णमोकार मंत्र का जाप व उस का फल
णमोकार मंत्र का जाप व उस का फल
यदि आप णमोकार मंत्र के जाप का अधिकतम फल प्राप्त करना चाहते हैं तो पहले उसके अर्थ को समझें।
जैसे एक बच्चे को हमने ‘गाय’ शब्द सिखाया और उसने बोलना भी सीख लिया। बार-बार बोलने से उसे याद हो गया किन्तु प्रत्यक्ष रूप में उसने ‘गाय’ को कभी नहीं देखा तो वह गाय के बारे में उतना ही समझ पाएगा जितना उसे बताया गया है।
वह गाय पर निबन्ध तो सुना देगा कि गाय चार पैर वाली होती है जो दूध देती है और उस दूध को पीने से मनुष्य ताकतवर बनता है लेकिन वह गाय को देखे बिना सामने आने पर उसे पहचान नहीं पाएगा। यदि बच्चे को प्रत्यक्ष दिखा दिया जाए कि देखो बेटा! यह गाय है तो उसे शब्द का उच्चारण करते ही गाय का रूप-रंग, उसकी वास्तविक आकृति, आवाज़ की पहचान, गुण, स्वभाव, दूध की पौष्टिकता आदि सभी बातें स्वयमेव ही स्मृति में झलकने लगेंगी।
बच्चे में स्वतः गाय को देखने और उसके दूध का सेवन करने की इच्छा जागृत हो जाएगी ताकि वह उसके दूध से स्वयं को शक्तिशाली बना सके। उसका मन बार-बार उसकी ओर आकर्षित होगा तथा वह उसके समीप जाने के लिए लालायित होने लगेगा।
यही स्व-स्फूर्त आकर्षण उस मंत्र के प्रति होता है जब हम केवल शब्दों का जाप न करके उसको अर्थ सहित जानते हैं और फिर उसका जाप करते हैं। पंच परमेष्ठी की मूर्ति हमारी नज़रों के सामने झलकने लगती है, उनमें विद्यमान गुण हमें अपनी ओर आकर्षित करने लगते हैं।
इस प्रकार जाप करने से यह मंत्र हृदयस्थ होकर हमारी आत्मा की शक्ति को बढ़ाएगा, अन्यथा हम केवल शब्दों के जाप तक ही सीमित रह जाएंगे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार यह सिद्ध हो चुका है कि जिसने मंत्र के गुणों को अपने हृदय में स्थापित कर लिया है, उसका हृदय इतना निर्मल हो जाता है कि यदि वह साधारण जल को अपने हाथ में ले कर मंत्र का जाप करता है तो वह जल उसके शरीर से निकलने वाली ऊर्जा को ग्रहण कर लेता है।
यदि वह जल किसी दुःखी अथवा रोगी व्यक्ति पर छिड़क दिया जाए तो वह रोग-शोक से मुक्त हो जाता है।
इस प्रकार से ‘अभिमंत्रित जल’ से कैंसर जैसे रोगों से भी मुक्ति पाई जा सकती है।
णमोकार मंत्र किसी विशेष सम्प्रदाय का न होकर सार्वभौमिक मंत्र है जो लोक में स्थित प्रत्येक अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु को नमस्कार करता है जो इस पदवी पर पहुँच गए हैं या पहुँच रहे हैं या ऐसे आचार्य, उपाध्याय व साधुओं को नमस्कार करता है जो स्वयं भी पहुँच रहे हैं और अन्य प्राणियों का भी मार्ग-दर्शन करते हैं जो सिद्ध पद को प्राप्त करना चाहते हैं।
प्रवचनः पूज्य आर्यिका 105 दृढ़मति माता जी
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