प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी (भाग - 20)
प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी (भाग - 20 ) केवलज्ञान कल्याणक और देवों द्वारा समवशरण की रचना जिस समय प्रभु को केवलज्ञान हुआ, उसी समय भरत महाराज के शस्त्रागार में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ और उसी समय उन्हें पुत्ररत्न की भी प्राप्ति हुई। भरत महाराज को एक साथ तीन-तीन मंगल समाचार मिले। चारों ओर से बधाइयाँ मिलने लगी। चक्ररत्न व पुत्ररत्न की प्राप्ति की अपेक्षा उन्होंने धर्मकार्य को महान् पुण्यफल माना और भरत महाराज ने सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव के केवलज्ञान का उत्सव मनाने की तैयारी की। वे अतिशय आनन्दपूर्वक धूमधाम से केवली प्रभु की पूजा करने समवसरण की ओर चले। कितना आनन्दकारी दृश्य होगा वह! हमारे मन में उसकी कल्पना करके ही आनन्द का सागर हिलोरें लेने लगा है। आओ! महाराज भरत की सवारी समवसरण में पहुँचने से पहले ही हम अपनी कल्पना शक्ति से उस दिव्य समवसरण में पहुँच जाएं और वहाँ की अद्भुत छटा का आनन्द लें। भगवान को केवलज्ञान होते ही इन्द्र का आसन डोलने लगा। सारे जगत का संताप नष्ट हो गया और सर्वत्र शांति छा गई। तीनों लोकों में आनन्द की सरिता बहने लगी। स्वर्ग में बजने वाले वाद्य सब को प्रभु के केवलज्ञान की सूचना देने ...