णमोकार मंत्र व उसकी महिमा
णमोकार मंत्र व उसकी महिमा
प्रायः प्रत्येक सम्प्रदाय ने अपने उपास्य की उपासना के लिए किसी न किसी मंत्र का आश्रय लिया जिसके जाप से वे अपने इष्ट का स्मरण करते हैं, किन्तु विश्व के सभी मंत्रों में णमोकार मंत्र को महामंत्र की संज्ञा दी गई है क्योंकि इसमें किसी व्यक्ति विशेष की उपासना या स्मरण नहीं किया जाता अपितु एक व्यक्तित्व का, उसके गुणों का स्मरण किया जाता है और यह भावना भाई जाती है कि हमें भी वे गुण प्राप्त हों।
हमें भगवान के समान नहीं बल्कि स्वयं भगवान बनने का मार्ग मिलता है।
इस मंत्र में, विश्व का ऐसा प्रत्येक जीव जो सिद्ध हो चुका है (सिद्ध परमेष्ठी) तथा जो सिद्ध होने वाला है (अरिहंत परमेष्ठी) या सिद्ध होने की साधना में लगा हुआ है (आचार्य, उपाध्याय व साधु परमेष्ठी), को नमस्कार किया गया है।
यह मंत्र हमें शब्द से अर्थ की ओर ले जाता है।
”णमो अरिहंताणं“ का शब्दिक अर्थ है - अरिहंतों को मेरा नमस्कार हो।
वास्तव में जब हम “णमो अरिहंताणं” का जाप या स्मरण करते हैं तो हम यह सोचते हैं कि वे व्यक्ति जिन्होंने अपने शत्रुओं को मार दिया है, उन्हें नमस्कार हो। हम यह भी जान लें कि वे शत्रु कोई बाहर से नहीं आए, जिनका हनन करना है। वे शत्रु तो हमारे भीतर ही विद्यमान हैं।
जिन्होंने काम (सभी प्रकार की कामनाएं), क्रोध, मान, माया, लोभ इत्यादि कषायों को जीत लिया है, वे ही अरि (शत्रु) का हनन (मारने) करने वाले अरिहंत हैं। जब हम एकाग्रचित्त होकर उनका स्मरण करते हैं, विनम्र भाव से उन्हें नमस्कार करते हैं तो हमारे मन में भी उनके समान बनने की प्रेरणा जागृत होती है।
अरिहंतों का स्मरण हमें ऊर्जा प्रदान करता है। हमारी आत्मा की शक्ति में वृद्धि होने लगती है। शरीर में विद्युत अथवा ऊर्जा उत्पन्न होने लगती है जो शरीर के चारों ओर शक्तिशाली आभामण्डल बनाती है।
जो व्यक्ति ऐसे साधकों के आसपास भी रहते हैं, वे भी उस आभामण्डल से प्रभावित होते हैं और अपने अंदर उसी शक्ति का अनुभव करके अपना कल्याण कर सकते हैं।
मंत्र-जाप करने से पहले हमें अपने मन में यह दृढ़ भावना बना लेनी चाहिए कि हमें इस मंत्र के जाप से विशेष लाभ प्राप्त होने वाला है। संसार के अन्य सभी विकल्पों को त्याग कर जाप प्रारम्भ करना, सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
एक आख्यान के अनुसार एक राजा था जो अपनी कई रानियों के साथ राजमहल में सुखपूर्वक रहता था। एक बार जब वह विदेश जाने लगा तो उसने अपनी रानियों से पूछा कि यदि उनके लिए विदेश से कुछ मनवांछित उपहार लाना हो तो बता दें।
हरेक रानी ने अपनी-अपनी इच्छानुसार कंगन, कुंडल, हार, बाजूबंद आदि आभूषण मंगाए परन्तु महारानी ने कुछ नहीं मंगाया। राजा ने उनसे आग्रह किया कि वे भी अपनी इच्छा व्यक्त करें पर महारानी ने कहा कि मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं है। मैं तो बस यही चाहती हूँ कि आप सकुशल लौट कर आएं।
समय व्यतीत होने लगा। एक दिन राजा सकुशल अपने राज्य में वापिस आए। वे अपने साथ वे सभी वस्तुएँ भी लेकर आए जो उनकी रानियों ने मंगवाई थी। वे सभी रानियों से मिले और उन्हें उनके उपहार भेंट किए और रात्रि-विश्राम के लिए महारानी के महल में चले गए।
अब तो यह प्रतिदिन का क्रम हो गया। राजा दिन भर सब से हंसते-बोलते पर रात्रि होते ही महारानी के महल में चले जाते। अन्य रानियों ने सोचा कि पता नहीं, क्या कारण है जो आजकल राजा साहब हमारे साथ नहीं रहते।
रानियां स्पष्ट रूप से इस का कारण राजा से नहीं पूछ सकी पर उनका मन उदास रहने लगा। मंत्री ने उनके मनोभावों को पढ़ लिया और उनसे आदर सहित इस उदासी का कारण पूछा।
रानियों ने अपने मन की व्यथा मंत्री को बताई। मंत्री ने राजा से रानियों की मनोदशा का वर्णन किया और उन्हें समझाया कि आप यह ठीक नहीं कर रहे हो। राजा ने कहा कि मैंने कोई अनुचित कार्य नहीं किया है। मैं उन्हें दुःख नहीं दे रहा। सबकी इच्छित वस्तु सबको प्रदान कर दी गई है। पर जिसने मुझको ही माँग लिया हो, उसके पास तो मुझे स्वयं विद्यमान रहना पड़ेगा।
शायद आप समझ गए होंगे।
‘णमोकार मंत्र’ सभी मंत्रों का राजा है। यदि हम णमोकार मंत्र के जाप से भौतिक सुख-साधनों की कामना करते हैं तो इस जाप का फल हमें भौतिक साधनों के रूप में मिलेगा क्योंकि मंत्र की शक्ति उस राजा के समान है जो हमें हर इच्छित वस्तु देने में सक्षम है। जब हमारा मन पाप-रहित होकर निर्मल हो जाए तो क्यों न हम मंत्र जाप से अरिहंतो के समान गुणों को धारण करने की कामना करें।
जब हम अपने भीतर स्थित शत्रुओं को ही मार देंगे तो बाहर भी हमारा कोई शत्रु नहीं होगा। णमोकार के मंत्र-जाप से मन को शुद्ध करके केवल उसी का सान्निध्य माँगना है जो सर्वशक्तिमान है, जो अरिहंत है, सिद्ध है, आचार्य है, उपाध्याय है और साधु है।
प्रवचन: पूज्य आर्यिका 105 दृढ़मति माता जी
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