14 गुण स्थान (भाग - 30)

14 गुण स्थान (भाग - 30)

2. द्वितीय गुणस्थान; सासादन गुण स्थान

प्रथमोपशम सम्यक्त्व के काल में अथवा द्वितीयोपशम सम्यक्त्व के काल में 6 आवली शेष रहने पर जीव सम्यक्त्व से गिर कर उतने मात्र काल के लिए जिस गुणस्थान को प्राप्त होता है, उसे सासादन गुणस्थान कहते हैं।

सासादन का अर्थ है - स+असादन। स का अर्थ है - सम्यक्त्व और असादन का अर्थ है - विराधना। जिसने सम्यक्त्व की विराधना कर दी है अर्थात् सम्यक्त्व को छोड़ कर नीचे मिथ्यात्व की ओर आ रहा है, इस बीच की अवस्था को सासादन सम्यग्दृष्टि जीव कहते हैं।

प्र. 1. सासादन गुणस्थानवर्ती जीव को सम्यग्दृष्टि जीव क्यों कहते हैं?

उत्तर - चूंकि ऐसा जीव प्रथमोपशम की विराधना करके आया है इसलिए भूतपूर्व न्याय की अपेक्षा से इसे सम्यग्दृष्टि ही कहते हैं।

प्र. 2. - आवली किसे कहते हैं?

उत्तर - असंख्यात समय की एक आवली होती है।

सासादन गुणस्थान की आगमिक परिभाषा -

इस गुणस्थान का स्वरूप निरूपण करते हुए आचार्य वीरसेन स्वामी ने कहा है कि सम्यक्त्व की विराधना को आसादन कहते हैं और जो इस आसादन से युक्त है, उसे सासादन कहते हैं।

सासादन गुणस्थानवर्ती का विपरीत अभिप्राय रहता है, इसलिए इसे मिथ्यादृष्टि नहीं कह सकते। यही कारण है, यह मिथ्यात्व गुणस्थान से भिन्न स्वतंत्र गुणस्थान है। दर्शनमोहनीय कर्म के उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम से सासादन-रूप परिणाम नहीं होता।

यह गुणस्थान गिरती हुई अवस्था का है अर्थात् सम्यक्त्व रूपी रत्नपर्वत के शिखर से गिरकर जो जीव मिथ्यात्व रूपी भूमि के सम्मुख हो चुका है, जिसका सम्यक्त्व नष्ट हो रहा है, परन्तु अभी तक मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं हुआ है।

यह स्पष्ट है कि कोई भी जीव प्रथम गुणस्थान से दूसरे गुणस्थान में नहीं जाता। चतुर्थ आदि गुणस्थान से कषायों के उदय के कारण जब वह नीचे गिरने लगता है, तब यह गुणस्थान आता है। यह गुणस्थान उत्क्रान्ति अर्थात् ऊपर उठने का नहीं है, अपितु अपक्रान्ति अर्थात् नीचे गिरने का है।

इस गुणस्थान का अधिक से अधिक समय 6 आवली होता है और जघन्यकाल एक समय है। इसी को स्पष्ट करते हुए आचार्यवीरसेन स्वामी कहते हैं कि यदि उपशम सम्यक्त्व का काल 6 आवली प्रमाण शेष हो तो जीवसासादन गुणस्थान को प्राप्त हो सकता है।

‘जयधवल’ में यति वृषभाचार्य ने लिखा है कि जिसने अनंतानुबंधी की विसंयोजना करके द्वितीयोपशम को प्राप्त कर लिया हो, वह भी गिरकर सासादन को प्राप्त हो  सकता है।

षट्खण्डागम में उक्त कथन को स्वीकार न करके यही स्वीकार किया है कि जीव प्रथमोपशम सम्यक्त्व से गिरकर सासादन गुणस्थान को प्राप्त होता है।

प्रथमोपशम सम्यक्त्व से गिरने वाले जीव के अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, इनमें से किसी का भी उदय होते ही सासादन गुणस्थान होता है। किसी को माया से, किसी को लोभ से प्रेरित सासादनपना होता है।

क्रमशः

।।ओऽम् श्री महावीराय नमः।।

Comments

Popular posts from this blog

बालक और राजा का धैर्य

चौबोली रानी (भाग - 24)

सती नर्मदा सुंदरी की कहानी (भाग - 2)

सती कुसुम श्री (भाग - 11)

हम अपने बारे में दूसरे व्यक्ति की नैगेटिव सोच को पोजिटिव सोच में कैसे बदल सकते हैं?

मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज के 18 अक्टूबर, 2022 के प्रवचन का सारांश

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर व उनके चिह्न

बारह भावना (1 - अथिर भावना)

रानी पद्मावती की कहानी (भाग - 4)

चौबोली रानी (भाग - 28)