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Showing posts from July, 2024

आत्मा ज्ञाता और दृष्टा है

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आत्मा ज्ञाता और दृष्टा है भूसे से भरी बैलगाड़ी जंगल से गांव की ओर आ रही थी। रास्ते में एक मूर्ख मनुष्य पैदल जंगल से गांव की ओर आ रहा था। वह बहुत अधिक थका हुआ था। उसने गाड़ीवान से कहा कि मुझे अपनी गाड़ी में बिठा लो। उस गाड़ीवान की अनुमति से वह मनुष्य भूसे के ऊपर बैठ गया। जमीन असमतल ऊंची-नीची होने के कारण वह भूसा जो नाड़े की रस्सी से बंधा हुआ था, ढीला हो गया। भूसा हिलने लगा। भूसे पर बैठा हुआ वह आदमी भी हिलने लगा। उस आदमी ने गाड़ीवान से कहा कि अरे यह भूसा तो बड़े जोर से हिल रहा है। मैं कहीं गिर तो नहीं जाऊंगा? गाड़ीवान ने कहा कि नाड़े को मजबूती से पकड़ लो। वह मनुष्य पाजामा पहने हुए था। उसने अपने पाजामे का नाड़ा पकड़ लिया। असमतल भूमि होने के कारण गाड़ी हिल रही थी। वह आदमी भी हिलते-हिलते गड्ढे में गिर गया। आदमी ने गाड़ीवान से कहा कि मैं तो गड्ढे में गिर गया हूं। गाड़ी वाले ने कहा कि नाड़ा नहीं पकड़ा था क्या? उस आदमी ने कहा कि पकड़ा तो था अपने पाजामे का। गाड़ी वाले ने कहा कि अरे भाई! मैंने तो तुम्हें उस नाड़े को पकड़ने के लिए कहा था जो भूसे से बंधा हुआ था। उस आदमी ने कहा - “भैया! मैं तो समझा ही नहीं और अपने पाजा...

कुरल काव्य भाग - 47 (विचारपूर्वक काम करना)

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तमिल भाषा का महान ग्रंथ कुरल काव्य भाग - 47 समीक्ष्यकारिता मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.) आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है। परिच्छेद: 47 विचारपूर्वक काम करना व्ययः कियान् कियाँल्लाभो हानिर्वा का भविष्यति। इतिपूर्वं विचार्यैव कार्यं कुर्वीत धीधनः।।1।। पहिले यह देख लो कि इस काम में ...

राजा श्रेणिक

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राजा श्रेणिक आइए, जानते हैं कि राजा श्रेणिक ने जैन धर्म को कैसे स्वीकार किया। राजा श्रेणिक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। एक दिन उसने चेलना को देखा और उसे धोखे से अपनी पत्नी बना कर ले आया। रानी चेलना जैन धर्म को मानती थी। एक दिन वह उदास बैठी थी क्योंकि राजा श्रेणिक ने तीन दिन पहले जैन संत यशोधर मुनिराज के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया था। जब उसने 3 दिन बाद रानी चेलना को यह बात बताई, तो यह सुनते ही रानी चेलना का भक्त ह्रदय आकुल-व्याकुल हो गया। वह उदास होकर तत्काल मुनिराज का उपसर्ग दूर करने के लिए तुरंत तैयार हुई। राजा श्रेणिक कहने लगे - अरे! तेरा गुरु तो कभी का सांप दूर करके अन्य जगह चला गया होगा। रानी चेलना ने कहा - नहीं, राजन्! आत्म साधना में लीन मेरे गुरु को, वीतरागी जैन संतों को शरीर का ऐसा ममत्व नहीं होता। वह ऐसे ही अपनी आत्मा में लीन होकर तपस्या कर रहे होंगे। रानी चेलना जब राजा श्रेणिक के साथ जंगल में गई और पाया कि यशोधर मुनिराज जैसे के तैसे ही समाधि में बैठे हैं, तो राजा श्रेणिक का मुनि के प्रति दिल पिघल गया। रानी मुनिराज की भक्ति करते हुए सावधानीपूर्वक आसपास मीठा डालकर कीड़ीयों के हटन...

कुरल काव्य भाग - 46 (कुसंग से दूर रहना)

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तमिल भाषा का महान ग्रंथ कुरल काव्य भाग - 46 कुसंगपरित्यागः मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.) आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है। परिच्छेद: 46 कुसंग से दूर रहना भद्रो बिभेति दुःसंगात् परः संगच्छते तथा। अभद्रेण समं नित्यं यथा स्यात् तत्कुटुम्बभाक्।।1।। योग्य पुरुष कुसंग से डरते हैं, पर क...