आत्मा ज्ञाता और दृष्टा है
आत्मा ज्ञाता और दृष्टा है भूसे से भरी बैलगाड़ी जंगल से गांव की ओर आ रही थी। रास्ते में एक मूर्ख मनुष्य पैदल जंगल से गांव की ओर आ रहा था। वह बहुत अधिक थका हुआ था। उसने गाड़ीवान से कहा कि मुझे अपनी गाड़ी में बिठा लो। उस गाड़ीवान की अनुमति से वह मनुष्य भूसे के ऊपर बैठ गया। जमीन असमतल ऊंची-नीची होने के कारण वह भूसा जो नाड़े की रस्सी से बंधा हुआ था, ढीला हो गया। भूसा हिलने लगा। भूसे पर बैठा हुआ वह आदमी भी हिलने लगा। उस आदमी ने गाड़ीवान से कहा कि अरे यह भूसा तो बड़े जोर से हिल रहा है। मैं कहीं गिर तो नहीं जाऊंगा? गाड़ीवान ने कहा कि नाड़े को मजबूती से पकड़ लो। वह मनुष्य पाजामा पहने हुए था। उसने अपने पाजामे का नाड़ा पकड़ लिया। असमतल भूमि होने के कारण गाड़ी हिल रही थी। वह आदमी भी हिलते-हिलते गड्ढे में गिर गया। आदमी ने गाड़ीवान से कहा कि मैं तो गड्ढे में गिर गया हूं। गाड़ी वाले ने कहा कि नाड़ा नहीं पकड़ा था क्या? उस आदमी ने कहा कि पकड़ा तो था अपने पाजामे का। गाड़ी वाले ने कहा कि अरे भाई! मैंने तो तुम्हें उस नाड़े को पकड़ने के लिए कहा था जो भूसे से बंधा हुआ था। उस आदमी ने कहा - “भैया! मैं तो समझा ही नहीं और अपने पाजा...