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Showing posts from October, 2022

बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 24)

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बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 24 ) पाण्डवों की मोक्ष साधना व भगवान नेमिनाथ का मोक्ष कल्याणक वे पाँचों पाण्डव मुनि विहार करते-करते सौराष्ट्र देश में आए और गिरनार तीर्थ की वन्दना की। वहाँ से वे शत्रुंजय सिद्धक्षेत्र पर आए और अडोलरूप से आत्मध्यान में लीन हो गए। कोई कथाकार ऐसा भी कहते हैं कि पाण्डव मुनिराज नेमिनाथ भगवान के दर्शन करने हेतु शत्रुंजय से गिरनार की ओर विहार कर रहे थे, इतने में उन्होंने नेमिनाथ भगवान के मोक्षगमन की बात सुनी, जिससे वे वैराग्यपूर्वक शत्रुंजय पर्वत पर ही ध्यानस्थ हो गए। शत्रुंजय पर्वत पर मोहशत्रु को जीतने के लिए ध्यानस्थ पाँचों पाण्डव-मुनिराजों पर दुर्योधन के भांजे ने अग्नि का घोर उपसर्ग किया। उनके शरीर जल रहे थे, परन्तु उन मुनिवरों ने ध्यान द्वारा आत्मा में शांत जल का सिंचन करके शरीर के साथ-साथ ध्यानाग्नि में कर्मों को भी भस्म कर दिया। युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम को उसी समय केवलज्ञान प्रगट हुआ और वे अंतःकृत केवली होकर मोक्ष को प्राप्त हुए। नकुल और सहदेव में अपने भाइयों के प्रति किंचित राग की वृत्ति रह गई थी, इसलिए वे मोक्ष को प्राप्त न करके सर्वार्थसिद्धि ...

बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 23)

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बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 23 ) पाण्डवों का वैराग्य बलभद्र जी श्री कृष्ण के लिए पानी लेकर जल्दी-जल्दी आए....और कहने लगे - भैया श्री कृष्ण! क्या तुम्हें निद्रा आ गई है ? उठो! मैं जल लेकर आ गया हूँ, उसे पीकर अपनी तृषा शान्त करो। ....परन्तु कौन उठता और कौन बोलता ? कौन पानी पीता ? अत्यन्त भ्रातृस्नेह के कारण बलभद्र जी श्री कृष्ण की मृत्यु को स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए। 6 मास तक वे अत्यन्त शोक मग्न रहे। तब उनके सारथी सिद्धार्थ ने, जो मरकर देव हुआ था, सम्बोधन किया कि हे महाराज! जिस प्रकार रेत में से तेल नहीं निकलता, पत्थर पर धान नहीं उगता और मरा हुआ बैल घास नहीं खाता; उसी प्रकार मरा हुआ मनुष्य जीवित नहीं हो सकता। आप तो ज्ञानी हो, इसलिए श्री कृष्ण का मोह छोड़ो और संयम धारण करो। सिद्धार्थ देव के सम्बोधन से बलभद्र का चित्त शांत हुआ और संसार से विरक्त होकर उन्होंने जिनदीक्षा धारण कर ली। उधर दक्षिण देश में पाण्डवों ने जरत्कुमार के मुख से द्वारिका नगरी का विनाश और श्री कृष्ण की मृत्यु का समाचार सुना। सुनते ही वे शोकमग्न हो गए। बलभद्र जी उन्हें आश्वासन देने गए फिर उन्होंने द्वा...

बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 22)

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बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 22 ) श्री कृष्ण की मृत्यु द्वारिका नगरी को जलता हुआ छोड़ कर श्री कृष्ण और बलभद्र दक्षिण की ओर जा रहे थे। वहाँ कौशाम्बी का भयंकर वन आया। वहाँ ‘मृगजल’ तो बहुत दिखाई देता था, पर प्यास बुझाने के लिए वास्तविक जल मिलना मुश्किल था। थके हुए श्री कृष्ण को बहुत प्यास लगी। उन्होंने अपने भाई बलभद्र से कहा - हे बन्धु! पानी के बिना मेरे प्राण कण्ठ तक आ गए हैं। जिस प्रकार संसार-दुःख से सन्तप्त प्राणी का भवाताप सम्यग्दर्शन रूपी जल से मिट जाता है, उसी प्रकार आप मुझे शीतल जल लाकर दो, जिससे मेरी तृषा शान्त हो और मेरे प्राण बच सकें। बलभद्र उन्हें जिनेन्द्र-गुणस्मरण करने को कह कर उनके लिए पानी की खोज में गए। पानी खोजते-खोजते वे कहीं दूर चले गए। इधर थके हुए, हताश एवं प्यासे श्री कृष्ण पीताम्बर ओढ़ कर पैर पर पैर रख कर वृक्ष की छाया में लेट गए और उन्हें नींद आ गई। उसी समय एक सनसनाता हुआ तीर आया और श्रीकृष्ण को बींध गया....। कौन था वह बाण चलाने वाला.... ? वह था उन्हीं का भाई जरत्कुमार! एक भाई तो उनके प्राण बचाने के लिए पानी लेने गया है और दूसरे भाई ने उनके प्राण ले लिए। ...

बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 21)

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बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 21 ) द्वारिकापुरी का दहन देश-देशान्तर में विचरण करते हुए एक बार तीर्थंकर प्रभु नेमिनाथ पुनः गिरनार पधारे। प्रभु का उपदेश सुनकर बलभद्र ने अपने भाई श्री कृष्ण का और स्वर्ग से सुन्दर द्वारिकापुरी का भविष्य पूछा। प्रभु की वाणी में आया कि ‘ 12 वर्ष पश्चात् द्वीपायन ऋषि द्वारा समस्त द्वारिकापुरी भस्म हो जाएगी और श्री कृष्ण की मृत्यु उनके भाई जरत्कुमार के हाथ से होगी।’ यह सुनकर अनेक जीवों ने वैराग्य प्राप्त करके दीक्षा धारण कर ली। श्री कृष्ण महाराज ने द्वारिका नगरी में घोषणा कराई कि मेरे माता-पिता आदि परिजन एवं समस्त नगरवासी वैराग्यपूर्वक संयम धारण करके शीघ्र आत्मकल्याण करो। मैं किसी को रोकूँगा नहीं। मैं स्वयं व्रत धारण नहीं कर सकता, परन्तु जो भी दीक्षा लेंगे, मैं उनके परिवार के पालन-पोषण का सम्पूर्ण भार लूँगा। इसलिए द्वारिका नगरी के भस्म होने से पूर्व जिन्हें अपना कल्याण करना हो कर लें। श्री कृष्ण की धर्मघोषणा सुन कर उनके पुत्र-पौत्र प्रद्युम्नकुमार, शम्बुकुमार, भानु कुमार, अनिरुद्धकुमार आदि चरमशरीरी राजपुत्रों ने तुरन्त नेमिप्रभु के निकट जिनदीक्षा ल...

बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 20)

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बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 20 ) भगवान नेमिनाथ का समवशरण भगवान नेमिनाथ ने केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया है, यह समाचार जान कर नरक वासी भी उस क्षण शांति का अनुभव करने लगे। देवों ने सहस्राम्र वन में भगवान का दिव्य समवशरण लगाया, जहाँ अनेक देवों और मनुष्यों ने सम्यग्दर्शन प्राप्त किया। तिर्यंचों के समूह भी उनके दर्शन के लिए दौड़ कर आए और अपने स्थान पर शांत व निर्भीक होकर बैठ गए। अहा! कैसा होगा वह पावन दृश्य!! जहाँ एक ओर देवगण व मुनिवृन्द प्रभु की स्तुति कर रहे हैं और दूसरी ओर भावी तीर्थंकर श्री कृष्ण आदि प्रभु नेमिनाथ की वंदना कर रहे हैं। महाराजा समुद्रविजय अपने परिवार सहित समवशरण में विराजमान भगवान नेमिनाथ के दर्शन करके अति प्रसन्न हुए। त्रिलोक पूज्य भगवान नेमिनाथ ने सर्वप्रथम गिरनार के तपोवन में दिव्यध्वनि द्वारा मोक्षमार्ग बता कर भव्य जीवों को परम आनन्दित किया। हस्तिनापुर से युधिष्ठिर आदि भी अपने भ्राता सर्वज्ञ भगवान नेमिनाथ की धर्मसभा देखकर अति आनन्दित हुए। भगवान नेमिनाथ को मुनिदशा में प्रथम आहार कराने वाले राजा वरदत्त भी समवशरण में दीक्षित हुए। भगवान की धर्मसभा में ‘वरदत्त’ ...