प्रेमानुराग-कथा

आराधना-कथा-कोश के आधार पर

प्रेमानुराग-कथा

जो जिन-धर्म के प्रवर्तक हैं, उन जिनेन्द्र-भगवान् को नमस्कार कर धर्म से प्रेम करने वाले सुमित्र-सेठ की कथा लिखी जाती है।

अयोध्या के राजा सुवर्णवर्मा और उनकी रानी स्वर्णश्री के समय अयोध्या में सुमित्र नाम के एक प्रसिद्ध सेठ हो गये हैं। सेठ का जैन-धर्म पर अत्यन्त प्रेम था। एक दिन सुमित्र सेठ रात के समय अपने घर ही में कायोत्सर्ग-ध्यान कर रहे थे। उनकी ध्यान-समय की स्थिरता और भावों की दृढ़ता देखकर किसी एक देव ने सशंकित हो उनकी परीक्षा करनी चाही कि कहीं यह सेठ का कोरा ढोंग तो नहीं है। परीक्षा में उस देव ने सेठ की सारी सम्पत्ति, स्त्री, बाल-बच्चे आदि को अपने अधिकार में कर लिया। सेठ के पास इस बात की पुकार पहुँची। स्त्री, बाल-बच्चे रो-रोकर उसके पाँवों में जा गिरे और छुड़ाओ-छुड़ाओ की हृदय भेदनेवाली दीन प्रार्थना करने लगे।

जो न होने का था वह सब हुआ। परन्तु सेठजी ने अपने ध्यान को अधूरा नहीं छोड़ा, वे वैसे ही निश्चल बने रहे। उनकी यह अलौकिक स्थिरता देखकर उस देव को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने सेठ की शत-मुख से भूरि-भूरि प्रशंसा की। अंत में अपने निज-स्वरूप में आया और सेठ को एक साँकरी नाम की आकाश-गामिनी विद्या भेंट कर स्वयं स्वर्ग चला गया।

सेठ के इस प्रभाव को देखकर बहुतेरे भाइयों ने जैन-धर्म को ग्रहण किया, कितनों ने मुनिव्रत, कितनों ने श्रावकव्रत और कितनों ने केवल सम्यग्दर्शन ही लिया।

जिन-भगवान् के चरण-कमल परम-सुख के देने वाले हैं और संसार-समुद्र से पार करने वाले हैं, इसलिये भव्य-जनों को उचित है कि वे सुख प्राप्ति के लिये उनकी पूजा करें, स्तुति करें, ध्यान करें, स्मरण करें।

 

।।ओऽम् श्री महावीराय नमः।।

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