चक्रवर्ती का वैभव

 चक्रवर्ती का वैभव


चक्रवर्ती की आयुधशाला में सुदर्शन नामक चक्ररत्न होता है, जिसके प्रभाव से वह 6 खण्ड का अधिपति बनता है और उसे चक्रवर्ती  की उपाधि मिलती है। 

32 हज़ार मुकुटबद्ध राजा, 88 हज़ार मलेच्छ राजा, अनेक करोड़ विद्याधर उसके चरणों की सेवा में सदा तत्पर रहते हैं।

ऐरावत हाथी के समान विशालकाय, बलशाली 84 लाख हाथी,

सूर्य की चाल से स्पर्धा करने वाले, दिव्य रत्नों से निर्मित 84 लाख रथ,

पृथ्वी, जल, आकाश में समान रूप से चलने में समर्थ 18 करोड़ घोड़े, 

यौद्धाओं के मर्दन में प्रसिद्ध 84 करोड़ पैदल चलने वाले सिपाही,

96 हज़ार रानियाँ जिनमें से 32 हज़ार रानियाँ आर्यखण्ड की, 32 हज़ार रानियाँ विद्याधरी और 32 हज़ार रानियाँ मलेच्छ खण्ड की कन्याएं,

32 हज़ार नाट्यशालाएं,

32 हज़ार संगीतशालाएं

इन्द्र के नगर के समान 32 हज़ार नगर,

नन्दन वन के समान बगीचों से सुशोभित 96 करोड़ गाँव, 

99 हज़ार बन्दरगाहें आदि.... आदि....।

ढेरों वस्त्र-आभूषण जो एक बार पहनने के बाद दान में दे दिए जाते हैं,

पाकशाला में चावल आदि पकाने के लिए 1 करोड़ हण्डे, 

360 मुख्य रसोइए जिनकी देखरेख में भोजन बनता है।

1 करोड़ थालियाँ

360 अंगरक्षक,

साढे तीन करोड़ बंधुवर्ग,

3 करोड़ गोशालाएं,

28 हज़ार सघन वन जिनके चारों ओर रत्नों की खान, 

9 निधियाँ, जिनसे प्रत्येक ऋतु के योग्य द्रव्य, भोजन, धान्य, आयुध, वस्त्र, आभूषण व रत्न-समूह आदि मिलते हैं।

14 रत्न जो प्रतिदिन, प्रतिसमय सभी सुख-सुविधाओं का सामान देते रहते हैं। 

इनमें 7 जीवरत्न - गज, अश्व, सेनापति, पटरानी, गृहपति, रथपति, पुरोहित

7 निर्जीवरत्न - छत्र, असि, दण्ड, चक्र, कांकिणी, चिंतामणि, चर्म (चँवर), जिन्हें 32 यक्ष ढोरते हैं।

उदाहरण के रूप में उनमें से एक चिंतामणि रत्न होता है, जिसे मुट्ठी में बंद करके जो सोचा जाता है, वही सामने हाज़िर हो जाता है।

दशांग भोग- दिव्यपुर, रत्न, सैन्य, भाजन, भोजन, शैया, आसन, वाहन और नाट्य। 

चक्रवर्ती के वैभव की जय हो! जय हो!! जय हो!!!

हमारे तीर्थकर जन्म-मरण की मुक्ति से मिलने वाले शाश्वत वैभव को पाने के लिए यह चक्रवर्ती का वैभव भी जर्जर तृण के समान छोड़ कर वन में तपस्या करने निकल जाते हैं। 

धन्य हैं ऐसे तीर्थकर भगवान!!!

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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