14 गुण स्थान (भाग - 28)

14 गुण स्थान (भाग - 28)

जिस प्रकार किसी विषहारी मंत्र में एक अक्षर भी न्यून हो जाने से वह मंत्र विष को दूर करने में समर्थ नहीं होता, उसी प्रकार एक भी अंग से विहीन सम्यग्दर्शन हमारी संसार-संतति को नष्ट नहीं कर सकता।

जिस प्रकार मानव शरीर में दो पैर, दो हाथ, नितंब, पीठ, वक्षस्थल और मस्तक; ये 8 अंग होते हैं तथा इन 8 अंगों में से एक भी अंग न हो तो वह अंगहीन मानव कहलाता है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन के भी 8 अंग होते हैं तथा इन 8 अंगों में से एक भी अंग न हो तो वह सम्यग्दर्शन से हीन कहलाता है।

सम्यग्दर्शन की महिमा

निर्मल सम्यग्दर्शन का धारक जीव, व्रत रहित होते हुए भी सम्यग्दर्शन के प्रभाव से नरक गति, तिर्यंच गति और मनुष्य गति में, नपुंसक, स्त्री पर्याय को तथा निन्दित कुल, विकलांग अवस्था, अल्प आयु और दरिद्रता को प्राप्त नहीं होता।

सम्यग्दृष्टि जीव असंज्ञी, अपर्याप्तक, सम्मूर्छन जीवों में, भवनवासी, व्यंतर और ज्योतिषी देवों में तथा सर्व देवियों में एवं एकन्द्रिय स्थावरों में विकलत्रय (1,2,3,4 इंद्रिय जीव) में उत्पन्न नहीं होते। यहाँ सम्यग्दर्शन की महिमा का कथन अबद्धायुष्क जीव की अपेक्षा अर्थात् जिसने सम्यग्दर्शन प्राप्त करने से पहले आयु बंध नहीं किया, ऐसे जीव की अपेक्षा यह कथन है।

प्र. 1. सम्यग्दर्शन प्राप्त करने से पहले जिस मनुष्य एवं तिर्यंच ने नरक आयु का बंध कर लिया है, वह कहाँ उत्पन्न होगा?

उत्तर - 1. सम्यग्दर्शन प्राप्त करने से पहले जिस मनुष्य एवं तिर्यंच ने नरक आयु का बंध कर लिया है, वह  सम्यग्दर्शन के प्रभाव से पहले नरक में उत्पन्न होगा।

2. जिसने स्थावर, विकलत्रय आदि का बंध कर लिया है, वह सम्यग्दर्शन के प्रभाव से उत्तम भोगभूमि के तिर्यंचों में ही उत्पन्न होगा, कर्म भूमि के तिर्यंचों में नहीं।

3. जिसने मनुष्य आयु का बंध कर लिया है, वह सम्यग्दर्शन के प्रभाव से उत्तम भोगभूमि के मनुष्यों में ही उत्पन्न होगा, कर्म भूमि के मनुष्यों में नहीं।

4. जिसने भवनवासी, व्यंतर और ज्योतिषि देवों में से किसी एक आयु का बंध कर लिया है, वह सम्यग्दर्शन के प्रभाव से वैमानिक देवों में ही उत्पन्न होगा, भवनत्रिक में नहीं।

प्र. 2. बद्धायुष्क मनुष्य यदि सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेता है तो वह चारों गतियों में जा सकता है। कैसे?

उत्तर - यदि किसी जीव ने नरक, तिर्यंच या मनुष्य की आयु बांध ली है, पुनः इसके बाद उस जीव को क्षयोपशम सम्यग्दर्शन प्राप्त हुआ तो आयु के समाप्त होने पर मरते समय उसका सम्यग्दर्शन छूट जाएगा और वह मरकर जिस गति का बंध किया था, उसी गति को प्राप्त हो जाता है। उपशम सम्यक्त्व में तो मरण होता नहीं है, कदाचित् द्वितीयोपशम सम्यक्दृष्टि श्रेणी में मरण करे तो वह देव गति में ही जाएगा। हाँ! यदि क्षायिक सम्यग्दृष्टि है अथवा क्षायिक-सम्यक्तव पूर्ण होने में कुछ कार्य शेष रहा है तो उस समय वे कृत-कृत्य वेदक-सम्यग्दृष्टि यदि नरक में जाते हैं तो प्रथम नरक में जाएंगे। यदि तिर्यंच/मनुष्य की आयु बाँध चुके हैं तो वे भोगभूमि के तिर्यंच/मनुष्य ही होंगे।

प्र. 3. क्या सम्यग्दर्शन के प्रभाव से एक बार आयु-बंध होकर बंध छूट सकता है?

उत्तर - चारों प्रकार की गतियों में से किसी एक आयु का एक बार बंध हो जाने पर वह छूटता नहीं है और न ही उसमें पर-स्थान संक्रमण होता है अर्थात् नरक आयु से तिर्यंच आयु रूप परिवर्तन नहीं होता।

सम्यग्दर्शन धारण करने के पश्चात् भव धारण करने की सीमा -

जो जीव अंतर्मुहूर्त काल पर्यंत भी सम्यग्दर्शन को प्राप्त करके अनंतर छोड़ देते हैं तो वे भी इस संसार में अनंतानंत काल पर्यंत नहीं रहते अर्थात् उनको अधिक से अधिक अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल मात्र ही संसार शेष रहता है, इससे अधिक नहीं।

(भगवती आराधना/मू०/गा०)

क्रमशः

।।ओऽम् श्री महावीराय नमः।।

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