कुरल काव्य भाग - 47 (विचारपूर्वक काम करना)

तमिल भाषा का महान ग्रंथ

कुरल काव्य भाग - 47

समीक्ष्यकारिता

मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी

पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री

महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.)

आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है।

परिच्छेद: 47

विचारपूर्वक काम करना

व्ययः कियान् कियाँल्लाभो हानिर्वा का भविष्यति।

इतिपूर्वं विचार्यैव कार्यं कुर्वीत धीधनः।।1।।

पहिले यह देख लो कि इस काम में कितनी लागत लगेगी, कितना माल ख़राब जाएगा और इसमें लाभ कितना होगा। बाद में उस काम को हाथ में लो।

पद्य अनुवाद -

व्यय क्या अथवा लाभ क्या? क्या हानि इस कार्य?

ऐसा पहिले सोच कर, करे उसे फिर आर्य।।1।।

-

मंत्रज्ञैर्मत्रिभिः सार्धं मंत्रयित्वैव यो नृपः।

विदधाति स्वकार्याणि तस्यास्ति किमसम्भवम्।।2।।

देखो! जो राजा सुयोग्य पुरुषों से सलाह करने के पश्चात् ही किसी काम को करने का निश्चय करता है, उसके लिए ऐसा कोई कार्य नहीं है, जो असम्भव हो।

पद्य अनुवाद -

ऐसों से कर मंत्रणा, जो उसके आचार्य।

राज्य करे उस भूप को, कौन असम्भव कार्य।।2।।

-

सन्त्येवं हि बहूद्योगा ये पूर्वं लाभदर्शकाः।

समूलघातका अन्ते तेषु हस्तो न धीमताम्।।3।।

ऐसे भी उद्योग हैं, जो नफे (लाभ) का हरा-भरा बाग दिखा कर अन्त में मूलधन को नष्ट कर देते हैं। बुद्धिमान लोग उनमें हाथ नहीं लगाते।

पद्य अनुवाद -

लालच दे बहुलाभ का, करदे क्षय ही मूल।

बुध ऐसे उद्योग में, हाथ न डालें भूल।।3।।

-

नैवेच्छति निजात्मानं यो यातुं परिहास्यताम्।

नासमीक्ष्य क्वचित् किंचिद् विधत्तेऽसौ विचारवान्।।4।।

जो लोग यह नहीं चाहते कि दूसरे आदमी उन पर हंसें, वे पहिले अच्छी तरह विचार किए बिना कोई काम आरम्भ नहीं करते।

पद्य अनुवाद -

हँसी जिसे भाती नहीं, करवानी निजनाम।

बिना विचारे वह नहीं, करता बुध कुछ काम।।4।।

-

अयनेषु च सर्वेषु व्यूहादिस्थितिसूचिकाम्।

युद्धसज्जां बिना युद्धं राज्ये वैर्यभिषेचनम्।।5।।

सब बातों की अच्छी तरह मोर्चाबन्दी किए बिना ही लड़ाई छेड़ देने का अर्थ यह है कि तुम शत्रु को पूरी सावधानी से तैयार की हुई भूमि पर ला कर खड़ा कर देते हो।

पद्य अनुवाद -

स्वयं न सज्जित युद्ध को, पर जूझे कर टेक।

करता वह निज राज्य पर, मानो अरि अभिषेक।।5।।

-

अकर्मणः समाचारान् नूनं नश्यति मानवः।

कर्मणश्च परित्यागात् सत्यं नश्यति मानवः।।6।।

कुछ काम ऐसे हैं कि जिन्हें नहीं करना चाहिए और यदि तुम करोगे तो नष्ट हो जाओगे तथा कुछ काम ऐसे हैं कि जिन्हें करना ही चाहिए। यदि उन्हें नहीं करोगे तो मिट जाओगे।

पद्य अनुवाद -

अनुचित कार्यों को करे, तब हो नर का नाश।

योग्यकर्म यदि छोड़ दे, तो भी सत्यानाश।।6।।

-

नाविचार्य क्वचित् किंचिद् विधातव्यं मनीषिणा।

पूर्वं प्रारभ्य पश्चाच्च शोचन्ति हतबुद्धयः।।7।।

भली रीति से पूर्ण विचार किए बिना किसी काम को करने का निश्चय मत करो। वह मूर्ख है जो काम आरम्भ कर देता है और मन में कहता है कि बाद में सोच लेंगे।

पद्य अनुवाद -

बिना विचारे प्राज्ञगण, करे न कुछ भी काम।

करके पीछे सोचते, उनकी बुद्धि निकाम।।7।।

-

सन्मार्गं यः समुत्सृज्य स्वकार्याणि चिंकीर्षति।

तस्य यत्ना ध्रुवं मोघाः साहाय्यं प्राप्य भूर्यपि।।8।।

जो योग्य मार्ग से काम नहीं करता, उसका सारा परिश्रम व्यर्थ जाएगा, चाहे उसकी सहायता के लिए कितने ही आदमी क्यों न आ जाएँ?

पद्य अनुवाद -

नीतिमार्ग को त्याग जो, करना चाहे कार्य।

पाकर भी साहाय्य बहु, निष्फल रहे अनार्य।।8।।

-

उपकारोऽपि कर्तव्यः स्वभावं वीक्ष्य देहिनः।

अन्यथा स्यात् प्रमादेन यातनैव विधायिनः।।9।।

जिसका तुम उपकार करना चाहते हो, उसके स्वभाव का यदि तुम ध्यान नहीं रखोगे, तो तुम भलाई करने में भी भूल कर सकते हो।

पद्य अनुवाद -

नरस्वभाव को देखकर, करो सदा उपकार।

चूक करे से अन्यथा, होगा दुःख अपार।।9।।

-

कुरु तान्येव कार्याणि यान्यनिन्द्यानि सर्वथा।

निन्द्यकार्याद् यतः प्राणी प्रतिष्ठाभंगमानुप्रयात्।।10।।

तुम जो काम करना चाहते हो, वह सर्वथा अपवाद रहित होना चाहिए, क्योंकि जगत में उसका अपमान होता है जो अपने पद के अयोग्य काम करने पर उतारू हो जाता है।

पद्य अनुवाद -

निन्दा से जो सर्वथा शून्य, करो वे काम।

कारण निन्दित काम से, गौरव होता श्याम।।10।।

क्रमशः

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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