांति से भूखा ही सो जाता है। दूसरे आदमी जो संस्कृति में जीते हैं, उनके पास भूखा व्यक्ति जाता है, तो वह आधा भोजन उसे दे देता है। तीसरे आदमी जो विकारी व आधुनिक प्रवृत्ति के होते हैं, उनके पास भूखा व्यक्ति जाता है, तो वह भोजन देने को मना कर देता है। उदाहरण स्वरूप एक आदमी रिक्शा में सवार है। चढ़ाव वाली घाटी आती है और रिक्शावाला उतरकर रिक्शा खींचने लगता है, तो यह देखकर यात्री स्वयं उतर जाता है। वह मनु...