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Showing posts from November, 2024

कुरल काव्य भाग - 92 (वेश्या)

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तमिल भाषा का महान ग्रंथ कुरल काव्य भाग - 92 वेश्या मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.) आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है। परिच्छेद: 92 वेश्या धनाय नानुरागाय नरेभ्यः स्पृहयन्ति याः। तासां मृषाप्रियालापाः केवलं दुःखहेतवः।।1।। जो स्त्रियाँ प्रेम के लिए नहीं, बल्कि धन के लोभ से किसी पुरुष क...

सती रोहिणी की कथा (भाग - 2)

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सती रोहिणी की कथा (भाग - 2) सेठानी रोहिणी ने राजा के स्वागत की तैयारी शुरू की। दासियों ने स्वागत कक्ष को खूब सजाया और सेठानी ने राजा के लिए अपने हाथ से भोजन बनाया। उसने 32 प्रकार के व्यंजन तैयार किए, पर स्वाद सबका एक ही था। रात हुई, रोहिणी राजा श्रीनंद की प्रतीक्षा करने लगी। राजा आया, रोहिणी ने आदर के साथ उसे स्वर्ण मंडित सुखासन पर बैठाया। बैठते ही राजा ने कहा - तुम कितनी सुंदर हो! उससे भी ज्यादा समझदार हो, रोहिणी! तुम नगर सेठ की पत्नी हो, पर तुम्हें मैं अपनी पटरानी बनाऊंगा। मेरी सभी रानियाँ तुम्हारी दासी होंगी। राजा बोला - मैं तुम्हारा दास हूं। तुम जैसी सुंदरी का दास बनना देवराज इंद्र का भी सौभाग्य होगा, मैं तो नगर का केवल एक राजा हूं। मेरा भी सौभाग्य कम नहीं है। रोहिणी ने कहा - इन बातों के लिए पूरी रात पड़ी है। आप पहले भोजन कीजिए। राजा ने चौंक कर कहा - यह भी कोई भोजन का समय है? हम सब जैन धर्म के अनुयायी हैं। क्या तुम रात्रि भोजन को निषेध नहीं मानती? रोहिणी ने कहा - इस समय तो हम दोनों प्रेम धर्म के अनुयायी हैं। प्रेम में सब उचित होता है। मैंने प्रेम से आपके लिए 32 प्रकार के व्यंजन बनाए...

सती रोहिणी की कथा (भाग - 1)

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सती रोहिणी की कथा (भाग - 1) पाटलिपुत्र नगर में वहाँ के धनवान सेठ धन्ना रहते थे। वे व्यापारी वर्ग के लिए बहुत उदार थे। वे सबको सहारा देते थे। जब अनेक व्यापारियों का व्यापार चौपट हो गया, तब सेठ धन्ना ने उन्हें पूंजी देकर उनका सहयोग किया। उन सब का व्यापार फिर से चलने लगा। नगर सेठ धन्ना व्यापारी वर्ग के सच्चे साथी थे। निर्धन जनों को वे बहुत सहायता देते थे। प्रतिभावान छात्रों, विधवा स्त्रियों, अपाहिजों आदि को दान देते, पाठशालाएं, भोजगृह, अतिथि गृह आदि खुलवाते थे। सेठ साहूकारों और व्यापारियों के कारण गंगा तट पर बसा पाटलिपुत्र बहुत समृद्ध नगर था। वहां के राजा श्रीनंद थे। राजा के कहते ही व्यापारी राजा का कोष भर देते थे। इन्हीं से उनके नगर की शोभा बनी हुई थी। नगर सेठ धन्ना की सेठानी का नाम रोहिणी था। रोहिणी परम रूपवती, पतिव्रता और धर्म निष्ठ थी। पति-पत्नी में बहुत प्रेम था। घर में दास-दासियां, रथ आदि वाहन, सुन्दर भव्य भवन और रजत स्वर्ण के पात्र आदि सब सुख-सुविधाएँ थी। एक बार सेठ जी ने सेठानी रोहिणी को कहा कि हमारे नगर के रतनचंद्र, सागरदत्त आदि सेठ बाहर विदेश में व्यापार करने के लिए जा रहे हैं। ...

कुरल काव्य भाग - 91 (स्त्री की दासता)

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तमिल भाषा का महान ग्रंथ कुरल काव्य भाग - 91 स्त्री की दासता मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.) आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है। परिच्छेद: 91 स्त्रीदासता नासो महत्त्वमाप्नोति यो नारी पादपूजकः। आर्यस्तु कुरुते नैव कार्यमीदृग्विधं मुधा।।1।। जो लोग अपनी स्त्री के श्री चरणों की अर्चना में...