कुरल काव्य भाग - 91 (स्त्री की दासता)

तमिल भाषा का महान ग्रंथ

कुरल काव्य भाग - 91

स्त्री की दासता

मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी

पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री

महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.)

आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है।

परिच्छेद: 91

स्त्रीदासता

नासो महत्त्वमाप्नोति यो नारी पादपूजकः।

आर्यस्तु कुरुते नैव कार्यमीदृग्विधं मुधा।।1।।

जो लोग अपनी स्त्री के श्री चरणों की अर्चना में ही लगे रहते हैं, वे कभी महत्त्व प्राप्त नहीं कर सकते और जो महान कार्यों के करने की उच्चाशा रखते हैं, वे ऐसे निकृष्ट प्रेम के पाश में नहीं फंसते।

पद्य अनुवाद -

नारी की पद-अर्चना, करने में जो लीन।

उच्च नहीं वह आर्यजन, बने न विषयाधीन।।1।।

-

अनंगरंगकेलौ यः प्रसक्तो विषयातुरः।

गर्हितः स समृद्धोऽपि स्वयमेव विलज्जते।।2।।

जो आदमी अपनी स्त्री के असीम मोह में पड़ा हुआ है, वह अपनी समृद्धिशाली अवस्था में भी लोगों में हास्यास्पद हो जायेगा और लज्जा से उसे अपना मुँह छिपाना पड़ेगा।

पद्य अनुवाद -

जो विषयी निशदिन रहे, भरा मदन-सन्ताप।

ऋद्धि सहित भी निन्द्य हो, लज्जित होता आप।।2।।

-

क्लीव एव नरः सोऽयं स्त्रियो यो हि वशंवदः।

भद्रेषु लज्जितो भूत्वा नैवोद्ग्रीवः प्रयाति सः।।3।।

वह नामर्द, जो अपनी स्त्री के सामने झुककर चलता है, सत्पात्र पुरुषों के सामने वह सदा शरमावेगा।

पद्य अनुवाद -

नारी से दब कर रहे, सचमुच वह है क्लीव।

भद्रों में वह लाज से, चले न हो उद्ग्रीव।।3।।

-

अहो तस्मिन् महाखेदः स्त्रियो यो हि विकम्पते।

अभव्यः स च निर्भाग्यः संभाव्या नैव तद्गुणाः।।4।।

शोक है उस मुक्ति-विहीन अभागे पर, जो अपनी स्त्री के सामने काँपता है, उसके गुणों का कभी कोई आदर नहीं करेगा।

पद्य अनुवाद -

प्रिया-भीत कामार्त को, देखे होता खेद।

उस अभव्य हतभाग्य के, गुण रहते यश-भेद।।4।।

-

स्त्रियो विभ्रमवाणाया यो बिभेति हि कामुकः।

सद्गुरूणां स सेवायै भजते नापि साहसम्।।5।।

जो आदमी अपनी स्त्री से डरता है, वह गुरुजनों की सेवा करने का भी साहस नहीं कर सकता।

पद्य अनुवाद -

नारी की सेवार्थ ही, कामी का पुरुषार्थ।

क्या क्षमता साहस करे, गुरुजन की सेवार्थ।।5।।

-

प्रियाया मृदुबाहुभ्यां ये बिभ्यति हि कामुकाः।

लब्धवर्णा न ते सन्ति भूत्वापि सुरसन्निभाः।।6।।

जो लोग अपनी स्त्री की कोमल भुजाओं से भयभीत रहते हैं, वे यदि देवों के समान भी रहें, तब भी उनका कोई मान न करेगा।

पद्य अनुवाद -

प्रिया सुकोमल बाहु से, जो धूजें भय मान।

मान नहीं उनका कहीं, जो हों देवसमान।।6।।

-

प्रभुत्वं चोलराज्यस्य येन स्वस्मिन्नुपासितम्।

कन्यायां ह्वीविशिष्टायां ततोऽस्त्यधिकगौरवम्।।7।।

जो मनुष्य चोली-राज्य का आधिपत्य स्वीकार करता है, उसकी अपेक्षा एक लजीली कन्या में अधिक गौरव है।

पद्य अनुवाद -

जिस पर चोली-राज्य की, प्रभुता का अधिकार।

उससे कन्या ही भली, लज्जाभूषित सार।।7।।

-

एषां सर्वत्रकान्तायाः प्रमाणां वाक्यमेव ते।

मित्राणामिष्टसिद्ध्यर्थं न शक्ता वा सुकर्मणे।।8।।

जो लोग अपनी स्त्री के कहने में चलते हैं, वे अपने मित्रों की आवश्यकताओं को भी पूर्ण न कर सकेंगे और न उनसे कोई शुभ काम ही हो सकेगा।

पद्य अनुवाद -

प्रियावचन ही कार्य में, जिनको नित्य प्रमाण।

मित्रकार्य या और कुछ, करें न वे कल्याण।।8।।

-

नो लभन्ते धनं धर्मं कामिनीराज्यशासिताः।

प्रेमामृतरसस्वादे नापि ते भाग्यशालिनः।।9।।

जो मनुष्य स्त्री-राज्य का शासन स्वीकार करते हैं, उन्हें न तो धर्म मिलेगा और न धन, इनके सिवाय न उन्हें अखण्ड प्रेम का आनन्द ही मिलेगा।

पद्य अनुवाद -

धर्म तथा धन से रहे, कामी को वैराग्य।

प्रेमामृत के पान का, नहीं उसे सौभाग्य।।9।।

-

उच्चकार्येषु संलग्नाः सौभाग्येनाभिवर्द्धिताः।

ते दुर्बुद्धिं न कुर्वन्ति विषयासक्तिनामिकाम्।।10।।

जिन लोगों के विचार महत्त्वपूर्ण कार्यो में रत हैं और जो सौभाग्य लक्ष्मी के कृपापात्र हैं, वे अपनी स्त्री के मोहजाल में फंसने की कुबुद्धि नहीं करते।

पद्य अनुवाद -

कर्ता उत्तम कार्य के, भाग्य उदय के धाम।

करें न विषयासक्ति सी, दुर्मति का वे काम।।10।।

क्रमशः

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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