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Showing posts from September, 2024

सती विशल्या की कहानी

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सती विशल्या की कहानी राजा द्रोणमेघ भरत क्षेत्र के अयोध्या नगर में राज्य करते थे। सती अनंगसरा का जीव तीसरे स्वर्ग से चलकर राजा के यहाँ ‘विशल्या’ नामक पुत्री के रूप में उत्पन्न हुआ। विशल्या बहुत गुणवती थी। उसके समान तीन लोक में अन्य कोई सुगंधित शरीर सहित नहीं थी। वह अनेक गुणों की खान और अत्यन्त रूपवान थी। पूर्व भव में वन में किए हुए तप के प्रभाव से उसे महापवित्र शरीर मिला था। उसने पूर्व भव में अजगर को अभय दान दिया था। यह उसी का फल था कि उसके स्नान के जल से सभी रोग दूर होकर शांत हो जाते थे। उपसर्ग सहने से और महा तप करने से उसने यह फल पाया कि उसके स्नान के जल से सारे वायु विकार से संबंधित रोग भी नष्ट हो जाते थे। एक समय की बात है। हस्तिनापुर में एक महाधनवान ‘विंध्य’ नाम का व्यापारी आया। वह गधा, ऊँट, भैंसा आदि पर अपना सामान लादकर व्यापार किया करता था। ग्यारह महीने पहले वह अयोध्या में आया और फिर वहीं रह गया। उसने अपना व्यापार इतना बढ़ा लिया कि भैंसा के ऊपर ज्यादा बोझ लादने के कारण भैंसा घायल हो गया जो तीव्र वेदना से मरण को प्राप्त हो गया। वह भैंसा अकाम निर्जरा के कारण मरण करने से ‘अश्वकेतु’ ना...

जैन प्रश्नोत्तरी - भगवान महावीर का जीवन परिचय (भाग - 3)

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जैन प्रश्नोत्तरी - भगवान महावीर का जीवन परिचय (भाग - 3) प्रश्न 41. भगवान महावीर को केवलज्ञान कौन से वन में हुआ? उत्तर - मनोहर वन में। प्रश्न 42. भगवान महावीर को केवल ज्ञान कौन सी नदी के किनारे हुआ? उत्तर - ऋजुकूला नदी के तट पर। प्रश्न 43. वह वृक्ष कौन-सा था, जिसके नीचे भगवान महावीर को केवल ज्ञान हुआ? उत्तर - साल वृक्ष। प्रश्न 44. भगवान महावीर के केवल ज्ञान की तिथि कौन सी थी? उत्तर - वैशाख शुक्ल दशमी। प्रश्न 45. भगवान महावीर की दिव्य ध्वनि कितने दिन तक नहीं खिरी? उत्तर - 66 दिन तक। प्रश्न 46. भगवान महावीर की प्रथम दिव्य ध्वनि कहां खिरी? उत्तर - विपुलाचल पर्वत पर। प्रश्न 47. भगवान महावीर की प्रथम दिव्य ध्वनि कब खिरी? उत्तर - सावन बदी एकम् को। प्रश्न 48. सावन बदी एकम् को जैन लोग कौन सा पर्व मनाते हैं? उत्तर - वीर शासन जयंती। प्रश्न 49. भगवान महावीर के यक्ष और यक्षिणी का नाम बताओ। उत्तर - मातंग और सिद्धायिनी। प्रश्न 50. भगवान महावीर केवली अवस्था में कितने दिन रहे? उत्तर - 30 वर्ष। प्रश्न 51. दीक्षा लेते ही भगवान महावीर को कौन सा ज्ञान हो गया? उत्तर - मनः पर्यय ज्ञान। प्रश्न 52. ...

जैन प्रश्नोत्तरी - भगवान महावीर का जीवन परिचय (भाग - 2)

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जैन प्रश्नोत्तरी - भगवान महावीर का जीवन परिचय (भाग - 2) प्रश्न 21. भगवान महावीर के वैराग्य का क्या कारण था? उत्तर - जाति स्मरण। प्रश्न 22. भगवान महावीर कितने वर्ष घर में रहे? उत्तर - 30 वर्ष। प्रश्न 23. भगवान महावीर के नाना का क्या नाम था? उत्तर - राजा चेटक। प्रश्न 24. भगवान महावीर कौन से स्वर्ग से च्युत होकर आए थे? उत्तर - अच्युत स्वर्ग। प्रश्न 25. भगवान महावीर की दीक्षा तिथि क्या थी? उत्तर - मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी। प्रश्न 26. भगवान महावीर का दीक्षा नक्षत्र क्या था? उत्तर - फाल्गुनी नक्षत्र। प्रश्न 27. भगवान महावीर ने कितने राजाओं के साथ दीक्षा ली थी? उत्तर - एक भी नहीं। प्रश्न 28. भगवान महावीर ने कितने वर्ष राज्य किया? उत्तर - राज्य नहीं किया। प्रश्न 29. भगवान महावीर की दीक्षा कौन से वन में हुई? उत्तर - नाग खंड। प्रश्न 30. भगवान महावीर जिस पालकी में बैठकर वन में गए उसका क्या नाम था? उत्तर - चंद्रप्रभा पालकी। प्रश्न 31. दीक्षा लेते ही प्रभु ने कितने उपवास किए? उत्तर - दो। प्रश्न 32. भगवान महावीर को प्रथम आहार कौन से नगर में, किस राजा ने, किस से दिया? उत्तर - कुंड ग्राम में...

कुरल काव्य भाग - 75 (दुर्ग)

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तमिल भाषा का महान ग्रंथ कुरल काव्य भाग - 75 दुर्ग मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.) आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है। परिच्छेद: 75 दुर्गः उपकर्ता यथा दुर्गो निर्बलानां स्वरक्षिणाम्। सबलानां तथैवैष नास्ति न्यूनः सहायकृत्।।1।। दुर्बलों के लिए, जिन्हें केवल अपने बचाव की ही चिन्ता होती ह...