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Showing posts from December, 2021

14 गुण स्थान (भाग - 31)

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14 गुण स्थान (भाग - 31 ) ​​ 3 . तीसरा गुणस्थान - मिश्र गुणस्थान (सम्यक् मिथ्यात्व) जैसे दो चीज़ें दही और गुड़ को मिलाने से जो नया स्वाद आता है या हल्दी और चूने को मिलाने से जो नया रंग बनता है, उसी प्रकार मिश्र गुणस्थान में भी सम्यक्त्व और मिथ्यात्व, इन दोनों के मिलने से जो परिणाम होते हैं अथवा जो आत्मा के भाव होते हैं, उसे मिश्र या सम्यक् मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं। कुछ सम्यक्त्व से लगाव और कुछ मिथ्यात्व की ओर झुकाव; वर्तमान के संस्कारों के कारण सम्यक्त्व से लगाव और अतीत के संस्कारों के कारण मिथ्यात्व के प्रति झुकाव होने लगता है। जैसे बहुत बड़े हॉल में एक छोटा-सा टिमटिमाता दीपक रख देने पर प्रकाश और अंधकार का धुंधलापन दिखाई पड़ता है तथा अंधकार और प्रकाश जैसी अवस्था में न पुस्तक पढ़ सकते हैं और न ही उसका लोप कर सकते हैं। पुस्तक दिखाई दे रही है पर अक्षर दिखाई नहीं दे रहे हैं। न इतना अंधकार है कि ठोकर खाकर गिर जाएं और न इतना प्रकाश है कि सुई में डोरा डाल सकें। इस मिले-जुले परिणाम की अवस्था को मिश्र गुणस्थान कहा गया है। इसी प्रकार जिसमें न पूर्ण सम्यक्त्व रूप परिणाम, न पूर्ण मिथ्यात्व रूप...

14 गुण स्थान (भाग - 30)

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14 गुण स्थान (भाग - 30 ) 2 . द्वितीय गुणस्थान; सासादन गुण स्थान प्रथमोपशम सम्यक्त्व के काल में अथवा द्वितीयोपशम सम्यक्त्व के काल में 6 आवली शेष रहने पर जीव सम्यक्त्व से गिर कर उतने मात्र काल के लिए जिस गुणस्थान को प्राप्त होता है, उसे सासादन गुणस्थान कहते हैं। सासादन का अर्थ है - स+असादन। स का अर्थ है - सम्यक्त्व और असादन का अर्थ है - विराधना। जिसने सम्यक्त्व की विराधना कर दी है अर्थात् सम्यक्त्व को छोड़ कर नीचे मिथ्यात्व की ओर आ रहा है, इस बीच की अवस्था को सासादन सम्यग्दृष्टि जीव कहते हैं। प्र. 1 . सासादन गुणस्थानवर्ती जीव को सम्यग्दृष्टि जीव क्यों कहते हैं ? उत्तर - चूंकि ऐसा जीव प्रथमोपशम की विराधना करके आया है इसलिए भूतपूर्व न्याय की अपेक्षा से इसे सम्यग्दृष्टि ही कहते हैं। प्र. 2 . - आवली किसे कहते हैं ? उत्तर - असंख्यात समय की एक आवली होती है। सासादन गुणस्थान की आगमिक परिभाषा - इस गुणस्थान का स्वरूप निरूपण करते हुए आचार्य वीरसेन स्वामी ने कहा है कि सम्यक्त्व की विराधना को आसादन कहते हैं और जो इस आसादन से युक्त है, उसे सासादन कहते हैं। सासादन गुणस्थानवर्ती का विपरीत अभिप्राय रहत...

14 गुण स्थान (भाग - 29)

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14 गुण स्थान (भाग - 29 ) प्र. 1 . परावर्तन काल और अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल किसे कहते हैं ? उत्तर - संसार के परिवर्तन रूप चक्र को परावर्तन कहते हैं। जन्म-मरण रूप संसार में भ्रमण करने को परावर्तन कहते हैं। परावर्तन 5 प्रकार का होता है - द्रव्य परावर्तन क्षेत्र परावर्तन काल परावर्तन भव परावर्तन भाव परावर्तन 1 . द्रव्य परावर्तन - नोकर्म पुद्गलों को अमुक क्रम से ग्रहण करने और भोग कर छोड़ देने रूप परिभ्रमण का नाम द्रव्य-परावर्तन है। 2 . क्षेत्र-परावर्तन - लोकाकाश के सब प्रदेशों में अमुक क्रम से उत्पन्न होने और मरने रूप परिभ्रमण का नाम क्षेत्र परावर्तन है। 3 . काल-परावर्तन - क्रम से उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के सभी समयों में जन्म लेने व मरने रूप परिभ्रमण का नाम काल परावर्तन है। 4 . भव परावर्तन - नरकादि गतियों में बार-बार उत्पन्न होकर जघन्य से लेकर उत्कृष्ट पर्यंत सब आयु को भोगने रूप परिभ्रमण का नाम काल परावर्तन है। 5 . भाव परावर्तन - सब योग स्थानों और क्रम से ज्ञानावरण आदि सब कर्मों की जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट स्थिति को भोगने रूप परिभ्रमण का नाम भाव परावर्तन है। नोट - 1 . चूँकि क्षेत्...

14 गुण स्थान (भाग - 28)

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14 गुण स्थान (भाग - 28 ) जिस प्रकार किसी विषहारी मंत्र में एक अक्षर भी न्यून हो जाने से वह मंत्र विष को दूर करने में समर्थ नहीं होता, उसी प्रकार एक भी अंग से विहीन सम्यग्दर्शन हमारी संसार-संतति को नष्ट नहीं कर सकता। जिस प्रकार मानव शरीर में दो पैर, दो हाथ, नितंब, पीठ, वक्षस्थल और मस्तक; ये 8 अंग होते हैं तथा इन 8 अंगों में से एक भी अंग न हो तो वह अंगहीन मानव कहलाता है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन के भी 8 अंग होते हैं तथा इन 8 अंगों में से एक भी अंग न हो तो वह सम्यग्दर्शन से हीन कहलाता है। सम्यग्दर्शन की महिमा निर्मल सम्यग्दर्शन का धारक जीव, व्रत रहित होते हुए भी सम्यग्दर्शन के प्रभाव से नरक गति, तिर्यंच गति और मनुष्य गति में, नपुंसक, स्त्री पर्याय को तथा निन्दित कुल, विकलांग अवस्था, अल्प आयु और दरिद्रता को प्राप्त नहीं होता। सम्यग्दृष्टि जीव असंज्ञी, अपर्याप्तक, सम्मूर्छन जीवों में, भवनवासी, व्यंतर और ज्योतिषी देवों में तथा सर्व देवियों में एवं एकन्द्रिय स्थावरों में विकलत्रय ( 1,2,3,4 इंद्रिय जीव) में उत्पन्न नहीं होते। यहाँ सम्यग्दर्शन की महिमा का कथन अबद्धायुष्क जीव की अपेक्षा अर्थ...

14 गुण स्थान (भाग - 27)

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14 गुण स्थान (भाग - 27 ) क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि जीव के शिथिलतावश सम्यग्दर्शन में 5 अतिचार लगते हैं। सम्यग्दर्शन के अतिचार - अतिचार का अर्थ है ‘प्रतिज्ञा का आंशिक खण्डन’। ये निम्न प्रकार से लगते हैं - शंका - वीतरागी जिनेन्द्र द्वारा प्रतिपादित तत्वों में श्रद्धान न करके शंका करना, उसे संदिग्ध दृष्टि से देखना। काँक्षा - धर्माचरण से ऐहिक फलों व विषय भोगों की आकाँक्षा रखना। विचिकित्सा - मुनिजनों की आंतरिक उज्ज्वलता को न देखकर शारीरिक मलिनता को देखना व मन में ग्लानि का भाव उत्पन्न करना। अन्य दृष्टि प्रशंसा - कुमार्गगामी व्यक्ति की परोक्ष में प्रशंसा करना अर्थात् कुगुरु-कुदेव-कुशास्त्रों की मन से प्रशंसा करना। अन्य दृष्टि संस्तवन - कुगुरु-कुदेव-कुशास्त्रों की स्तुति करना और अपने मुख से प्रशंसा करना। सम्यग्दर्शन के गुण - संवेग - धर्म ओर धर्म के फल तथा धर्मात्माओं के प्रति अत्यन्त हर्ष, अनुराग और उत्साह बना रहना। निर्वेग/निर्वेद - संसार, शक्ति और विषय भोगों से विरक्ति। आत्म-निंदा - अपने दोषों की निन्दा/आलोचना करना। आत्म-गर्हा - गुरु के समक्ष अपने दोषों को प्रकट करना। उपशम - क्रोध आदि...

14 गुण स्थान (भाग - 26)

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14 गुण स्थान (भाग - 26 ) सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के अंतरंग कारण सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति का अंतरंग कारण आत्मा की विशुद्धि अर्थात दर्शन मोहनीय का उपशम, क्षय, क्षयोपशम है। चारों अनुयोगों के अनुसार सम्यग्दर्शन की परिभाषा - अनुयोग 4 प्रकार के होते हैं। प्रथमानुयोग करणानुयोग चरणानुयोग द्रव्यानुयोग 1 . प्रथमानुयोग और चरणानुयोग के अनुसार सम्यग्दर्शन की परिभाषा - सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का 8 मद रहित, 8 शंकादि दोष रहित, 6 अनायतन रहित और 3 मूढ़ता रहित तथा निःशंकित आदि 8 अंगों सहित जो श्रद्धान होता है, उसे इन दोनों अनुयोगों के अनुसार सम्यग्दर्शन कहते हैं। 2 . करणानुयोग के अनुसार सम्यग्दर्शन की परिभाषा - अनंतानुबंधी (क्रोध, मान, माया, लोभ) तथा मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व और सम्यक् प्रकृति; इन 7 कर्म प्रकृतियों के उपशम, क्षय व क्षयोपशम से आत्मा की जो निर्मल परिणति होती है, उसे करणानुयोग के अनुसार सम्यग्दर्शन कहते हैं। 3 . द्रव्यानुयोग के अनुसार सम्यग्दर्शन की परिभाषा - जीवादि 7 तत्व का जैसा स्वरूप है, उनका जब उसी रूप में श्रद्धान होता है तो उसे द्रव्यानुयोग के अनुसार सम्यग्दर्शन कहते हैं। ...