छठे तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभ जी (भाग - 2)

छठे तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभ जी (भाग - 2)

मुनिराज अपराजित अहमिन्द्र रूप में

मुनिराज अपराजित चतुर्विध आराधनापूर्वक सल्लेखना धारण करके उत्तम ग्रैवेयक के प्रीतिंकर विमान में अहमिन्द्र रूप में अवतरित हुए। उस विमान की रमणीयता व शोभा भावी तीर्थंकर का आगमन होने से और भी अधिक बढ़ गई। उस विमान में अनेक जीव अगले भव में मोक्ष प्राप्त करने वाले थे।

ऐसी सुन्दर देवनगरी में तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभ का जीव असंख्य वर्षों तक रहा। वहाँ उनकी आयु 31 सागर थी। वे 465 दिन में एक बार श्वास लेते थे। वहाँ क्षुधा-तृषा की कोई वेदना नहीं थी। वे मात्र मानसिक अमृत आहार से ही तृप्त हो जाते थे। उनके अवधिज्ञान और विक्रिया का विस्तार सातवें नरक तक था।

जब ऐसे दिव्य लोक में उनकी आयु 6 मास शेष रह गई और उनके मध्यलोक में तीर्थंकर रूप में अवतरित होने की तैयारी होने लगी, तब जहाँ उनका जन्म होने वाला था, उस नगरी में रत्नों की वर्षा होने लगी। वह धन्य नगरी थी - कौशाम्बी नगरी।

क्रमशः

।।ओऽम् श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय नमः।।

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