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Showing posts from June, 2021

चौबोली रानी (भाग - 24)

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चौबोली रानी (भाग - 24 ) नव-वधु का पति द्रुतगति से पत्नी से पूर्व घर लौट आया। नव-वधु ने सूर्योदय के पूर्व घर में प्रवेश किया। पति गहरी नींद में सोने का अभिनय कर लेटा हुआ था। उसने कहा - स्वामी! मैं लौट आई हूँ। पति ने नयनों को मलते हुए कहा - सारी रात बीत गई, आज बड़ी गहरी नींद आई। नव-वधु ने कहा - मैं समझ नहीं पाई कि आप किस मिट्टी के बने हैं ? कोई व्यक्ति अपनी नवविवाहिता पत्नी को पर-पुरुष के पास भेजकर कैसे चैन की नींद सो सकता है ? पति ने कहा - सोता नहीं तो क्या करता ? रात्रि भर जागकर अपना स्वास्थ्य खराब करता और व्यर्थ की चिंता करता रहता। परिणाम तो मैं जानता ही था। पत्नी ने क्रोधित स्वर में कहा - क्या परिणाम जानते थे ? पति बोला यही कि तुम..............। उत्तेजित स्वर में पत्नी बोली - अपने मित्र या मेरे लिये कोई अपशब्द मत निकालना। पति ने कहा - तुम यही कहना चाहती हो न कि तुम और मेरा मित्र दोनों ने कोई अपराध नहीं किया है। पत्नी बोली - अपराध तो बहुत निम्न कोटि का शब्द है। मैं गंगा की भांति पवित्र हूँ और तुम्हारा मित्र देवता है। पति ने कहा - मैंने स्वयं तुम्हें अपने मित्र के पास भेजा था। मैं तुम...

चौबोली रानी (भाग - 23)

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चौबोली रानी (भाग - 23 ) युवक ने कहा - मैं तो भूल ही चुका था कि ऐसी कोई प्रतिज्ञा मित्र ने की थी, किन्तु अब स्मरण आ गया। नव-वधू का चरित्र जानने के लिये पूछा - इस विषय में तुम्हारा क्या मत है ? क्या तुम मेरे साथ रात बिताने को तैयार हो ? युवती की आँखों से आंसुओं का झरना फूट पड़ा। रुंधे हुए कंठ से उसने कहा - नारी का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि सुहागरात अपने स्वामी को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति के साथ बितानी पड़े। नारी के लिये चरित्र से बढ़कर दुर्लभ और बहुमूल्य वस्तु और कोई नहीं हो सकती। मेरे स्वामी संकल्पित हैं कि यदि मैंने प्रथम रात्रि आपके साथ नहीं बिताई तो सूर्योदय होते ही वे आत्महत्या कर लेंगे। अपने पति के जीवन की रक्षा और वैधव्यपूर्ण जीवन से बचने के लिये मैं आपके पास आई हूँ। पुरुष का हठ नारी का दुर्भाग्य है। उनके वचन की भी रक्षा करनी है और प्राणों की भी। सूर्योदय होते ही लोग मुझे पहचान लेंगे। मेरी विवशता है, मैं पति की आज्ञा का पालन कर रही हूँ। आप वचन जीत गये हैं और मैं............। नव-वधू का वाक्य अधूरा ही रह गया। पश्चिम दिशा वाले सुंदर युवक ने कहा - बहन! सम्बोधन सुनकर नव-वधु ने युवक ...

चौबोली रानी (भाग - 22)

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चौबोली रानी (भाग - 22 ) पति ने कहा - मेरी समस्या कहने में, मैं लज्जा और ग्लानि का अनुभव कर रहा हूँ। किसी भी सभ्य पुरुष को ऐसी बात अपनी पत्नी से कहने की अपेक्षा आत्महत्या कर लेनी चाहिये। नव-वधू बोली - कितनी भी गुप्त बात हो, पति को अपनी पत्नी से नहीं छिपानी चाहिये। यदि बात छिपाने से समस्या सुलझ सकती हो तो आप न बतायें। पति ने कहा - मैं समस्या बताने का साहस नहीं जुटा पा रहा हूँ और बिना बताये समस्या सुलझ नहीं सकती। रात बीतती जा रही है और समस्या को सुलझाने के लिए मात्र आज ही की रात उसके पास है। नव-वधू बोली - अविलम्ब कहिये। मेरा दुःख और न बढ़ाएं। पति ने कहा - प्रिये! मेरे अविवेक को क्षमा कर देना। फिर कुछ रुंधे गले से बोला - पश्चिम दिशा में मेरा एक मित्र रहता है। मैंने उसको वचन दिया था कि यदि मेरा विवाह पहले हुआ तो मेरी पत्नी प्रथम रात्रि उसके साथ बितायेगी। नव-वधू का हृदय पीड़ा और विस्मय से भर उठा और उसने पीड़ा भरे स्वर में कहा - स्वामी! क्या कभी ऐसी प्रतिज्ञा या वचन भी दिया जाता है ? यह एक ऐसी प्रतिज्ञा है कि जिसे प्रतिज्ञा पूरी करनी है, उसे प्रतिज्ञा का ज्ञान ही नहीं और न उसकी अनुमति है। इसलिय...

चौबोली रानी (भाग - 21)

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चौबोली रानी (भाग - 21 ) एक दिन दोनों मित्र परस्पर पारिवारिक संबंधों की चर्चा कर रहे थे। पूर्व दिशा में निवास करने वाले मित्र ने कहा - मित्र! तुम्हारी माता मेरी माता तुल्य है, तुम्हारे पिता मेरे पिता के समान हैं। तुम्हारी बहन मेरी बहन के समान है। पश्चिम दिशा में रहने वाले युवक ने कहा - ये क्या कहने की बातें हैं। जिस दृष्टि से तुम मेरे माता-पिता को देखते हो, सम्मान देते हो, मैं भी उसी दृष्टि से तुम्हारे माता-पिता को देखता हूँ। पूर्व दिशा में रहने वाले युवक ने कहा - यह तो ठीक है, किन्तु मेरी पत्नी को तुम अपनी पत्नी समझना और तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी पत्नी समझूंगा। पश्चिम दिशा में रहने वाले युवक ने कहा - अरे!..... और वह हंसने लगा। उसकी हंसी रुक ही नहीं रही थी। वह अपनी हंसी रोकने का जितना प्रयत्न करता, हंसी उतनी ही बढ़ती जाती। कुछ समय के पश्चात पश्चिम दिशा वाले मित्र ने कहा - क्या तुम्हें पवित्र संबंधों और सामाजिक मान्यताओं का ज्ञान नहीं ? पत्नी जिसकी होती है, उसी की होती है, किसी दूसरे की नहीं। किसी दूसरे की पत्नी के प्रति ऐसा सोचना भी मानसिक व्यभिचार की परिभाषा में आता है। आज तो तुमने यह...

चौबोली रानी (भाग - 20)

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चौबोली रानी (भाग - 20 ) रात्रि के अंतिम प्रहर में प्रतियोगिता के अंतिम चरण के शुभारंभ होने की घोषणा हुई। विक्रमादित्य ने वेताल को स्मरण किया। वेताल तत्काल बोला - “स्वामी! सेवक सदैव की भांति आपके साथ है, आज्ञा दीजिये। विक्रम और वेताल का वार्तालाप सिर्फ विक्रमादित्य ही सुन समझ सकते थे। विक्रमादित्य ने कहा - वेताल! राजकुमारी लीलावती का कंठ हार देख रहे हो ? जाओ उसमें प्रवेश कर जाओ। वेताल ने तत्काल आज्ञा का पालन किया। सखियाँ आश्चर्य चकित रह गई कि लीलावती के कंठहार की आभा के सम्मुख सभाभवन में रखे दीपों की ज्योति मद्धम् लग रही थी। सहसा यह परिवर्तन कैसे हो गया ? राजकुमारी लीलावती स्वयं आश्चर्यचकित थी। सहसा विक्रमादित्य ने कहा - ओ हार! मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ, क्या उत्तर दोगे ? कंठहार ने उत्तर दिया - मैं आदिकाल से ही नारियों का सबसे प्रिय आभूषण रहा हूँ। उनके कंठ की शोभा रहा हूँ। ओ चतुर पुरुष! मैं तुम्हारी बात का उत्तर अवश्य दूँगा। विक्रमादित्य ने स्वयं से कहा - वेताल स्वामी भक्त है। इसकी स्वामिभक्ति पर शंका नहीं की जा सकती। प्रतियोगिता का अंत निकट है, परिणाम सामने आने वाला है। विलम्ब कर...

चौबोली रानी (भाग - 19)

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चौबोली रानी (भाग - 19 ) रात्रि का अंतिम प्रहर शेष रह गया था। तीन बार लीलावती बोल चुकी थी। राजकुमारी ने अपनी सखी के कान में कहा - रात्रि के प्रथम प्रहर से अब तक बैठे रहने के कारण थक गई हूँ। अल्प विश्राम के लिये अवकाश घोषित किया जाए। सखी ने लीलावती का मंतव्य सुना दिया। राजा विक्रमादित्य ने कहा - प्रतियोगिता का अंतिम चरण है, समय सीमा सूर्योदय तक निश्चित की गई है। इसलिये विश्राम का कोई औचित्य नहीं है। रानी लीलावती की सखी ने कहा - आप का कथन यथार्थ है, किन्तु प्रत्येक व्यक्ति की श्रम करने की शक्ति सीमित होती है। हमारी स्वामिनी अन्याय में विश्वास नहीं करती। विश्राम में अधिक समय नहीं लगायेगी, सूर्योदय के पूर्व प्रतियोगिता समाप्त की जायेगी। सभा अल्पकाल के लिये विसर्जित कर रानी लीलावती अपनी सहेलियों सहित राजप्रसाद में चली गई। सम्राट विक्रमादित्य ने कहा कि वह भी एकांत चाहते हैं। उनकी भावना के अनुसार उन्हें दुर्ग के सुसज्जित कक्ष में विश्राम की सुविधा उपलब्ध करा दी गई। लीलावती अपनी शैया पर अधलेटी है। रात्रि जागरण की थकावट उसके चेहरे पर सहज ही देखी जा सकती है। सहेलियां समीप ही बैठी हैं। दासियाँ सेव...

चौबोली रानी (भाग - 18)

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चौबोली रानी (भाग - 18 ) सम्राट् ने कहा - ऐसी कपोल कल्पित बातें हमने न तो देखी हैं, न सुनी हैं, फिर उन्होंने युवती से पूछा - क्या नाम है तुम्हारा ? युवती ने उत्तर दिया - स्वामी! मेरा नाम अनामिका है। सम्राट् ने कहा - तुम्हारे मां-बाप का क्या नाम है ? तुम किस देश की निवासिनी हो ? अनामिका ने कहा - मुझे पता नहीं, मेरे माता-पिता कौन हैं ? मैंने तो इसी अवस्था में जंगल में होश संभाला और इन्हें परस्पर झगड़ते पाया। चारों मुझे अपनी-अपनी पत्नी बनाना चाहते हैं। इन्होंने ही मेरा नाम अनामिका रखा है। मैं इससे अधिक कुछ नहीं जानती। यह सब सुनकर सम्राट् हँसते रहे, फिर उन्होंने सोचा यह संसार विस्तृत और विशाल है। इसमें आश्चर्यचकित करने वाली घटनायें घटित होती रहती हैं। इनकी बातों से लगता है कि ये धूर्त नहीं हैं, सभ्य नागरिक हैं। इनकी समस्या का समाधान राज्य के विद्वान ही कर सकते हैं। सम्राट् ने कहा - जाओ! तीन दिन पश्चात् विद्वानों की बैठक रखी जायेगी, वे ही तुम्हारा न्याय करेंगे। सम्राट् ने सोचा कि समस्या अकल्पनीय और उलझी हुई है। इससे सभा के विद्वानों की परीक्षा हो जायेगी और इन्हें न्याय भी मिल जायेगा। राजदरब...