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Showing posts from December, 2024

नया वर्ष

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नया वर्ष ( परम पूज्य उपाध्याय श्री विशोकसागर महाराज की लेखनी से ) मंगलाचरण मंगलं भगवान अर्हं, मंगलं भगवान जिन। मंगलं प्रथमाचार्यो, मंगलं वृषभेश्वरः।। श्री मत्परं गंभीर, स्याद्वादामोघ लांछनम्। जीयात् त्रैलोक्य नाथस्य, शासनं जिन शासनम्।। गुरुः ब्रह्मा गुरुः विष्णुः, गुरुः देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्मः, तस्मै श्री गुरवे नमः।। सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे कामरूपिणी। विद्यारंभं करिष्यामि, सिद्धिर्भवतु मे सदा।। गुरवः पान्तु नो नित्यं, ज्ञान दर्शन नायकाः। चारित्रार्णव-गम्भीरा, मोक्ष मार्गोपदेशकाः।। नया वर्ष  आज नए वर्ष का प्रथम दिन है। कल की रात्रि एक विछोह की और एक आगमन की रात्रि थी। समय आता है तो वह जाता भी है। यह जैन धर्म का अकाट्य सिद्धांत है। जहाँ आचार्य उमा स्वामी ने तत्वार्थ सूत्र में कहा है कि किसी पदार्थ का उत्पाद होता है तो व्यय भी होता है। उसके बीच में जो रहता है, वह है ध्रुव। जैसे स्वर्ण का उदाहरण लेते हैं। अगर कोई स्वर्ण के कुंडल को पिंघला कर कड़ा बनाता है तो कड़ा उत्पाद होगा और कुंडल का व्यय होगा लेकिन उसमें स्थित सोना ध्रुव है जो उस उत्पाद में भी रहता है और व्यय होने वा...

कुरल काव्य भाग - 106 (भिक्षा)

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तमिल भाषा का महान ग्रंथ कुरल काव्य भाग - 106 भिक्षा मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.) आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है। परिच्छेद: 106 याचना याचतां तान् महाभागान् सन्ति ये साधनान्विताः। अदानाय यदि व्याजं कुर्वते ते हि दोषिणः।।1।। यदि तुम ऐसे साधन सम्पन्न व्यक्ति को देखते हो कि जो तुम्...

रानी पद्मावती की कहानी (भाग - 4)

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रानी पद्मावती की कहानी (भाग - 4) चित्रसेन ने ऐसा ही किया, लेकिन कोई भी सफलता प्राप्त नहीं हुई। दोनों बहुत परेशान हो गए। चित्रसेन की चिंता दिनों दिन बढ़ने लगी। सोच-विचार करके वह उस वटवृक्ष के नीचे पहुंचा, जहां वह यक्ष रहता था। रास्ते में सफ़र से थका हुआ तो था ही, आते ही उसके नीचे सो गया। उस यक्षिणी ने यक्ष से पूछा - हे नाथ! यह पुरुष कौन है? यक्ष ने कहा - यह वही राजकुमार है, जो उस दिन अपनी प्रिय पत्नी और अपने मित्र रत्नसार के साथ यहाँ ठहरा था और अब वह अपने मित्र के वियोग से दुःखी है। यक्षिणी बोली - इसकी आपत्ति का कोई उपाय बताएं। यक्ष ने विचार करके कहा - हां! एक उपाय है। यदि कोई पतिव्रता नारी अपने बच्चे को गोद में लेकर रत्नसार के पत्थर के संपूर्ण शरीर का स्पर्श करे, तो रत्नसार फिर से जीवित हो जाएगा। वह पत्थर का नहीं रहेगा। चित्रसेन ने पेड़ के नीचे लेटे-लेटे यक्ष और यक्षिणी की बात बहुत ध्यान से सुन ली। उसे आनंद हुआ कि वह इस उपाय से अपने मित्र के पुनः दर्शन कर पायेगा। पद्मावती महारानी कुछ ही दिनों में गर्भवती हो गई। चित्रसेन प्रतिदिन खूब दान देता, धर्म में लीन रहता और अच्छे-अच्छे कामों में समय...

रानी पद्मावती की कहानी (भाग - 3)

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रानी पद्मावती की कहानी (भाग - 3) रास्ते में चलते-चलते उन्होंने एक सघन वन में डेरा डाल दिया। एक बरगद के पेड़ के नीचे राजकुमार के ठहरने की व्यवस्था कर दी और सब लोग भोजन आदि करके सो गए। उसी बरगद के पेड़ में गोमुख नाम का यक्ष और यक्षिणी चक्रेश्वरी रहते थे। उन्होंने जब राजकुमार चित्रसेन को देखा तो वे आपस में बोले कि यह तो अपने माता-पिता को छोड़कर चला गया था। तब उसके वियोग में इसकी माता को बहुत दुख हुआ और उसकी मृत्यु हो गई। राजा वीरसेन ने विमला नाम की स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया है। उनका एक पुत्र भी है, जिसका नाम गुणसेन है। विमला ने अपने छल-कपट से महाराज को अपने वश में कर लिया और अपने पुत्र गुणसेन को राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया। ऐसी महाराज से प्रतिज्ञा करा ली थी। विमला को इतने ही में संतोष न हुआ। उसे संदेह था कि प्रजा चित्रसेन का पक्ष लेगी क्योंकि ज्येष्ठ पुत्र तो वही है। इसलिए महाराज को चित्रसेन को मारने पर भी राजी कर लिया। उसके मारने के चार उपाय किए हैं - (1) घोड़े पर से गिरा कर, (2) नगर का दरवाजा गिराकर, (3) विष के लड्डू खिलाकर और फिर भी न मरे तो (4) सर्प से डसवा कर चित्रसेन के प्राणों क...

कुरल काव्य भाग - 105 (दरिद्रता)

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तमिल भाषा का महान ग्रंथ कुरल काव्य भाग - 105 दरिद्रता मूल लेखक - श्री ऐलाचार्य जी पद्यानुवाद एवं टीकाकार - विद्याभूषण पं० श्री गोविन्दराय जैन शास्त्री महरोनी जिला ललितपुर (म. प्र.) आचार्य तिरुवल्लस्वामी ने कुरल काव्य जैसे महान ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने सभी जीवों की आत्मा का उद्धार करने के लिए, आत्मा की उन्नति के लिए कल्याणकारी, हितकारी, श्रेयस्कर उपदेश दिया है। ‘कुरल काव्य’ तमिल भाषा का काव्य ग्रंथ है। कुछ लोग कहते हैं कि इसके रचयिता श्री एलाचार्य जी हैं जिनका अपर नाम कुंदकुंद आचार्य है, लेकिन कुछ लोग इस ग्रंथ को आचार्य तिरुवल्लुवर द्वारा रचित मानते हैं। यह मानवीय आचरण की पद्धति का बोधगम्य दिग्दर्शन देने वाला, सर्वाधिक लोकोत्तर ग्रंथ है। अपने युग के श्रेष्ठतम साहित्यकार विद्वान पंडित श्री गोविंदराय शास्त्री ने इस ग्रंथ का तमिल भाषा लिपि से संस्कृत भाषा एवं हिंदी पद्य गद्य रूप में रचना कर जनमानस का महान उपकार किया है। परिच्छेद: 105 दरिद्रता दारिद्रयादधिकं लोके वर्तते किन्नु दुःखदम्। इति पृच्छास्ति चेत्तर्हि शृणु सैवास्ति निःस्वता।।1।। क्या तुम जानना चाहते हो कि दरिद्रता से बढ़कर...