एक लोटा पानी (भाग - 1)

एक लोटा पानी (भाग - 1)

चैत का महीना था। ग्वालियर राज्य का मशहूर डाकू परसराम अपने अरबी घोड़े पर चढ़ा हुआ जिला दमोह के देहात में होकर कहीं जा रहा था। तेज दोपहरी थी। प्यास के कारण परसराम का गला सूख रहा था। कोई तालाब, नदी या गाँव दिखाई नहीं देता था।

चलते-चलते उसे एक चबूतरा मिला, जिस पर एक शिवलिंग रखा था। छोटे और कच्चे चबूतरे पर बरसात के पानी ने छोटे-छोटे गड्ढे कर दिए थे। इसलिए महादेव जी की मूर्ति कुछ तिरछी हो गई थी। यह देखकर परसराम घोड़े से उतरा और उसे एक पेड़ से बांधकर अपनी तलवार से महादेव जी की पिंडी को ठीक से बिठलाने लगा।

परसराम बोला - ‘महादेव जी! आप मेरे गुरु जी हैं। आप भगवान परशुराम के गुरु जी थे, इसलिए मेरे भी गुरु हैं। वह भी ब्राह्मण थे, मैं भी ब्राह्मण हूं। उन्होंने अमीरों का नाश किया था और गरीबों का पालन किया था। मैं भी वही कर रहा हूं। वे मूर्ख लोग हैं जो मुझे डाकू कहते हैं। धनवान से जबरन धन लेकर दीनों का पालन करना क्या डाकूपन है? यदि है तो बना रहे। मुझे क्या? ग्वालियर राज्य ने मेरे लिए 5000 का इनामी वारंट जारी किया है और भारत सरकार ने 25000 का। मेरी गिरफ्तारी के लिए 30000 का इनाम भी छप चुका है। वे लोग अमीरों के पालक और गरीबों के घालक हैं। इसलिए वे मुझे डाकू कहते हैं। वास्तव में डाकू वे हैं या मैं? इसका निर्णय कौन करेगा? खैर! कोई परवाह नहीं। जब तक शंकर गुरु का हाथ मेरी पीठ पर है, तब तक कोई परसराम को गिरफ्तार नहीं कर सकता, लेकिन क्या मैं आज प्यास के मारे इस जंगल में मर जाऊंगा? मेरे 15 साथी, जो सभी पढ़े-लिखे और बहादुर हैं, अपने-अपने अरबी घोड़े पर चढ़कर मुझे खोज रहे होंगे। जब वे मुझे इस जंगल में मरा हुआ पाएंगे, तब वे बहुत दुःखी होंगे। हे बाबा! हे गुरुदेव! क्या एक लोटा पानी के बिना आप मेरी जान ले लेंगे?’

तभी एक बुढ़िया वहां आई। उसके हाथ में एक लोटा पानी था और लोटे के ऊपर एक कटोरी थी, जिसमें मिठाई रखी थी।

परसराम - ‘बूढ़ी माई! तुम कहां रहती हो?’

बुढ़िया - ‘थोड़ी दूर पर सेखूपुर गाँव है। बागों में बसा हुआ है, इसलिए दिखाई नहीं देता। वहीं मेरा घर है। मैं जाति की अहीर हूं, बेटा!’

परसराम - ‘यहां क्यों आई हो?’

चबूतरे पर पानी और मिठाई रख कर बुढ़िया बैठ गई और रोने लगी।

जब परसराम ने बहुत समझाया, तब वह कहने लगी - ‘बेटा! मौत के दिन पूरे कर रही हूं। घर में एक लड़का था और उसकी बहू थी। मेरा बेटा बिहारी तुम्हारी ही उम्र का था। उसी ने यह चबूतरा बनवाया था और कहीं से लाकर उसी ने यह महादेव यहां रखे थे। वह रोजाना पूजा करता था। पिछले साल इस गाँव में कलमुंही ताउन (प्लेग) आई। बेटा और बहू दोनों एक 10 साल की कन्या को छोड़कर स्वर्ग सिधार गए। रोने के लिए मैं अकेली रह गई। जब से बेटा मरा है, तब से मैं रोज एक लोटा पानी चढ़ा जाती हूं और आंसू बहा जाती हूं। इस साल वैशाख में मेरी नातिन चंपा का विवाह है। घर में कुछ भी नहीं है। न जाने कैसे महादेव बाबा मेरी चंपा का विवाह करेंगे?’

परसराम - ‘दादी! महादेव बाबा चंपा का विवाह खूब धूमधाम से करेंगे। तुम यह पानी मुझे पिला दो। मुझे बहुत प्यास लगी है।’

बुढ़िया - ‘पी लो, बेटा! पी लो! मिठाई भी खा लो। यह पानी जो तुम पी लोगे, तो मैं समझूंगी कि महादेव जी पर चढ़ गया। आत्मा सो परमात्मा!! मैं फिर चढ़ा जाऊंगी। पी लो, बेटा! पी लो। पहले यह मिठाई खा लो।’

इतना कहकर बुढ़िया ने पानी का लोटा और मिठाई की कटोरी परसराम के सामने रख दी।

मिठाई खाकर और शीतल स्वच्छ जल पीकर परसराम बोले - ‘चंपा का विवाह कब होगा, अम्मा?’

बुढ़िया - ‘वैशाख के उजेरे पक्ष की पंचमी को टीका है। केसरीपुर से बारात आएगी।’

परसराम - ‘विवाह के लिए तुम कुछ चिंता मत करना। तुम्हारी चंपा का विवाह महादेव ही करेंगे।’

बुढ़िया - ‘तुम कौन हो, बेटा? तुम्हारी हज़ारी उम्र हो। गाँव तक चलो तो तुमको कुछ खिला-पिला दूं। भूखे मालूम हो रहे हो।’

परसराम - ‘अम्मा! भूखा तो हूं, पर गाँव में नहीं जा सकता। मेरा नाम परसराम है और लोग मुझे डाकू कहते हैं। आगरे के कप्तान यंग साहब जिन्होंने सुल्ताना डाकू को भी गिरफ्तार किया था, 30 सिपाहियों के साथ मेरे पीछे लगे हुए हैं। मेरे सभी साथी छूट गए हैं। इसलिए मैं गाँव में नहीं जा सकता। जिस दिन चंपा का विवाह होगा, उस दिन तुम्हारे गाँव में 5 मिनट के लिए आऊंगा।’

बुढ़िया - ‘बेटा! तुम डाकू तो मालूम नहीं पड़ते। देवता मालूम पड़ते हो।’

घोड़े पर सवार होकर परसराम ने कहा - ‘अब ऐसा ही उल्टा जमाना आया है, मां। उदार और बहादुर को डाकू कहा जाता है और महलों में बैठकर दिन दहाड़े गरीबों को लूटने वालों को रईस कहा जाता है। धर्मात्मा भीख मांगते हैं और पापी लोग हुकूमत करते हैं। पतिव्रताएं उघारी फिरती हैं, छिनालों के पास रेशमी साड़ियां हैं। यह कलयुग है न! मैं जाता हूं। मेरा नाम याद रखना। पंचमी को आऊंगा।’

परसराम चला गया। बुढ़िया ने भी अपने घर की राह ली। महादेव जी पर जल चढ़ाकर उसने चंपा से परसराम के मिलने की सारी कहानी बयां कर दी। गाँव का मुखिया भी वहीं खड़ा था। उसने भी सारा हाल सुना। मुखिया ने सोचा - मेरा तो भाग जग गया। इनाम का बड़ा हिस्सा मुझे ही मिलेगा।

उसने थाने में जाकर रिपोर्ट लिखवाई - वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन परसराम सेखूपुर में चंपा के विवाह में शामिल होने आएगा। पुलिस के द्वारा यह समाचार  यंग साहब को मालूम करा देना चाहिए। अगर उस रोज़ डाकू परसराम गिरफ्तार नहीं होगा, तो फिर कभी नहीं हो सकेगा।

चौथ के दिन बिहारी अहीर के दरवाजे पर पांच गाड़ियां आकर खड़ी हुई। एक में आटा भरा था, एक में घी-शक्कर और तरकारियाँ भरी थी। एक गाड़ी में कपड़े ही कपड़े थे। तरह-तरह के नए-नए थानों से गाड़ी भरी हुई थी। चौथी गाड़ी में नए-नए बर्तन भरे थे और पांचवी गाड़ी में तरह-तरह की पक्की मिठाइयां भरी थी।

गाड़ीवानों ने सब सामान बिहारी अहीर के घर में भर दिया। लोगों ने जब यह पूछा कि यह सामान किसने भेजा है, तब गाड़ीवानों ने कहा कि हम लोग भेजने वाले का नाम धाम कुछ नहीं जानते। हम लोग दमोह के रहने वाले हैं। किराए पर गाड़ी चलाया करते हैं। हम लोगों को किराया अदा कर दिया गया है। हमें केवल यही हुक्म है कि यह सामान सेखूपुर के बिहारी अहीर के घर में जबरन भर आवें। बस! और ज्यादा 3-5 हम लोग कुछ नहीं जानते।

इस विचित्र घटना पर गाँव भर आश्चर्य कर रहा था। केवल मुखिया को और बुढ़िया को मालूम था कि यह सब काम परसराम का है। मुखिया ने थाने में इस घटना की रिपोर्ट लिखवाई हुई थी और यह भी लिखवाया था कि कल पंचमी के दिन सुबह को जब चंपा के फेरे पड़ेंगे, उस समय कन्यादान देने खुद परसराम के आने की उम्मीद है क्योंकि वह अभी तक खुद नहीं आया है। 5 मिनट के लिए उसने गाँव में आने का वचन दिया है। चाहे धरती इधर की उधर हो जाए, पर परसराम का वचन खाली नहीं जा सकता।

चौथ की रात में ही मिस्टर यंग साहब अपने 30 मरकट सिपाहियों के साथ सेखूपुर में आ धमके। उन सब ने घोड़ों के सौदागरों का भेष बनाया हुआ था। मुखिया के दरवाज़े पर वे लोग ठहर गए। गाँव वालों ने जाना कि घोड़ों के सौदागर लोग मेले में जा रहे हैं। मुखिया और चौकीदार के सिवा असली भेद कोई नहीं जानता था।

क्रमशः

।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।

विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


Comments

Popular posts from this blog

बालक और राजा का धैर्य

सती नर्मदा सुंदरी की कहानी (भाग - 2)

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 18 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

सती कुसुम श्री (भाग - 11)

सती मृगांक लेखा (भाग - 1)

चौबोली रानी (भाग - 24)

सती मृगा सुंदरी (भाग - 1)

सती मदन मंजरी (भाग - 2)

सती गुणसुंदरी (भाग - 3)

सती मदन मंजरी (भाग - 1)