बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 24)
बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जी (भाग - 24)
पाण्डवों की मोक्ष साधना व भगवान नेमिनाथ का मोक्ष कल्याणक
वे पाँचों पाण्डव मुनि विहार करते-करते सौराष्ट्र देश में आए और गिरनार तीर्थ की वन्दना की। वहाँ से वे शत्रुंजय सिद्धक्षेत्र पर आए और अडोलरूप से आत्मध्यान में लीन हो गए।
कोई कथाकार ऐसा भी कहते हैं कि पाण्डव मुनिराज नेमिनाथ भगवान के दर्शन करने हेतु शत्रुंजय से गिरनार की ओर विहार कर रहे थे, इतने में उन्होंने नेमिनाथ भगवान के मोक्षगमन की बात सुनी, जिससे वे वैराग्यपूर्वक शत्रुंजय पर्वत पर ही ध्यानस्थ हो गए।
शत्रुंजय पर्वत पर मोहशत्रु को जीतने के लिए ध्यानस्थ पाँचों पाण्डव-मुनिराजों पर दुर्योधन के भांजे ने अग्नि का घोर उपसर्ग किया। उनके शरीर जल रहे थे, परन्तु उन मुनिवरों ने ध्यान द्वारा आत्मा में शांत जल का सिंचन करके शरीर के साथ-साथ ध्यानाग्नि में कर्मों को भी भस्म कर दिया। युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम को उसी समय केवलज्ञान प्रगट हुआ और वे अंतःकृत केवली होकर मोक्ष को प्राप्त हुए। नकुल और सहदेव में अपने भाइयों के प्रति किंचित राग की वृत्ति रह गई थी, इसलिए वे मोक्ष को प्राप्त न करके सर्वार्थसिद्धि स्वर्ग में गए।
बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ ने धर्मचक्र सहित मोक्षमार्ग का धर्मरथ चलाते-चलाते अनेक देशों में विहार किया। अंत में प्रभु नेमिनाथ पुनः सौराष्ट्र में गिरनार पर्वत पर पधारे। तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ के आगमन से सौराष्ट्र की प्रजा धन्य हो गई। अब 14वें गुणस्थान की व मोक्षपद की साधना द्वारा पाँचवें कल्याणक की तैयारी थी। भगवान नेमिनाथ से पहले भी करोड़ों मुनियों ने गिरनार पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया था। प्रभु नेमिनाथ की 1000 वर्ष की आयु में से मात्र एक माह शेष था।
विहार और वाणी थम गए। गिरनार पर्वत के सर्वोच्च शिख़र (पाँचवीं टोंक) पर प्रभु ने अपना योग स्थिर किया। आषढ़ शुक्ला सप्तमी को समस्त कर्मरहित हुए वे प्रभु सिद्धालय में जाकर स्थित हो गए।
नेमि प्रभु के मोक्ष पधारने पर इन्द्र उनका मोक्ष कल्याणक मनाने आए। गिरनार पर्वत की पाँचवीं टोंक पर पर्वत की एक शिला पर आज भी प्रभु के चरण-चिह्न तथा प्रतिमाजी उत्कीर्ण है।
ऐसे भगवान नेमिनाथ जी के चरणों में हमारा बारम्बार नमन-वंदन।
।।ओऽम् श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय नमः।।
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