राजा श्रेणिक

राजा श्रेणिक

आइए, जानते हैं कि राजा श्रेणिक ने जैन धर्म को कैसे स्वीकार किया।

राजा श्रेणिक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। एक दिन उसने चेलना को देखा और उसे धोखे से अपनी पत्नी बना कर ले आया। रानी चेलना जैन धर्म को मानती थी। एक दिन वह उदास बैठी थी क्योंकि राजा श्रेणिक ने तीन दिन पहले जैन संत यशोधर मुनिराज के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया था। जब उसने 3 दिन बाद रानी चेलना को यह बात बताई, तो यह सुनते ही रानी चेलना का भक्त ह्रदय आकुल-व्याकुल हो गया। वह उदास होकर तत्काल मुनिराज का उपसर्ग दूर करने के लिए तुरंत तैयार हुई।

राजा श्रेणिक कहने लगे - अरे! तेरा गुरु तो कभी का सांप दूर करके अन्य जगह चला गया होगा।

रानी चेलना ने कहा - नहीं, राजन्! आत्म साधना में लीन मेरे गुरु को, वीतरागी जैन संतों को शरीर का ऐसा ममत्व नहीं होता। वह ऐसे ही अपनी आत्मा में लीन होकर तपस्या कर रहे होंगे।

रानी चेलना जब राजा श्रेणिक के साथ जंगल में गई और पाया कि यशोधर मुनिराज जैसे के तैसे ही समाधि में बैठे हैं, तो राजा श्रेणिक का मुनि के प्रति दिल पिघल गया। रानी मुनिराज की भक्ति करते हुए सावधानीपूर्वक आसपास मीठा डालकर कीड़ीयों के हटने पर सांप को गले से निकालती है।

ध्यान पूर्ण होने पर मुनिराज यशोधर राजा और रानी दोनों को आशीर्वाद देते हैं।

राजा श्रेणिक को अपनी भूल का एहसास होता है और वे जैन धर्म अंगीकार कर लेते हैं, परंतु मुनि को कष्ट देने के फलस्वरूप उसे नरक की आयु का बंध हो जाता है।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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