चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास का महत्व
एक बार गुरु ने बच्चों से पूछा - बताओ 12 में से 4 घटाएं तो क्या बचेगा?
एक बच्चे ने उत्तर दिया - शून्य।
सभी बच्चे हैरान हो गए। हैं! इसे इतना गणित भी नहीं आता?
गुरु ने कहा कि हाँ, ठीक है।
अरे! यह कैसे ठीक हो सकता है? सभी बच्चे एक दूसरे का मुख देखने लगे।
गुरु ने कहा - देखो, मैं बताता हूँ। यदि वर्ष के 12 महीनों में से चातुर्मास के वर्षाकाल के 4 महीने निकाल दिए जाएं तो सारा जन-जीवन शून्य हो जाएगा। यही समय है जब आकाश से वर्षा जल की अमृत बूंदें उस धरती की प्यास बुझाती हैं, जिसका हृदय जेठ मास की तपती धूप को सहन करते-करते विदीर्ण हो जाता है।
एक किसान जब खेत में बीज बोने के लिए जाता है, तो सबसे पहले आकाश की ओर देखता है कि हे प्रभु, हम पर कृपा करना। धरती पर वर्षा का अमृत जल भरपूर मात्रा में बरसाना ताकि इसका तन-मन तृप्त हो जाए और हम अच्छी फसल का उत्पादन करके लोगों को अन्न से तृप्त कर सकें।
और यही 4 महीने अपने मन को धर्म के बीजारोपण के लिए तैयार करने के लिए उत्तम माने जाते हैं। कहते हैं कि सावन का चूका किसान सारा साल पछताता है कि अगर मैंने पहले ही जमीन को बीज बोने के लिए तैयार कर लिया होता तो आज मेरे खेत में भी फसल लहलहा रही होती।
कहीं हम भी यही गलती तो नहीं कर रहे?
संत मीलों मील पैदल चल कर हमारे नगर में चातुर्मास के समय धर्म की अमृत-बूंदों की वर्षा करने आते हैं। संसार के दुःखों से दग्ध हमारे हृदय को शांति प्रदान करते हैं। दशलक्षण पर्व के माध्यम से धर्म के बीज बोते हैं और दीपावली तक भगवान के निर्वाण दिवस पर हमारे मन में भी इस राह पर चलने की चाह प्रबल होने लगती है।
हमें उस किसान की तरह कोई चूक नहीं करनी चाहिए वरना अगले वर्ष तक प्रतीक्षा करना आसान नहीं है। जैसे बीज को घरती में बोने से पहले भूमि तैयार की जाती है, वैसे ही धर्म का बीज बोने से पहले मन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जाता है।
जो दाना मुख में चला गया वह मल बन गया और जो दाना उपजाऊ भूमि में बो दिया गया, वह हमें प्रतिफल के रूप में बोरे भर कर अनाज देगा।
इसी प्रकार यदि हम धर्म के बीज को धर्म-सभा में ही छोड़ कर आ गए तो वह कचरे के ढेर में चला जाएगा और यदि हमने उसे अपने मन में बो लिया तो वह वैराग्य के वृक्ष के रूप में बढ़ता चला जाएगा और एक न एक दिन उस पर मोक्ष का फल भी अवश्य लगेगा।
क्या आपको मालूम है कि बीज में वृक्ष बनने से पहले क्या और कैसे परिवर्तन आता है?
बीज मिट्टी और पानी का संसर्ग पाकर पहले तो फूलता है। उसके आकार में विकृति आने लगती है। उसके अंदर खोल से बाहर निकलने की एक कसमसाहट सी होने लगती है। फिर वह अपने सख्त छिलके को फोड़ कर अंकुरण के रूप में बाहर निकलता है। वृक्ष बनने के लिए उसे अपना अस्तित्व मिटाना पड़ता है, स्वयं को नष्ट करना पड़ता है।
इसी प्रकार जब मन धर्म और गुरु के संसर्ग में आता है तो मन में संसार के दुःखों से छुटकारा पाने की बेचैनी बढ़ने लगती है। वह अपने शरीर से मोह छोड़ कर तप के मार्ग का अनुसरण करता है। शरीर को नष्ट करके साधना का अंकुर फूटता है और तभी मोक्ष-फल की प्राप्ति होती है।
जो शरीर भोगों में चला गया वह मल बन गया और जिस शरीर से धर्म-ध्यान की साधना कर ली, वह मोक्ष-फल देने में सहायक बन गया।
शरीर के कृश होने की चिंता न करो। आपने अंगूर को देखा होगा। एकदम ताज़ा, हरा-हरा, रस से भरा हुआ। उसकी कीमत होगी लगभग 80 रुपए किलो, पर एक बार हाथ में लेकर पिचका दो कि सारा रस बाहर। केवल छिलका ही हाथ में रह जाता है।
इसके विपरीत किशमिश का मूल्य है लगभग 800 रुपए किलो। वह इतनी मूल्यवान क्यों है?
उसने तपस्या व साधना के बल पर अपने रस को अपने अंदर समाहित किया है। वह कृश अवश्य है पर अपने आनन्द व मिठास से भरपूर है।
यही एक तपस्वी और सामान्य व्यक्ति में अन्तर है। तपस्वी ने अपनी इन्द्रियों को साधा हुआ है। वह क्रोध, मान, माया व लोभ के दबाव से पिचकने वाला नहीं है।
आपने देखा होगा कि वृक्ष पर फल लगने से पहले उसके अग्र भाग पर पुष्प लगता है। फल लगने से पहले पुष्प झड़ जाता है और फल का निर्माण होने लगता है। इसी प्रकार जब तपस्या से शरीर को कष्ट पहुँचता है, तो शरीर नष्ट होने लगता है। तभी वह मोक्ष-फल के रूप में परिवर्तित होने लगता है।
आत्मा व शरीर का सम्बन्ध दूध और पानी के समान है। दूध में पानी मिला दो तो पानी भी दूध के समान दिखाई देता है। जब हम दूध को अग्नि पर तपाते हैं, तो पानी धीरे-धीरे नष्ट हो कर भी दूध की रक्षा करता है और दूध को शुद्ध मावा बना देता है।
शरीर भी स्वयं तप कर आत्मा को शुद्ध परमात्मा बना देता है। सच्चा मित्र वही है जो स्वयं नष्ट होकर भी अपने मित्र की रक्षा करता है।
शरीर हमारा सच्चा मित्र है जो हमें परमात्मा बनने में सहायक है।
अतः चातुर्मास में अपने मन को धर्म का बीज बोने के लिए तैयार करो, तभी चातुर्मास की साधना सार्थक है।
आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के प्रवचन के आधार पर।
।। ओऽम् श्री महावीराय नमः ।।
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धन्यवाद।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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