चौबोली रानी (भाग - 18)
चौबोली रानी (भाग - 18)
सम्राट् ने कहा - ऐसी कपोल कल्पित बातें हमने न तो देखी हैं, न सुनी हैं, फिर उन्होंने युवती से पूछा - क्या नाम है तुम्हारा?
युवती ने उत्तर दिया - स्वामी! मेरा नाम अनामिका है।
सम्राट् ने कहा - तुम्हारे मां-बाप का क्या नाम है? तुम किस देश की निवासिनी हो?
अनामिका ने कहा - मुझे पता नहीं, मेरे माता-पिता कौन हैं? मैंने तो इसी अवस्था में जंगल में होश संभाला और इन्हें परस्पर झगड़ते पाया। चारों मुझे अपनी-अपनी पत्नी बनाना चाहते हैं। इन्होंने ही मेरा नाम अनामिका रखा है। मैं इससे अधिक कुछ नहीं जानती।
यह सब सुनकर सम्राट् हँसते रहे, फिर उन्होंने सोचा यह संसार विस्तृत और विशाल है। इसमें आश्चर्यचकित करने वाली घटनायें घटित होती रहती हैं। इनकी बातों से लगता है कि ये धूर्त नहीं हैं, सभ्य नागरिक हैं। इनकी समस्या का समाधान राज्य के विद्वान ही कर सकते हैं। सम्राट् ने कहा - जाओ! तीन दिन पश्चात् विद्वानों की बैठक रखी जायेगी, वे ही तुम्हारा न्याय करेंगे।
सम्राट् ने सोचा कि समस्या अकल्पनीय और उलझी हुई है। इससे सभा के विद्वानों की परीक्षा हो जायेगी और इन्हें न्याय भी मिल जायेगा।
राजदरबार में सम्राट् राजसिंहासन पर विराजमान हैं। समीप ही मंत्री एवं सभासद बैठे हैं। विद्वानों के लिये एक विशेष बैठने का स्थान बनाया गया है। चारों मित्र और अनामिका नियत समय पर सभा में उपस्थित हुए। सम्राट् ने विद्वानों से कहा - इनकी समस्या सुनो और निराकरण करो।
चारों ने अपना पक्ष रखा। सम्राट् ने विद्वानों से कहा - क्या इनकी कथा विश्वसनीय लगती है? एक विद्वान ने कहा - स्वामी! कथा विश्वसनीय है अथवा नहीं, इसका निर्णय हमें नहीं करना है। हमारे सामने चार पुरुष और एक नारी है। वह किसकी पत्नी होनी चाहिए, इसका निर्णय हमें करना है। यह काम अत्यंत सरल है।
दूसरे विद्वान ने कहा - वर्तमान में स्वयंवर प्रथा प्रचलित है। अनामिका! तुम जिसे पति के रूप में चुनना चाहो हम उसे ही तुम्हारा पति घोषित किये देते हैं। इससे तुम्हें अपनी इच्छा का पति मिल जायेगा। यह युगधर्म के अनुकूल भी है।
अनामिका ने न्यायकर्ताओं को सम्बोधित करके कहा - मैं वचनबद्ध हूँ कि सम्राट् द्वारा किया गया न्याय स्वीकार करुँगी। इसलिये सम्राट् की ओर से जो निर्णय आप देंगे, वह मुझे स्वीकार है।
विद्वानों ने धर्म, रीति-रिवाज आदि सभी पक्षों पर विचार विमर्श किया परन्तु निर्णय न कर सके क्योंकि अनामिका विश्वसनीय नहीं लगी। न उसके माता-पिता का पता, न गांव का पता।
विक्रमादित्य ने घट से प्रश्न किया - हे घट! बताओ अनामिका किसकी पत्नी होनी चाहिए?
जलकुम्भ ने कहा - निर्जीव वस्तुओं का कोई मूल्य नहीं होता। मन्त्रवेत्ता ने सुंदरी अनामिका में प्राणों का संचार किया, जीवन दान दिया, वह मंत्रवेत्ता ब्राह्मण ही उसका वास्तविक पति है।
कुम्भ का उत्तर सुनकर लीलावती का मुख क्रोध से लाल हो गया। इसके पूर्व कि विक्रमादित्य उससे न्याय करने के लिये कहें, वह क्रोधित स्वर में बोली - हे मूर्ख! मिट्टी की देह की तरह तेरी बुद्धि भी मिट्टी जैसी ही है। जैसा तूने उत्तर दिया है उस दृष्टि से तो तुझे जीने का भी कोई अधिकार नहीं। कुम्भ में बैठा वेताल तत्काल विक्रम के पास लौट आया। राजकुमारी लीलावती को कुम्भ का उत्तर सहन नहीं हुआ और उसने कुम्भ को ठोकर मारी जिससे वह टूट गया और चारों ओर जल बिखर गया। कार्य की सिद्धि हो चुकी थी।
विक्रमादित्य ने कहा - आपको क्रोध नहीं करना चाहिये। क्रोध में विवेक नहीं रहता। आप इतने बड़े राज्य की स्वामिनी हो, आपको न्याय करना है। क्रोध छोड़कर न्याय कीजिये।
लीलावती ने कहा - घट ने खोटा न्याय दिया है। इसलिये मैंने इसको दंड दिया है।
काष्ठ शिल्पी उसका पति नहीं हो सकता, वस्त्र भाई की ओर से बहन को भेंट किये जाते हैं। भाई, बहन को चुंदड़ी ओढ़ाता है, अतः वस्त्र दाता उसका भाई माना जायेगा। किसी भी समाज में बहन-भाई का विवाह नहीं होता। यह वर्जित की श्रेणी में आता है। मंत्रवेत्ता ने सुंदरी को मंत्र दिया था, अतः वह उसका गुरु हुआ। गुरु और शिष्या में विवाह नहीं हो सकता। मात्र आभूषण ही पति की ओर से आते हैं। पति ही पत्नी को सुहाग-चिन्ह के रूप में मंगलसूत्र, चूड़ियां आदि देता है। इसलिये स्वर्णकार ही उस सुंदरी का पति हो सकता है।
सखियों ने राजकुमारी लीलावती के न्याय की भूरी-भूरी प्रशंसा की। प्रशंसा सुनकर लीलावती प्रसन्न हुई, पर क्षण भर में उसका मुख हार के भय से म्लान हो उठा कि वह तीन बार बोल चुकी है। यह पुरुष जो परीक्षा देने आया है कोई अलौकिक व्यक्ति लगता है। इसके कहने पर दीपक, पुष्पपात्र, जलकुम्भ बोलते हैं, इसका रहस्य समझ में नहीं आता। प्रतीत होता है अब मेरी हार निश्चित है, किन्तु इसका रहस्य जानना चाहिये।
रात्रि का अंतिम प्रहर प्रारम्भ हो गया। दूर्ग से घोषणा के रूप में सेविकाओं ने नगाड़े पर चोट लगाई -
“स्नेही सखियों ने बजाया ढ़ोल
लीलावती बोली तीसरा बोल।”
क्रमशः
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