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Showing posts from March, 2021

धर्म के चार सोपान

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धर्म के चार सोपान केवलज्ञानी भगवान जिनेन्द्र द्वारा बताई गई वाणी को ‘जिनवाणी’ कहा जाता है। इस वाणी में धर्म के चार सोपान बताए गए हैं - 1. प्रथमानुयोगः इस अनुयोग में महापुरुषों के जीवन के उदाहरणों द्वारा धर्म की प्रभावना की जाती है। 2. चरणानुयोगः इस अनुयोग में प्रमाद का त्याग करके धर्म-मार्ग पर चरण बढ़ाने की प्रेरणा दी गई है। 3. करणानुयोगः इस अनुयोग में कर्म व उनके फल का वर्णन है। 4. द्रव्यानुयोगः इस अनुयोग में आत्मा के वास्तविक स्वरूप का वर्णन किया गया है। आइए इन अनुयोगों के विषय में एक आख्यान के माध्यम से सरल शब्दों में जानकारी प्राप्त करते हैं। एक बार माँ (जिनवाणी माँ) अपने बच्चे (श्रावक) की अंगुली पकड़ कर मंदिर की ओर ले जा रही थी। अब बच्चे में तो बच्चे जैसी ही प्रवृत्ति होती है। उसका उद्देश्य तो मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करने का था पर रास्ते में आने वाले प्रलोभन उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। कभी वह खिलौनों की दुकान पर ठिठक जाता और कभी मिठाइयों की दुकान उसके मन को ललचाने लगती। माँ के हाथ से उसकी अंगुली की पकड़ ढीली हो जाती और वह इधर-उधर देखता रहता। रास्ते में एक बड़ा-सा पत्थ...

णमोकार मंत्र व उसकी महिमा

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णमोकार मंत्र व उसकी महिमा प्रायः प्रत्येक सम्प्रदाय ने अपने उपास्य की उपासना के लिए किसी न किसी मंत्र का आश्रय लिया जिसके जाप से वे अपने इष्ट का स्मरण करते हैं, किन्तु विश्व के सभी मंत्रों में णमोकार मंत्र को महामंत्र की संज्ञा दी गई है क्योंकि इसमें किसी व्यक्ति विशेष की उपासना या स्मरण नहीं किया जाता अपितु एक व्यक्तित्व का, उसके गुणों का स्मरण किया जाता है और यह भावना भाई जाती है कि हमें भी वे गुण प्राप्त हों। हमें भगवान के समान नहीं बल्कि स्वयं भगवान बनने का मार्ग मिलता है। इस मंत्र में, विश्व का ऐसा प्रत्येक जीव जो सिद्ध हो चुका है (सिद्ध परमेष्ठी) तथा जो सिद्ध होने वाला है (अरिहंत परमेष्ठी) या सिद्ध होने की साधना में लगा हुआ है (आचार्य, उपाध्याय व साधु परमेष्ठी), को नमस्कार किया गया है। यह मंत्र हमें शब्द से अर्थ की ओर ले जाता है। ”णमो अरिहंताणं“ का शब्दिक अर्थ है - अरिहंतों को मेरा नमस्कार हो। वास्तव में जब हम “णमो अरिहंताणं” का जाप या स्मरण करते हैं तो हम यह सोचते हैं कि वे व्यक्ति जिन्होंने अपने शत्रुओं को मार दिया है, उन्हें नमस्कार हो। हम यह भी जान लें कि वे शत्रु कोई बाहर से...

मंत्र-जाप में पूर्ण आस्था व श्रद्धा (1)

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मंत्र-जाप में पूर्ण आस्था व श्रद्धा ( 1 ) आज के प्रवचन का मुख्य उद्देश्य है कि हम जिस मंत्र का जाप करते हैं, उसमें हमारी पूर्ण आस्था व श्रद्धा होनी चाहिए। पहले मनके से लेकर 108 वें मनके तक हमें उसी आस्था को बनाए रखना है। मंत्र-जाप का उद्देश्य है, अपनी आत्म-ज्योति को प्रज्ज्वलित करना। यदि हमारी आत्म-ज्योति के दीपक में आस्था का तेल व श्रद्धा की बाती नहीं होगी तो वह प्रकाशमान होकर आत्मांधकार को मिटाने में सक्षम नहीं हो पाएगा। जैसे एक बुझा हुआ दीपक अंधकार को नहीं मिटा सकता, वैसे ही आस्था व श्रद्धा के अभाव में किया गया मंत्र-जाप हमारी आत्मा के अंधकार को समाप्त नहीं कर सकेगा। हम ज्ञान का प्रकाश प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें मंत्र में पू्र्ण आस्था रखनी चाहिए। यदि कभी हमने अपने इष्ट वीतरागी देव और णमोकार मंत्र के प्रति आस्था खो दी तो हम सौधर्म चक्रवर्ती सम्राट के समान भव सागर में डूब सकते हैं। आपने सौधर्म चक्रवर्ती सम्राट का नाम तो सुना ही होगा। एक बार उनकी पाकशाला में मेवा व सुगंध से युक्त खीर पकाई गई। रसोइए ने बहुत मनोयोग से राजा के लिए खीर बनाई थी। राजा को प्रसन्न करने के लिए उसने तुरन्त थ...

णमोकार मंत्र का जाप व उस का फल

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णमोकार मंत्र का जाप व उस का फल यदि आप णमोकार मंत्र के जाप का अधिकतम फल प्राप्त करना चाहते हैं तो पहले उसके अर्थ को समझें। जैसे एक बच्चे को हमने ‘गाय’ शब्द सिखाया और उसने बोलना भी सीख लिया। बार-बार बोलने से उसे याद हो गया किन्तु प्रत्यक्ष रूप में उसने ‘गाय’ को कभी नहीं देखा तो वह गाय के बारे में उतना ही समझ पाएगा जितना उसे बताया गया है। वह गाय पर निबन्ध तो सुना देगा कि गाय चार पैर वाली होती है जो दूध देती है और उस दूध को पीने से मनुष्य ताकतवर बनता है लेकिन वह गाय को देखे बिना सामने आने पर उसे पहचान नहीं पाएगा। यदि बच्चे को प्रत्यक्ष दिखा दिया जाए कि देखो बेटा! यह गाय है तो उसे शब्द का उच्चारण करते ही गाय का रूप-रंग, उसकी वास्तविक आकृति, आवाज़ की पहचान, गुण, स्वभाव, दूध की पौष्टिकता आदि सभी बातें स्वयमेव ही स्मृति में झलकने लगेंगी।  बच्चे में स्वतः गाय को देखने और उसके दूध का सेवन करने की इच्छा जागृत हो जाएगी ताकि वह उसके दूध से स्वयं को शक्तिशाली बना सके। उसका मन बार-बार उसकी ओर आकर्षित होगा तथा वह उसके समीप जाने के लिए लालायित होने लगेगा। यही स्व-स्फूर्त आकर्षण उस मंत्र के प्रति हो...

श्री वीतराग स्तोत्र

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श्री वीतराग स्तोत्र इस दृश्यमान जगत में जो भी शरीर आदि पदार्थ दिखाई दे रहे हैं, वो ‘मैं’ नहीं हूँ। कर्म से उत्पन्न राग आदि परिणाम स्वरूप ‘मैं’ आत्मा नहीं हूँ। निश्चय से परम आनन्द स्वरूप वीतरागता ही मेरा स्वभाव है। ऐसे पर पदार्थों से ममत्व हटाकर निज स्वरूप में प्रीति जगाने के लिए इस ‘श्री वीतराग स्तोत्र’ की रचना की गई है। दूसरे के निमित्त से होने वाली व्याकुलता को दूर करने के लिए इसका पाठ, स्मरण और चिंतन रामबाण औषधि के समान कार्यकारी होता है। शिवं शुद्ध बुद्धं परं विश्वनाथं, न देवो न बंधुर्न कर्मा न कर्त्ता। न अंगं न संगं न स्वेच्छा न कायं, चिदानन्द रूपं नमो वीतरागम् ।। 1 ।। अर्थ - मैं कल्याण स्वरूप, कर्मों से रहित, विश्वनाथ, श्रेष्ठ, चिदानन्द रूप वीतराग देव को नमस्कार करता हूँ जो न देव है, न बंधु (कुटुम्बी) है, न कर्म है, न कर्त्ता है। वह न अंग (शरीर का अवयव) है, न संग (परिग्रह) है, न स्वेच्छा (अपनी इच्छा) है और न ही काय (शरीर रूप) है। न बन्धो न मोक्षो न रागादिदोषः, न योगं न भोगं न व्याधिर्न शोकः। न कोपं न मानं न माया न लोभं, चिदानन्द रूपं नमो वीतरागम् ।। 2 ।। अर्थ - मैं ऐसे वीतराग देव...

श्रुत पंचमी (ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी) के पावन अवसर पर

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श्रुत पंचमी (ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी) के पावन अवसर पर ‘ज्ञान दीप तप तेल भर, घर शोधै भ्रम छोर। या विधि बिन निकसै नहीं, पैठे पूरब चोर।।’ आज ज्ञान का पर्व है। ज्ञान के प्रकाश को दीपक के समान अंधकार के विनाश का माध्यम बताया गया है। किसी ने दीपक से पूछा कि तुम क्यों जलते हो ? उसने कितना सुन्दर जवाब दिया - ‘किसी कदम को लगे न ठोकर, इसीलिए हम जलते हैं। निश्छल हो, निश्चल मन होकर, मोक्ष मार्ग पर चलते हैं। जिसके जीवन में अंधियारा हो, वहाँ प्रकाश तुम भर देना। जहाँ दिखाई पड़े अमावस, वहाँ पूर्णिमा कर देना।’ जब अमावस की रात्रि का अंधकार चारों ओर फैल जाता है तो चोर चोरी करने के लिए निकलते हैं। सोए हुए आदमी के घर में सेंध लगाते हैं और चोरी के इरादे से उसके घर में प्रविष्ट हो जाते हैं। जो आदमी सचेत हो, उसके घर में चोरों का प्रवेश असम्भव है। घर में घुसते ही वे पहले उस कक्ष की ओर जाते हैं, जहाँ मूल्यवान वस्तुएँ मिलने की संभावना होती है। तुरंत अपना काम किया और निकल लिए। फिर तो नींद से जागने के बाद ही पता चलता है कि मेरी सबसे मूल्यवान वस्तु चोरी हो गई। पश्चाताप भी होता है कि यदि मैंने समय रहते चोरों को भगा दिया...