एक स्वामी भक्त बालक

एक स्वामी भक्त बालक

उस समय भारत की राजधानी उज्जैन में थी। राजा वीर विक्रमादित्य उस समय भारत सम्राट थे। उनको बालकों से बहुत प्रेम था। महल के भीतर प्रत्येक कार्य पर बालक ही नियुक्त थे, क्योंकि बालक सीधे, सच्चे, सरल, सुखद, सुभग और सुंदर होते हैं। वे सहसा कोई अपराध नहीं करते।

रामायण में भी लिखा है - ‘बंदउ बाल रूप सोइ रामु’ अर्थात! प्रत्येक का बालक, चाहे वह पशु-पक्षी का भी हो, राम का स्वरूप होता है। इसी विचार से भारत सम्राट् ने अपने अंगरक्षक भी बालक ही बनाए थे और महल का सारा प्रबंध बालकों को सौंप दिया था।

गर्मी की रात थी। सतखंडे पर महाराज सो रहे थे। पलंग के नीचे कालीन पर उनके अंगरक्षक सो रहे थे। सहसा रोने की आवाज सुनकर महाराज जग पड़े। उस समय आधी रात बीत चुकी थी। एक स्त्री को रोती हुई सुनकर महाराज ने कहा - ‘पहरे पर कौन है?’

पांच लड़के एक-एक घंटा जाग कर महाराज का पहरा देते थे। उस समय किशोर नामक एक क्षत्रिय बालक का पहरा था। वह चुपचाप सामने जा खड़ा हुआ।

‘कौन! किशोर!’, सम्राट ने कहा।

किशोर ने हाथ जोड़कर कहा - ‘जी, अन्नदाता! आज्ञा!’

राजा बोले - ‘किसी स्त्री के रोने की आवाज सुनते हो, किशोर सिंह!’

किशोर ने कहा - ‘जी, सरकार!’

दीनबंधु सम्राट ने आदेश दिया - ‘जाकर देखो कि इस समय कौन रोता है और क्यों रोता है?’

अपनी तलवार लेकर किशोर सिंह गुप्त द्वार से महल के बाहर निकल गया।

किशोर की आज्ञा-पालक विधि को खुद देखने के लिए सम्राट भी उसके पीछे छिपते हुए महल से बाहर निकल गए। सावधान सम्राट वही है, जो अपने नौकरों की स्वयं जांच-पड़ताल करता है।

रोने की आवाज काली देवी के मंदिर से आ रही थी। किशोर ने मंदिर में जाकर देखा कि एक अतीव सुंदर स्त्री रो रही है। मंदिर के पीछे एक रोशनदान था। उसके द्वारा सम्राट विक्रमादित्य भीतर का हाल देख रहे थे।

किशोर ने पूछा - ‘आप कौन हैं, देवी!’

देवी ने कहा - ‘मैं राज्य लक्ष्मी हूं।’

किशोर ने कहा - ‘आप क्यों रो रही हैं इस समय?’

‘राजा वीर विक्रमादित्य की अकाल मृत्यु आ गई है। ऐसा राजा फिर मुझे कहां मिलेगा? इसीलिए रोती हूं’, देवी ने उत्तर दिया।

किशोर ने पूछा - ‘राजा की मौत कब होगी?’

देवी ने कहा - ‘आज प्रातः ठीक 4:00 बजे।’

किशोर ने आंखों में आंसू भरकर पूछा - ‘महाराज के जीवन की रक्षा हो सकती है?’

देवी ने भी अपने आंसू पोंछे - ‘हां! हो सकती है, क्योंकि उपाय सब संकटों के निवारण का होता है।’

किशोर ने जल्दी-जल्दी पूछा - ‘बतलाइए! बतलाइए!! हमारे हृदय सम्राट कैसे बच सकते हैं?’

‘अगर कोई कुंवारा व्यक्ति काली देवी के सामने अपना बलिदान कर दे, तो राजा बच जाएगा।’ - इतना कह कर राज्य लक्ष्मी अंतर्धान हो गई।

अपने आप किशोर कहने लगा - ‘कुंवारा व्यक्ति मैं कहां से खोजने जाऊंगा? मैं खुद कुंवारा हूं। यदि 100 किशोरों के मरने से ऐसे सम्राट की जीवन रक्षा हो, तो भी कोई बात नहीं। मैं अपना बलिदान करुंगा।’ इतना कहकर किशोर ने तलवार नंगी की और अपना गला काटकर देवी के चरणों में डाल दिया।

यह हाल देखकर राजा ने मंदिर में प्रवेश किया। स्वामी भक्त बालक की लाश देखकर महाराज ने उसको उठा लिया।

सम्राट ने देवी से प्रार्थना की - ‘या तो इस लड़के को जीवित कीजिए, नहीं तो मैं भी तलवार से अपना गला काटता हूं। मैं तो समझता था कि राजा से कोई भी हार्दिक और निस्वार्थ प्रेम नहीं कर सकता। ओह! किशोरी जैसा स्वामी भक्त अब मुझे कहां मिलेगा?’ इतना कह कर राजा ने तलवार अपनी गर्दन पर चला दी।

तुरंत काली माई प्रकट हो गई और देवी ने राजा का हाथ पकड़ लिया - ‘क्या बात है, राजन्! तुमको जीवित रखने के लिए ही तो बलिदान लिया गया है। अब तुम नहीं मर सकते’, यह कहकर देवी ने तलवार छीन ली।

‘माता! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो इस लड़के को जीवित कीजिए। यह लड़का जीवित नहीं हुआ, तो मैं जीवित होते हुए भी मृतक बना रहूंगा। इसका गम मुझे खाता रहेगा।’

‘अच्छा! तुम जाओ। तुम्हारे पीछे यह लड़का भी आता है’, देवी ने मुस्कुरा कर कहा।’

राजा चला गया और अपने पलंग पर जा लेटा। देवी ने लड़के का सिर उसके धड़ से लगाया और उसे जीवित कर दिया। अपनी तलवार लेकर किशोर भी महल की छत पर जा पहुंचा।

‘आ गए, किशोर!’, सम्राट ने पूछा।

किशोर बोला - ‘जी, अन्नदाता।’

सम्राट ने पूछा - ‘वह स्त्री क्यों रो रही थी?’

किशोर ने बहाना बनाया - ‘कुछ नहीं, सरकार! उसकी सास ने उसे पीटा था। मैं समझा बुझाकर उसे उसके घर पहुंचा आया हूं और उसकी सास को भी धमका आया हूं कि अब कभी बहू को मारा-पीटा, तो तुम्हारी शिकायत महारानी से कर दी जाएगी।’

‘तुम धन्य हो, किशोर! तुम्हारे माता-पिता धन्य हैं। आज से तुम मेरे प्रधान सेनापति हुए। यह कहकर सम्राट ने किशोर को हृदय से लगा लिया।

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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