चौबोली रानी (भाग - 22)

चौबोली रानी (भाग - 22)

पति ने कहा - मेरी समस्या कहने में, मैं लज्जा और ग्लानि का अनुभव कर रहा हूँ। किसी भी सभ्य पुरुष को ऐसी बात अपनी पत्नी से कहने की अपेक्षा आत्महत्या कर लेनी चाहिये।

नव-वधू बोली - कितनी भी गुप्त बात हो, पति को अपनी पत्नी से नहीं छिपानी चाहिये। यदि बात छिपाने से समस्या सुलझ सकती हो तो आप न बतायें।

पति ने कहा - मैं समस्या बताने का साहस नहीं जुटा पा रहा हूँ और बिना बताये समस्या सुलझ नहीं सकती। रात बीतती जा रही है और समस्या को सुलझाने के लिए मात्र आज ही की रात उसके पास है।

नव-वधू बोली - अविलम्ब कहिये। मेरा दुःख और न बढ़ाएं।

पति ने कहा - प्रिये! मेरे अविवेक को क्षमा कर देना। फिर कुछ रुंधे गले से बोला - पश्चिम दिशा में मेरा एक मित्र रहता है। मैंने उसको वचन दिया था कि यदि मेरा विवाह पहले हुआ तो मेरी पत्नी प्रथम रात्रि उसके साथ बितायेगी।

नव-वधू का हृदय पीड़ा और विस्मय से भर उठा और उसने पीड़ा भरे स्वर में कहा - स्वामी! क्या कभी ऐसी प्रतिज्ञा या वचन भी दिया जाता है? यह एक ऐसी प्रतिज्ञा है कि जिसे प्रतिज्ञा पूरी करनी है, उसे प्रतिज्ञा का ज्ञान ही नहीं और न उसकी अनुमति है। इसलिये आपकी प्रतिज्ञा, दिया हुआ वचन मिथ्या है, पालन करने योग्य नहीं है। यदि आपका मित्र वास्तव में मित्र है तो वह इस बात का बुरा नहीं मानेगा कि आपने वचन नहीं निभाया।

पति ने कहा - मैं मित्र को दिया हुआ वचन तोड़ नहीं सकता। यदि समस्या नहीं सुलझी तो प्रातः होते ही मैं आत्महत्या कर लूँगा।

नव-वधू ने कहा - स्वामी! जीवन मृत्यु से श्रेष्ठ है। आप मेरे सर्वस्व हैं। मैं वैधव्यपूर्ण जीवन जी कर क्या करूंगी? मैं आपके मित्र के पास जाती हूँ। अपना शील सुरक्षित रखने का प्रयत्न करूंगी किन्तु आपके मित्र के पास रात्रि व्यतीत कर लौटने पर आप मुझे स्वीकार तो कर लेंगे न? उसका पति मौन रहा। फिर नव-वधू ने कहा - यदि मैं पवित्र लौटी तो आप मेरी बात पर विश्वास तो करेंगे न!

पति फिर भी मौन रहा।

नव-वधू शृँगार युक्त सुहागरात के वस्त्र पहने, एक थाली में दीप जलाकर, कुछ राखियाँ, रोली, अक्षत रखकर थाली हाथ में लेकर घर से निकली। पत्नी के जाने के बाद पति भी उसके पीछे छिपकर चल दिया। यह देखने के लिए कि क्या परिणाम निकलता है? पत्नी अपने शील की रक्षा का प्रयास भी करती है या बिना शाब्दिक प्रतिरोध के समर्पित हो जाती है।

रात्रि के गहन अंधकार में नव-वधू यह सोचती चली जा रही थी कि नारी का भाग्य देवता भी नहीं समझ सकते। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि इस प्रकार की विषम स्थिति का सामना करना पड़ेगा।

नव-वधू को मार्ग में तीन चोर मिले। इस शृँगारयुक्त सुंदर युवती को देखकर एक चोर ने कहा - सावधान! रात्रि में अकेली युवती चली आ रही है, इसके आभूषण लूट लेंगे, इससे सुख भोगेंगे और फिर इसे रूप की हाट में बेच देंगे। ऐसा अच्छा अवसर तो पहले कभी नहीं आया। तीनों चोर सुंदरी के आगे आकर खडे हो गये और बोले - चीखने-चिल्लाने की कोशिश न करना, अन्यथा प्राण गंवाने पड़ेंगे। सुंदरी ने कहा - मैं पति की आज्ञा पालन करने जा रही हूँ। मेरा रास्ता छोड़ दो। एक चोर ने कहा - सोलह शृँगार कर थाली में दीप जलाकर तू अपने प्रेमी से मिलने जा रही है, बेकार झूठ मत बोल। युवती ने कहा - मेरा विश्वास करो। मेरे पति ने अपने मित्र को वचन दिया था कि विवाह के पश्चात उसकी पत्नी प्रथम रात्रि मित्र के साथ बितायेगी।

चोर हंसने लगे - तेरा पति मूर्ख है या उसे नारी के चरित्र के महत्व का पता नहीं है। हमने तो कभी किसी को ऐसी प्रतिज्ञा करते नहीं सुना। उसका दिमाग तो ठीक है न?

नव-वधू ने कहा - मेरे पति स्वस्थ हैं, सुंदर हैं, किन्तु भावुक हैं। अब मुझे जाने दो। मैं शीघ्र ही लौट आऊँगी। आभूषण आदि जो तुम्हें चाहिये, वे लौटते समय ले लेना। चोरों ने कहा - अच्छा जाओ, जल्दी आना और पीछे से एक चोर को उसके पीछे लगा दिया। उसके पति ने देखा और सुना कि उसकी पत्नी उसके प्रति अच्छे विचार रखती है।

पश्चिम दिशा में मित्र के बड़े भवन के आगे छोटा-सा उद्यान था। वह कलाप्रिय होने के कारण एकांत में रहता था। नव-वधू ने भवन के द्वार पर दस्तक दी। मित्र गहन निद्रा में सोया हुआ था। नींद से जागकर आंखे मलते हुए उसने कहा - इतनी रात को कौन दरवाज़ा खटखटा रहा है। नव-वधू ने कहा - द्वार खोलिये।

युवक ने कहा - मध्यरात्रि में मेरा द्वार क्यों खटखटा रहे हो? किसी मुश्किल में हो क्या? मेरे पास किसी नारी के आने का कोई कारण नहीं। कौन हो, बिना कारण बताये मैं द्वार नहीं खोल सकता।

एक सुमधुर स्वर सुनाई दिया - द्वार खोलिये, मुझसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं। मैं आपके परम मित्र की नवविवाहिता पत्नी हूँ।

पूर्व दिशा में रहने वाले मित्र का नाम सुनते ही मित्र ने द्वार खोल दिया। मित्र की नव-वधू का अनिन्द्य सौन्दर्य देखकर वह विस्मित रह गया। उसके चेहरे पर आधा घूंघट पड़ा हुआ था। वह करुणा, पीड़ा और शील की अखंडित मूर्ति लग रही थी।

मित्र ने कहा - इस मध्य रात्रि में तुम कैसे आई? तत्काल उत्तर दो। तुम्हें देखकर कह सकता हूँ कि मेरा मित्र बड़ा भाग्यवान है। कहो, मेरे मित्र पर क्या विपत्ति आई है, मैं अविलम्ब चलने को तैयार हूँ।

नव-वधू ने कहा - आपके मित्र सकुशल हैं, किसी संकट में नहीं हैं। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि विवाह के पश्चात अपनी पत्नी को पहली रात आपके साथ बिताने भेजेंगे। मैं उनकी आज्ञा से ही यहां आई हूँ।

क्रमशः

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