कुरल काव्य भाग - 33 (अहिंसा)

तमिल भाषा का महान ग्रंथ

कुरल काव्य भाग - 33

अहिंसा

मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी

पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री

महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.)

आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है।

परिच्छेद: 33

अहिंसा

अहिंसा परमो धर्मो धर्मेषु श्रेष्ठसम्मतिः।

हिंसा च सर्वपापानां जननी लोकविश्रुता।।1।।

अहिंसा यब धर्मों में श्रेष्ठ है। हिंसा से पीछे सब प्रकार के पाप लगे रहते हैं।

पद्य अनुवाद -

सब धर्मों में श्रेष्ठ है, परम अहिंसा धर्म।

हिंसा के पीछे लगे, पाप भरे सब कर्म।।1।।

-

इदं हि धर्म सर्वस्वं शास्तृणां वचने द्वयं।

क्षुधार्तेन समं भुक्तिः प्राणिनांचैव रक्षणम्।।2।।

क्षुधाबाधितों के साथ अपनी रोटी बाँट कर खाना और हिंसा से दूर रहना, यह सब धर्म उपदेष्टाओं के समस्त उपदेशों में श्रेष्ठतम उपदेश है।

पद्य अनुवाद -

सन्तों के उपदेश में, ये ही दो हैं सार।

जीवों की रक्षा तथा, भूखे को आहार।।2।।

-

अहिंसा प्रथमो धर्मः सर्वेषामिति सम्मतिः।

ऋषिभिर्बहुधा गीतं सूनृतं तदनन्तरम्।।3।।

अहिंसा सब धर्मों में श्रेष्ठ धर्म है। सच्चाई की श्रेणी उसके पश्चात् है।

पद्य अनुवाद -

कहता सारा लोक है, परम अहिंसा धर्म।

उसके पीछे सत्य है, ऋषियों का यह मर्म।।3।।

-

अयमेव शुभो मार्गो यस्मिन्नेवं विचारणा।

जीवः कोऽपि न हन्तव्यः क्षुद्रान्क्षुद्रतरोऽपि सन्।।4।।

सन्मार्ग कौन सा है? यह वही मार्ग है, जिसमें छोटे से छोटे जीव की रक्षा का पूरा ध्यान रखा जाए।

पद्य अनुवाद -

मत मारो बुध भूलकर, लघु से भी लघु जीव।

वह ही उज्ज्वल मार्ग है, जिसमें दया अतीव।।4।।

-

हिंसां दूरात् समुत्सृज्य येनाहिंसा समादृता।

उदात्तः स हि विज्ञेयः पापत्यागिषु वै ध्रुवम्।।5।।

जिन लोगों ने इस पापमय सांसारिक जीवन को त्याग दिया है, उन सब में मुख्य वह पुरुष है, जो हिंसा के पाप से डरकर अहिंसा मार्ग का अनुसरण करता है।

पद्य अनुवाद -

जिसने त्यागे विश्व के, पाप भरे सब कर्म।

उन में भी वह मुख्य है, जिसे अहिंसा धर्म।।5।।

-

अहिंसाव्रतसम्पन्नो धन्योऽस्ति करुणामयः।

सर्वग्रासी यमोऽप्यस्य जीवने न क्षमो भवेत्।।6।।

धन्य है वह पुरुष, जिसने अहिंसा व्रत धारण किया हुआ है। मृत्यु जो सब जीवों को खा जाती है, उसके सुदिनों पर हमला नहीं करती।

पद्य अनुवाद -

धन्य! अहिंसा का व्रती, जिसमें करुणा भाव।

उसके सुदिनों पर नहीं, काल बली का घाव।।6।।

-

विपत्तिकाले सम्प्राप्ते प्राप्ते च प्राणसंकटे।

तथाप्यन्यप्रियप्राणान् मा जहि त्वं दयार्द्रधीः।।7।।

तुम्हारे प्राण संकट में भी पड़ जावें, तब भी किसी की प्यारी जान मत लो।

पद्य अनुवाद -

जीवन संकट ग्रस्त हो, पाकर विपदा-काल।

तो भी पर के प्राण को, मत ले विज्ञमराल।।7।।

-

श्रूयते बलिदानेन लभ्यन्ते वरसम्पदः।

पवित्रस्य परं दृष्टौ तास्तुच्छाश्च घृणास्पदाः।।8।।

लोग कहते हैं कि बलि देने से बहुत सारे वरदान मिलते हैं, परन्तु पवित्र हृदय वालों की दृष्टि में वे वरदान जो हिंसा करने से मिलते हैं, जघन्य और घृणास्पद हैं।

पद्य अनुवाद -

सुनते हैं बलिदान से, मिलती कई विभूति।

वे भव्यों की दृष्टि में, तुच्छ घृणा की मूर्ति।।8।।

-

येषाम् जीवननिर्वाहो हिंसायामेव निर्भरः।

विबुधानां सुदृष्टौ ते मृतस्वादकसन्निभाः।।9।।

जिन लोगों का जीवन हत्या पर ही निर्भर है, समझदार लोगों की दृष्टि में वे मृतक भोजी के समान हैं।

पद्य अनुवाद -

जिनकी निर्भर जीविका, हत्या पर ही एक।

मृतभोजी उनको विबुध, माने हो सविवेक।।9।।

-

पूतिगन्धसमायुक्तं पश्य शीर्णं कलेवरम्।

स घातकचरो नूनं बुधैरित्यनुमीयते।।10।।

देखो! वह आदमी जिसका सड़ा हुआ शरीर पीवदार घावों से भरा हुआ है, वह पिछले भवों में रक्तपात बहाने वाला रहा होगा, ऐसा बुद्धिमान लोग कहते हैं।

पद्य अनुवाद -

सड़े गले उस देह को, देख सतत धीमान।

घातक वह था पूर्व में, सोचें मन अनुमान।।10।।

क्रमशः

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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