दूसरों के गुण ग्रहण करने की कथा (3)
आराधना-कथा-कोश के आधार पर दूसरों के गुण ग्रहण करने की कथा ( 3 ) सब प्रकार के दोषों से रहित जिन-भगवान् को नमस्कार कर सम्यग्दर्शन को खूब दृढ़ता के साथ पालन करने वाले जिनदास सेठ की पवित्र कथा लिखी जाती है। प्राचीन काल से प्रसिद्ध पाटलिपुत्र (पटना) में जिनदत्त नाम का एक प्रसिद्ध और जिन भक्त सेठ हो चुका है। जिनदत्त सेठ की स्त्री का नाम जिनदासी था। जिनदास, जिसकी यह कथा है, इसी का पुत्र था। अपनी माता के अनुसार जिनदास भी ईश्वर-प्रेमी, पवित्र-हृदयी और अनेक गुणों का धारक था। एक बार जिनदास सुवर्ण द्वीप से धन कमाकर अपने नगर की ओर आ रहा था। किसी काल नाम के देव की जिनदास के साथ कोई पूर्व-जन्म की शत्रुता होगी और इसलिए वह देव इसे मारना चाहता होगा। यही कारण था कि उसने लगभग सौ-योजन चौड़े जहाज़ पर बैठे-बैठे ही जिनदास से कहा - जिनदास, यदि तू यह कह दे कि जिनेन्द्र भगवान् कोई चीज नहीं, जैन-धर्म कोई चीज नहीं, तो तुझे मै जीवित छोड़ सकता हूँ, नहीं तो मार डालूँगा। उस देव की यह धमकी सुन जिनदास वगैरह ने हाथ जोड़कर श्री महावीर भगवान् को बड़ी भक्ति से नमस्कार किया और निडर होकर वे उससे बोले - पापी, यह हम कभी नहीं कह...