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Showing posts from May, 2025

चक्रवर्ती का वैभव

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  चक्रवर्ती का वैभव चक्रवर्ती की आयुधशाला में सुदर्शन नामक चक्ररत्न होता है, जिसके प्रभाव से वह 6 खण्ड का अधिपति बनता है और उसे चक्रवर्ती  की उपाधि मिलती है।  32 हज़ार मुकुटबद्ध राजा, 88 हज़ार मलेच्छ राजा, अनेक करोड़ विद्याधर उसके चरणों की सेवा में सदा तत्पर रहते हैं। ऐरावत हाथी के समान विशालकाय, बलशाली 84 लाख हाथी, सूर्य की चाल से स्पर्धा करने वाले, दिव्य रत्नों से निर्मित 84 लाख रथ, पृथ्वी, जल, आकाश में समान रूप से चलने में समर्थ 18 करोड़ घोड़े,  यौद्धाओं के मर्दन में प्रसिद्ध 84 करोड़ पैदल चलने वाले सिपाही, 96 हज़ार रानियाँ जिनमें से 32 हज़ार रानियाँ आर्यखण्ड की, 32 हज़ार रानियाँ विद्याधरी और 32 हज़ार रानियाँ मलेच्छ खण्ड की कन्याएं, 32 हज़ार नाट्यशालाएं, 32 हज़ार संगीतशालाएं इन्द्र के नगर के समान 32 हज़ार नगर, नन्दन वन के समान बगीचों से सुशोभित 96 करोड़ गाँव,  99 हज़ार बन्दरगाहें आदि.... आदि....। ढेरों वस्त्र-आभूषण जो एक बार पहनने के बाद दान में दे दिए जाते हैं, पाकशाला में चावल आदि पकाने के लिए 1 करोड़ हण्डे,  360 मुख्य रसोइए जिनकी देखरेख में भोजन बनता है। 1 करोड़ थालिय...

बाह्य तप

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  बाह्य तप बाह्य तप के छह भेद   अनशन- खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय। इन चारों प्रकार के आहारों का सर्वथा परित्याग कर देना अनशन है। धवला, तत्वार्थ वार्तिक आदि ग्रन्थों में अनशन का विशेष वर्णन है। अवमौदर्य- भूख से एक ग्रास, दो ग्रास, तीन ग्रास आदि क्रम से भोजन घटाकर लेना। घटते-घटते एक ग्रास मात्र लेना अवमौदर्य तप है। यह संयम की जागरूकता, दोषप्रशम, सन्तोष, स्वाध्याय और सुख की सिद्धि के लिए किया जाता है। विविक्त शय्यासन- अध्ययन और ध्यान में बाधा करने वाले कारणों के समूहरहित विविक्त/एकान्त एवं पवित्र स्थान में शयन करना, बैठना आदि विविक्तशय्यासन तप है। विविक्त (एकान्त) में सोने-बैठने से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन होता है। ध्यान और स्वाध्याय की वृद्धि होती है और गमनागमन के अभाव से जीवों की रक्षा होती है। शास्त्रों में शून्य घर, पहाड़ी की गुफा, वृक्ष का मूल, देवकुल, शिक्षाघर, किसी के द्वारा अपना न बनाया गया स्थान, आराम घर, क्रीड़ा के लिए आये हुए के आवास के लिए बनाया गया स्थान, ये सब विविक्त वसतिकाएँ हैं। ऐसी वसतिका में रहने वाला साधक कलह आदि दोषों से दूर रहता है। ध्यान-अध्ययन में बाधा को...

धैर्य, ईमानदारी और सच्ची सफलता

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 धैर्य, ईमानदारी और सच्ची सफलता  आज के युवाओं में धैर्य की कमी स्पष्ट रूप से नजर आती है। हर कोई सफलता की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ना चाहता है और इस हड़बड़ी में कई बार ईमानदारी की राह छूट जाती है। कुछ लोग तो शॉर्टकट अपनाकर, बेईमानी के सहारे रातों-रात कामयाबी पाने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह भी सच्चाई है कि ऐसे कई युवा, करोड़पति बनने के चक्कर में रोडपति बन गए हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम यह समझें, नौकरी या व्यवसाय में ऊँचाई पर पहुंचने वाला हर व्यक्ति आपसे अधिक योग्य हो, यह जरूरी नहीं है। इसलिए दूसरों की प्रगति देखकर निराश होने के बजाय, खुद पर भरोसा रखें। ईमानदारी, जिम्मेदारी, वफादारी और साहस के साथ अपने काम में जुटे रहें। सफलता एक दिन जरूर आपके कदम चूमेगी।  आओ कहानी सुने - एक समय की बात है। एक बड़े साम्राज्य के राजा ने अपने चार बेटों में से एक को उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने बेटों की एक परीक्षा लेने की सोची। राजा ने सभी बेटों को बुलाकर कहा, “मैं चाहता हूँ कि तुममें से किसी एक को उत्तराधिकारी बनाऊँ। इसके लिए मैं तुम सबको एक काम दूँगा, जो इसे सबसे अच्छे तरीके से प...

राजाभोज और व्यापारी

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राजा भोज और व्यापारी यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि जैसा भाव हमारे मन में होता है, वैसा ही भाव सामने वाले के मन में आता है। इस सबंध में एक ऐतिहासिक घटना सुनी जाती है, जो इस प्रकार है - एक बार राजा भोज की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश किया। राजा ने उसे देखा तो देखते ही उनके मन में आया कि इस व्यापारी का सब कुछ छीन लिया जाना चाहिए। व्यापारी के जाने के बाद राजा ने सोचा - मै प्रजा को हमेशा न्याय देता हूं। आज मेरे मन में यह अन्याय पूर्ण भाव क्यों आ गया कि व्यापारी की संपत्ति छीन ली जाये? उसने अपने मंत्री से सवाल किया। मंत्री ने कहा, “इसका सही जवाब कुछ दिन बाद दे पाउंगा। राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली। मंत्री विलक्षण बुद्धि का था। वह इधर-उधर के सोच-विचार में सयम न खोकर सीधा व्यापारी से मिलने पहुंचा। व्यापारी से दोस्ती करके उसने व्यापारी से पूछा, “तुम इतने चिंतित और दुःखी क्यों हो? तुम तो भारी मुनाफे वाला चंदन का व्यापार करते हो।” व्यापारी बोला, “धारा नगरी सहित मैं कई नगरों में चंदन की गाडियां भरे फिर रहा हूं, पर इस बार चन्दन की बिक्री ही नहीं हुई! बहुत सारा धन इसमें फंसा पडा है। अब नुकसान...

सत्कार और तिरस्कार

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सत्कार और तिरस्कार एक थका-माँदा शिल्पकार लंबी यात्रा के बाद किसी छायादार वृक्ष के नीचे विश्राम के लिये बैठ गया। अचानक उसे सामने एक पत्थर का टुकड़ा पड़ा दिखाई दिया। उसने उस सुंदर पत्थर के टुकड़े को उठा लिया, सामने रखा और औजारों के थैले से छेनी-हथौड़ी निकालकर उसे तराशने के लिए जैसे ही पहली चोट की, पत्थर जोर से चिल्ला पड़ा, “उफ! मुझे मत मारो।“ दूसरी बार वह रोने लगा, “मत मारो मुझे, मत मारो... मत मारो। शिल्पकार ने उस पत्थर को छोड़ दिया। अपनी पसंद का एक अन्य टुकड़ा उठाया और उसे हथौड़ी से तराशने लगा। वह टुकड़ा चुपचाप वार सहता गया और देखते-ही-देखते उसमें से एक देवी की मूर्ति उभर आई। मूर्ति वहीं पेड़ के नीचे रख वह अपनी राह पकड़ आगे चला गया।  कुछ वर्षों बाद उस शिल्पकार को फिर से उसी पुराने रास्ते से गुजरना पड़ा, जहाँ पिछली बार विश्राम किया था। उस स्थान पर पहुँचा तो देखा कि वहाँ उस मूर्ति की पूजा-अर्चना हो रही है, जो उसने बनाई थी। बहुत भीड़ है, भजन-आरती हो रही है, भक्तों की पंक्तियाँ लगीं है। जब उसके दर्शन का समय आया, तो पास आकर देखा कि उसकी बनाई मूर्ति का कितना सत्कार हो रहा है! जो पत्थर का पहला टुकड़ा उस...

गौ भक्त राम सिंह

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गौ भक्त राम सिंह सबलगढ़ तहसील के फाटक पर रहीम सिपाही बैठा था। तब तक भीतर से राम सिंह सिपाही एक रोटी और उस पर कुछ खीर रखे बाहर निकला। रहीम - कहो राम सिंह! यह रोटियां कहाँ लिए जा रहे हो? राम सिंह - यह ‘अग्रासन’ है। रहीम - इसका क्या अर्थ है? राम सिंह - हम लोग जब रोटी बनाते हैं, तब पहले रोटी गौ माता के लिए बनाते हैं। उसको ‘अग्रासन’ कहते हैं। रहीम - तुम रोटी खा चुके? राम सिंह - पहले मैं गौ माता को खिलाऊंगा, तब कहीं मैं चौके में पैर रखूंगा। रहीम - तुम गाय को माता मानते हो? राम सिंह - माता ही नहीं, जगत माता। तुम्हारे मुसलमान धर्म में भी कहा है कि यह पृथ्वी गाय के सींग पर रखी हुई है। रहीम - तुम्हारा इष्ट देव कौन है? तुम किसकी पूजा करते हो? राम सिंह - मेरी इष्ट देव गाय है। मैं गाय की ही पूजा करता हूं। वैतरणी की नाव भी वही है। रहीम - आज तुम्हारी गौ भक्ति देखी जाएगी। राम सिंह - कैसे? रहीम - तुम जानते हो न कि आज ईद है? राम सिंह - जानता हूं, फिर! रहीम - यह जानते हो कि इस समय तहसीलदार, नायब तहसीलदार, थानेदार, दीवान और कई सिपाही मुसलमान हैं? राम सिंह - यह भी जानता हूं, फिर! रहीम - इस तहसील के अहाते मे...

हीरे से अनमोल क्या है?

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हीरे से अनमोल क्या है? एक संत एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते थे। वो रोज एक लकड़हारे को लकड़ी काट कर ले जाते देखते थे। एक दिन उन्होंने लकड़हारे से कहा कि सुन भाई! दिन-भर लकड़ी काटता है। दो जून रोटी भी नहीं जुट पाती। तू जरा आगे क्यों नहीं जाता, वहां आगे चंदन का जंगल है। एक दिन काट लेगा, सात दिन के खाने के लिए काफी हो जाएगा। गरीब लकड़हारे को विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि वह तो सोचता था कि जंगल को जितना वह जानता है, और कौन जानता है! जंगल में लकड़ियां काटते-काटते ही तो जिंदगी बीती। यह संत यहां बैठा रहता है वृक्ष के नीचे, इसको क्या खाक पता होगा? मानने का मन तो नहीं हुआ, लेकिन फिर सोचा कि हर्ज क्या है? कौन जाने ठीक ही कहता हो! फिर झूठ कहेगा भी क्यों? शांत आदमी मालूम पड़ता है, मस्त आदमी मालूम पड़ता है। कभी बोला भी नहीं इसके पहले। एक बार प्रयोग करके देख लेना जरूरी है। संत की बातों पर विश्वास कर वह आगे गया। लौटा तो संत के चरणों में सिर रखा और कहा कि मुझे क्षमा करना, मेरे मन में बड़ा संदेह आया था, क्योंकि मैं तो सोचता था कि मुझसे ज्यादा लकड़ियों के बारे में कौन जानता है। मगर मुझे चंदन की पहचान ही नहीं थी। मेरा बा...