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Showing posts from March, 2025

एक स्वामी भक्त बालक

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एक स्वामी भक्त बालक उस समय भारत की राजधानी उज्जैन में थी। राजा वीर विक्रमादित्य उस समय भारत सम्राट थे। उनको बालकों से बहुत प्रेम था। महल के भीतर प्रत्येक कार्य पर बालक ही नियुक्त थे, क्योंकि बालक सीधे, सच्चे, सरल, सुखद, सुभग और सुंदर होते हैं। वे सहसा कोई अपराध नहीं करते। रामायण में भी लिखा है - ‘बंदउ बाल रूप सोइ रामु’ अर्थात! प्रत्येक का बालक, चाहे वह पशु-पक्षी का भी हो, राम का स्वरूप होता है। इसी विचार से भारत सम्राट् ने अपने अंगरक्षक भी बालक ही बनाए थे और महल का सारा प्रबंध बालकों को सौंप दिया था। गर्मी की रात थी। सतखंडे पर महाराज सो रहे थे। पलंग के नीचे कालीन पर उनके अंगरक्षक सो रहे थे। सहसा रोने की आवाज सुनकर महाराज जग पड़े। उस समय आधी रात बीत चुकी थी। एक स्त्री को रोती हुई सुनकर महाराज ने कहा - ‘पहरे पर कौन है?’ पांच लड़के एक-एक घंटा जाग कर महाराज का पहरा देते थे। उस समय किशोर नामक एक क्षत्रिय बालक का पहरा था। वह चुपचाप सामने जा खड़ा हुआ। ‘कौन! किशोर!’, सम्राट ने कहा। किशोर ने हाथ जोड़कर कहा - ‘जी, अन्नदाता! आज्ञा!’ राजा बोले - ‘किसी स्त्री के रोने की आवाज सुनते हो, किशोर सिंह!’ किशो...

चातुर्मास का महत्व

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चातुर्मास का महत्व एक बार गुरु ने बच्चों से पूछा - बताओ 12 में से 4 घटाएं तो क्या बचेगा? एक बच्चे ने उत्तर दिया - शून्य। सभी बच्चे हैरान हो गए। हैं! इसे इतना गणित भी नहीं आता? गुरु ने कहा कि हाँ, ठीक है। अरे! यह कैसे ठीक हो सकता है? सभी बच्चे एक दूसरे का मुख देखने लगे। गुरु ने कहा - देखो, मैं बताता हूँ। यदि वर्ष के 12 महीनों में से चातुर्मास के वर्षाकाल के 4 महीने निकाल दिए जाएं तो सारा जन-जीवन शून्य हो जाएगा। यही समय है जब आकाश से वर्षा जल की अमृत बूंदें उस धरती की प्यास बुझाती हैं, जिसका हृदय जेठ मास की तपती धूप को सहन करते-करते विदीर्ण हो जाता है। एक किसान जब खेत में बीज बोने के लिए जाता है, तो सबसे पहले आकाश की ओर देखता है कि हे प्रभु, हम पर कृपा करना। धरती पर वर्षा का अमृत जल भरपूर मात्रा में बरसाना ताकि इसका तन-मन तृप्त हो जाए और हम अच्छी फसल का उत्पादन करके लोगों को अन्न से तृप्त कर सकें। और यही 4 महीने अपने मन को धर्म के बीजारोपण के लिए तैयार करने के लिए उत्तम माने जाते हैं। कहते हैं कि सावन का चूका किसान सारा साल पछताता है कि अगर मैंने पहले ही जमीन को बीज बोने के लिए तैयार कर ...

एक लोटा पानी (भाग - 2)

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एक लोटा पानी (भाग - 2) पंचमी का सवेरा हुआ। परसराम ने ज्यों ही घोड़े पर चढ़ना चाहा, त्यों ही उसे एक छींक आई। एक साथी का नाम था रहीम। वह बी.ए. पास था। पेशावर का रहने वाला था। घोड़े की सवारी में और निशाना लगाने में वह बहुत माहिर था। रहीम ने परसराम को टोकते हुए कहा - ‘कहां जा रहे हैं आप?’ परसराम - ‘सेखूपुर, चंपा का कन्यादान देने। तुमको तो सब हाल मालूम करा दिया था। रोको मत। मैं रुक नहीं सकता।’ रहीम - ‘छींक आई है।’ परसराम - ‘मुसलमान होकर भी छींक को मानते हो?’ रहीम - ‘बात यह है कि यंग साहब अपने तीस सिपाहियों के साथ उधर ही गए हैं। उन लोगों ने सौदागरों का स्वांग बनाया है। मगर वे मेरी नज़र को धोखा नहीं दे सकते।’ परसराम - ‘घूमने दो। क्या करेगा यंग साहब?’ रहीम - मालूम होता है कि मूर्ख बुढ़िया ने आपसे मिलने का हाल अपने गाँव में बयां कर दिया है। पुलिस को आपके आने का हाल मालूम हो गया है। तभी यंग साहब ने मौका देखकर चढ़ाई की है।’ परसराम - ‘संभव है, तुम्हारा अनुमान सही हो, लेकिन इस डर से मैं अपने वचन को नहीं तोड़ सकता। ‘एक लोटा पानी’ से तो उऋण होना ही है।’ रहीम - ‘अच्छा! तो मैं भी साथ चलता हूं। जो वक्त पर साथ ...

एक लोटा पानी (भाग - 1)

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एक लोटा पानी (भाग - 1) चैत का महीना था। ग्वालियर राज्य का मशहूर डाकू परसराम अपने अरबी घोड़े पर चढ़ा हुआ जिला दमोह के देहात में होकर कहीं जा रहा था। तेज दोपहरी थी। प्यास के कारण परसराम का गला सूख रहा था। कोई तालाब, नदी या गाँव दिखाई नहीं देता था। चलते-चलते उसे एक चबूतरा मिला, जिस पर एक शिवलिंग रखा था। छोटे और कच्चे चबूतरे पर बरसात के पानी ने छोटे-छोटे गड्ढे कर दिए थे। इसलिए महादेव जी की मूर्ति कुछ तिरछी हो गई थी। यह देखकर परसराम घोड़े से उतरा और उसे एक पेड़ से बांधकर अपनी तलवार से महादेव जी की पिंडी को ठीक से बिठलाने लगा। परसराम बोला - ‘महादेव जी! आप मेरे गुरु जी हैं। आप भगवान परशुराम के गुरु जी थे, इसलिए मेरे भी गुरु हैं। वह भी ब्राह्मण थे, मैं भी ब्राह्मण हूं। उन्होंने अमीरों का नाश किया था और गरीबों का पालन किया था। मैं भी वही कर रहा हूं। वे मूर्ख लोग हैं जो मुझे डाकू कहते हैं। धनवान से जबरन धन लेकर दीनों का पालन करना क्या डाकूपन है? यदि है तो बना रहे। मुझे क्या? ग्वालियर राज्य ने मेरे लिए 5000 का इनामी वारंट जारी किया है और भारत सरकार ने 25000 का। मेरी गिरफ्तारी के लिए 30000 का इनाम भी ...

महासती शीलवती की कहानी (भाग - 2)

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महासती शीलवती की कहानी (भाग - 2) शीलवती ने अपने ससुर को सारी बातों का रहस्य बताना आरम्भ किया। ‘पिताजी! सबसे पहले उस मूंग के हरे-भरे खेत को देखकर आपने उस खेत के मालिक को मालामाल होने की बात कही, किन्तु उस खेत पर किसी अन्य श्रेष्ठी की बंधक-पट्टी लगी थी। उस खेत का मालिक किसान तो बेचारा इतना कर्ज़दार था कि सारी मूंग की फसल बेच देने पर भी वह तो भूखा का भूखा ही रहने वाला था। दूसरी बात, उस बाणों से घायल क्षत्रिय को देखकर आपने कहा, यह तो कोई लड़ाकू वीर पुरुष है, किन्तु उस के सभी घाव उसकी पीठ पर थे, जो उसकी वीरता के नहीं, अपितु उसकी कायरता के चिह्न थे। इसलिए मैंने उसे कायर कहा था। तीसरी बात, आपने नदी में जूते उतार कर पैर रखा। वह नदी बहुत गहरी थी और यदि उस नदी में रहने वाले जहरीले जीव-जन्तु आपके पैर में काट लेते, तो आपको कष्ट हो सकता था। इसीलिए मैंने आपको नदी में जूते पहन कर चलने की सलाह दी थी। चौथी बात, जिस मंदिर में आपने आश्रय लेना चाहा था, उस मंदिर में जगह-जगह जुए का सामान और मदिरा की बोतलें पड़ी हुई थी। यह देख कर ही मैंने उसे नरक कहा था, क्योंकि वह तो बदमाशों का अड्डा था। पाँचवीं बात, नगर को मै...